ईश्वर की अनुभूति का पर्व देवोत्थानी एकादशी
सिद्धार्थनगर : ईश्वर की आगवानी एवं दुख दरिद्रता से मुक्ति का पर्व है देवोत्थानी एकादशी। पुराणों में
सिद्धार्थनगर : ईश्वर की आगवानी एवं दुख दरिद्रता से मुक्ति का पर्व है देवोत्थानी एकादशी। पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु एवं शंखासुर नामक असुर में भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध अनेक वर्षों तक चला। अन्त में नारायण ने उस असुर पर विजय प्राप्त की। इस युद्ध से नारायण काफी थक गए थे और सो गए। वह दिन अषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। चार माह की निद्रा के बाद आज ही के दिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भोर में भगवान जागे। इसीलिए महिलाएं भोर में सूप बजाकर भगवान विष्णु को जगाती हैं और पहले अपने घर बुलाती हैं, साथ ही उनसे अपने दुख कष्ट हरने का निवेदन भी करती हैं। इस दिन व्रत रहने तथा भजन कीर्तन एवं प्रभु का स्मरण करने से विशेष फल मिलता है। इस दिन तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व माना गया है। इसके पीछे भी एक असुर की कथा पुराणों में वर्णित है।जलन्धर नामक असुर के अत्याचार से सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। देवता भी चाहकर उसका बाल भी बांका नहीं कर पा रहे थे। कारण कि उसकी पत्नी सती बृन्दा एक पतिव्रता नारी थी। उसका सतीत्व भंग किए बिना जलन्धर को कोई नहीं मार सकता था। तब नारायण ने उसका सतीत्व भंग किया और भगवान शंकर ने जलन्धर का वध किया। सतीत्व भंग होने से छुब्ध बृन्दा ने नारायण को पत्थर हो जाने का श्राप दिया तो नारायण ने भी उसे काष्ठ हो जाने एवं सदैव अपने मस्तक पर धारण करने का आशीर्वाद दिया। तभी से भगवान शालिग्राम रुप में एवं बृन्दा तुलसी रुप में हो गई। इस कारण आज के दिन तुलसी विवाह को विशेष फलदायी माना जाता है।
इस व्रत में पारण का भी विशेष महत्व माना गया है। प्रात: काल में ही पारण करना चाहिए। पारण में शुद्ध एवं सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। पारण के दिन केवल दो बार ही अन्न ग्रहण करना चाहिए तथा दिन में शयन करना भी वर्जित है। अन्यथा व्रत का महत्व समाप्त हो जाता है तथा अर्जित पुण्य भी क्षीण हो जाते हैं। इसलिए नियमानुसार ही एकादशी का व्रत व पारण करना श्रेयस्कर होता है। पंडित दिनेश पाण्डेय का कहना है कि मानव के सभी दु:खों को दूर कर मोक्ष प्राप्त करने का सरलतम मार्ग है एकादशी व्रत। सभी सनातन धर्मावलम्बियों को इस पर्व के माध्यम से ईश्वर को घर में बुलाकर उनसे अपने दु:ख व दरिद्रता को दूर करने हेतु व्रत एवं भजन कीर्तन स्मरण करना चाहिए।