यहां तो भगवान भरोसे इलाज
सिद्धार्थनगर : क्षेत्र के करीब बीस हजार लोगों की स्वास्थ की देखरेख के लिए करीब पांच साल पहले खुले
सिद्धार्थनगर :
क्षेत्र के करीब बीस हजार लोगों की स्वास्थ की देखरेख के लिए करीब पांच साल पहले खुले अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंद्र रसूलपुर में डाक्टर की तैनाती न होने से अस्पताल हाथी दांत साबित बना हुआ है। सारी व्यवस्था एक मात्र फार्मासिस्ट के जिम्मे चल रही है। अस्पताल की हालत दिनों जर्जर होती जा रही है। समस्या की गिरफ्त में फंसे इस अस्पताल को खुद के इलाज की जरूरत है।
करीब एक करोड़ की लागत से रसूलपुर में एडिशनल प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र 2011 में खोला गया। उस समय डाक्टर के साथ अन्य स्टाफ की नियुक्ति की गई। इसके बाद दर्जन भर गांवों के मरीजों को आसानी स्वास्थ सुविधा मिलने लगी। मगर दो साल पहले तैनात रहे डाक्टर पी.एन.पटेल का स्थानांतरण हो जाने के बाद सारी जिम्मेदारी फार्मासिस्ट के ऊपर आ गई। कोई गंभीर केस आ गया तो वह भी हाथ खड़े कर देते हैं। मरीजों को पानी की एक बूंद तक नसीब नहीं हो पाती है। वाटर सप्लाई के अब तक शुरू न होने से हर किसी को पानी के लिए तरसना पड़ता है। पूर्व में एक देशी नल लगा था, जिसका सारा ऊपरी हिस्सा गायब हो चुका है।
बघमरा गांव के कल्लू ने बताया कि अस्पताल में डाक्टर न होने से हमें इलाज के लिए पंद्रह किमी दूर बेंवा जाना पड़ता है। मालती देवी ने बताया अस्पताल में महिला स्टाफ न होने से आधी आबादी का इलाज बेमतलब साबित हो रहा है। राम अवध ने बताया वृद्धा अवस्था में इलाज टेढ़ी खीर बना हुआ है। मुबीन अहमद ने बताया डाक्टर जब तैनात थे तब भवन की सार्थकता थी अब तो हाथी दांत बन गया है। फार्मासिस्ट जी.एस. प्रजापति का कहना है कि चिकित्सक के न होने से वह अपनी जानकारी के अनुसार ही दवा वितरित कर पाते हैं।