अब जालसाजों के जाल में जिला अस्पताल
सिद्धार्थनगर : जगत गुरू की इस धरा पर गुरुघंटालों की फौज है। वह अपने शिष्यों को जालसाजी में पारंगत कर
सिद्धार्थनगर : जगत गुरू की इस धरा पर गुरुघंटालों की फौज है। वह अपने शिष्यों को जालसाजी में पारंगत कर रहे हैं। शिक्षकों की भर्ती से लेकर वित्तविहीन विद्यालयों में फाइलों की अदला-बदली में उनकी पैंतरेबाजी देखने को मिली भी है। अब जिला अस्पताल उनके जाल में है। यहां से डीजी हेल्थ को फर्जी डीओ लेटर भी लिखा जा रहा है। बावजूद इसके जिम्मेदार गुनहगार को वाकओवर पर वाकओवर दे रहे हैं।
ताजा मामला एक लैब टेक्नीशियन के स्थानांत्रण से जुड़ा है। जुलाई माह में सीएमएस के फर्जी हस्ताक्षर से उसके नाम का डीओ लेटर महानिदेशक स्वास्थ्य को लिखा गया। संबंधित एलटी को भी भनक तब लगी जब उसका स्थानांतरण हो गया। संगठन के माध्यम से उसने किसी तरह से तबादला रुकवाने के साथ मामले की सच्चाई जानने में जुट गया। पता चला कि सीएमएस ने ऐसा कोई डीओ लेटर नहीं लिखा है। इतना ही नहीं संगठन के दबाव में डीजी हेल्थ ने तत्काल स्थानीय जिम्मेदार से मामले की सच्चाई जानी। लेटर झूठा होने पर उन्होंने तबादला तो रोक दिया, मगर अभी तक उक्त जालसाज का चेहरा सामने नहीं आ सका, जिसने इतना बड़ा कूचक्र रचा था। कारण अभी तक इस प्रकरण में विभाग द्वारा कोई मुकदमा पंजीकृत नहीं कराया गया। यह और बात है कि इसके लिए डाक्टर पी.कन्नौजिया की अगुवाई में एक जांच अवश्य बिठा दी गई। प्रकरण में अपनी गर्दन फंसती नजर आयी तो सीएमएस ने तत्काल यूटर्न लेते हुए कहा कि मुकदमा वह पंजीकृत कराए, जिसका नुकसान हुआ हो। डीजी हेल्थ का फोन आया था, इस लिए वह सितंबर से इसकी जांच करा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि प्राथमिकी दर्ज कराने की जिम्मेदारी किसी और की है तो विभाग आखिर जांच किस बात की करा रहा है। फिलहाल जिला अस्पताल में यह गोरखधंधा पहला नहीं है। जुलाई माह में ही एक अन्य एलटी के नाम से सीएमएस को फर्जी लेटर लिखकर ब्लड बैंक में विवाद खड़ा करने की कोशिश की गई थी। मई में फर्जी रशीद के जरिए जमकर अवैध धनउगाही की गई है। इस प्रकरण में विभाग जांच भी करा चुका है और दोषी उनकी जानकारी में भी है। बावजूद इसके उसके विरुद्ध अभी तक कोई प्राथमिकी नहीं दर्ज करायी गई। दरअसल यहां 1995 से ही जालसाज सक्रिय भूमिका में हैं। 24 चतुर्थ श्रेणी की नियुक्ति में धाधलेबाजी का मामला कोर्ट पहुंच चुका है। इसे लेकर अभी भी छानबीन जारी है। बावजूद इसके जिम्मेदार प्राथमिकी दर्ज कराने के बजाय उसे विभागीय जांच के नाम पर बचाव का समय देने में जुटा है। हालांकि इस दिशा में अपर जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी अखिलेश नारायण का कहना है कि यदि ऐसा कर रहा है तो गलत है। 419, 420 के मामलों में विभागीय जांच तो होती ही है, मगर इसमें तुरन्त प्राथमिकी दर्ज कराना विभागाध्यक्ष की नैतिक जिम्मेदारी है।
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''मेरे द्वारा कोई डीओ लेटर नहीं लिखा गया। लैब टेक्निशियन एसोसिएशन द्वारा पत्र मिलने से पूर्व ही मैने प्रकरण के जांच के लिए आदेश जारी कर दिए थे। प्राथमिकी मेरे द्वारा नहीं दर्ज करायी जा सकती। वह दर्ज कराए, जिसका नुकसान हुआ हो। पिछले प्रकरण में भी आरोपी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी।''
डा.एन.सी.डिमरी
सीएमएस, जिला अस्पताल, सिद्धार्थनगर