यहां तो हर घर नीम
सिद्धार्थनगर : पेड़ों की अधाधुंध कटान से पर्यावरण को जहां खतरा उत्पन्न हो गया है, वहीं तमाम जड़ी बूटिय
सिद्धार्थनगर : पेड़ों की अधाधुंध कटान से पर्यावरण को जहां खतरा उत्पन्न हो गया है, वहीं तमाम जड़ी बूटियां भी नष्ट होती जा रही हैं। ऐसे में एक गांव ऐसा भी है जहां के लोग अपने घरों पर एक पेड़ नीम लगाने का संकल्प ले चुके हैं। आज हालत यह है कि सौ घरों के इस गांव में हर घर नीम का पेड़ शीतलता प्रदान कर रहा है। अब तो यह नीमों के पेड़ वाला गांव बन क्षेत्र में बना हुआ है।
बांसी तहसील के ग्राम सिसई कला में प्रवेश करते ही नीम के पेड़ों की सुगंध आने लगती है। मुस्लिम व दलित बाहुल्य इस गांव के हर घर नीम का पेड़ अब पहचान बन चुका है। किसी किसी घर के दरवाजे पर इन पेड़ों की तादाद तो आधा दर्जन से भी अधिक है। यदि कहा कहा जाये की पूरा गांव ही नीम के छांव में पल बढ़ रहा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। इसके लगाने के पीछे ग्रामीणों का भले ही अलग अलग मत हो पर इससे पर्यावरण सुरक्षा को बढ़ावा मिल रहा है, यह बात तो तय है। वैसे ग्रामीण धार्मिक, वैज्ञानिक व स्वास्थ्य सुरक्षा में इसके महत्व को बताते हैं। गांव के 90 वर्षीय अब्दुल सत्तार इसके महत्व को बताते हुए कहते हैं इन नीम के पेड़ों से हमारे गांव पर संक्रामक रोगों का खतरा नहीं रहता है। यही नहीं फोडे़-फुंसी सहित दांत व पेट के लिए भी इसकी दातून व पत्ती कारगर होती है। हरिहर यादव ने इसके धार्मिक महत्व को बताते हुए कहते हैं कि नीम के पत्ते पर मां शीतला का वास होता हैं। यह पेड़ अपनी शीतलता से गर्मी के दिनों में होने वाले संक्रामक रोगों को रोकने में सहायक तो होता ही है साथ ही प्रदूषित हवा को भी यह स्वच्छ करता है। राम किशोर का कहना है कि शीतला अष्टमी के दिन गांव की अधिकांश हिंदु महिलाएं अपने घरों के सामने लगे नीम के पेड़ के नीचे बैठ उसका पूजन अर्चन करती है तथा रोग बलाय से निजात की प्रार्थना करती हैं। अब्दुल सलाम चौधरी के मुताबिक नीम के पेड़ों से गांव को रोग मुक्त व स्वच्छ बनाने में काफी मदद मिली है। एक दशक से ऊपर का समय बीत गया है गांव में कोई भी बच्चा खसरे के प्रकोप से ग्रसित नहीं हुआ। संक्रामक रोग भी आते ही छू मंतर हो जाते हैं। प्रहलाद, राजकुमार, संतराम आदि का कहना था कि बाबू हमारे घर में तुलसी की तरह नीम की भी पूजा होती है।
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वैसे तो हर पौधे पर्यावरण के लिए जरुरी हैं, लेकिन नीम का पेड़ एक तरह से औषधि है। यह एंटीवाइटिक का कार्य करता है। जिस गांव में भी इनकी संख्या काफी होगी वह वाकई स्वच्छ व प्रदूषण मुक्त होगा।
प्रो. केपी त्रिपाठी
पर्यावरणविद्