बारह साल में भी उम्मीदों से न जुड़ पाई रेल
सिद्धार्थनगर : रेल भारत की लाइफ लाइन हैं, मगर बुद्धभूमि पर यह वादों के जाल से कभी निकल ही न सकी। ऐस
सिद्धार्थनगर : रेल भारत की लाइफ लाइन हैं, मगर बुद्धभूमि पर यह वादों के जाल से कभी निकल ही न सकी। ऐसा नहीं कि स्थानीय जनप्रतिनिधि इसके प्रति पूरी तरह से उदासीन रहे। उन्होंने आवाजें उठाई। केन्द्र में सरकार भी उनकी रही। बावजूद इसके नवरात्र, दशहरा, दीपावली, छठ, बकरीद जैसे त्योहारों पर गांव की बहुरिये ट्रेनों को निहारती हैं तो आंखें डबडबा जाती है। बातें बहुत हैं। बहाने बहुत हैं। कुछ नहीं है तो पर्व में पति का साथ। मेलों में बच्चों के माथे खुशी का हाथ। कारण बारह साल बाद भी ट्रेन उम्मीदों से जुड़ न पायी।
7 जून 2002। तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार द्वारा गोरखपुर-आनंदनगर-गोंडा ब्राडगेज का शिलान्यास। केन्द्र में भाजपा सरकार और डुमरियागंज से रामपाल सिंह भाजपा सांसद। 2004 केन्द्र में कांग्रेस सरकार और मु.मुकीम स्थानीय बसपा सांसद। सरकार भले कांग्रेस की रही हो, मगर उसे बसपा का समर्थन था। 2009 में कांग्रेस की सरकार और जगदम्बिका पाल स्थानीय कांग्रेस सांसद। 2014 केन्द्र में भाजपा सरकार और पाल स्थानीय भाजपा सांसद। चार लोकसभा कार्यकाल और इन्होंने बुद्ध भूमि से महानगरों तक सीधे ट्रेन चलाने के लिए शिद्दत से प्रयास किए, मगर नतीजे बेदम रहे। गत सरकार में सांसद पाल ने कार्य में तेजी लाए जाने के लिए क्या-क्या नहीं किया। यहां रेल राज्य मंत्री के.एच.मुनियप्पा से लेकर रेल मंत्री पवन बंसल, रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खरगे को लेकर आए। दामन फैलाकर इसके लिए भीख तक मांगा। गत 16 मई को भाजपा की सरकार बनते ही उन्होंने एक बार फिर दावा किया। रेल बजट में इसके लिए 100 करोड़ का बजट भी दिलवाया, मगर अभी तक परियोजना अधूरी है। सप्ताह भर पूर्व उन्होंने एक बार फिर प्रेसवार्ता में कहा है कि दिसंबर तक परियोजना पूरी हो जाएगी, मगर झूठ के पालने में झूलती जनता को इस पर भरोसा कम है। वह कहती है कि जो कार्य 12 वर्षो में नहीं पूरा हो सका 90 दिनों में कैसे पूरा होगा? यहां के ढाई लाख नौजवान रोजगार के सिलसिले में बाहर हैं। कपिया की अनीता का पति मुम्बई रहता है। पारा की अकाला का पति गुजरात में व महदेवा की मेहरबानों का पति दिल्ली में। वह वहां मेहनत मजदूरी कर परिजनों के लिए रुपए जोड़ते हैं। यहां से सीधी ट्रेन न होने का दर्द कोई इनसे पूछे। उनके मुताबिक सरकार चाहे भाजपा की रही हो अथवा कांग्रेस की। हर किसी ने सिर्फ उनकी गरीबी का मजाक उड़ाया है। दो जून की रोटी के लिए उनके बलम परदेश में हैं। त्योहारों पर उनकी भी इच्छा होती है कि घर जाएं। घरवाली व बच्चों के लिए नए कपड़े ले जाएं, मगर यह कैसे संभव है। बार-बार गाड़ी व साधन बदलने से सुरक्षा का डर रहेगा। घर पर सामान लादकर ले जाना भी कठिन है। समय व श्रम अधिक पड़ेगा। ऐसे में घर आना कम ही होता है। खुद तो किसी तरह संतोष भी कर लें, मगर मेलों में खिलौनों को देखकर बच्चे जिद करते हैं तो जवाब नहीं, बल्कि आंखों से सिर्फ पानी निकलता है।
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''इस परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है। यह बड़ी परियोजना है। एक साथ पूरा काम नहीं किया जा सकता। आवागमन प्रभावित हो जाएगा। थोड़ी बहुत समस्याएं तो है। सेकेंड फेज में बलरामपुर-गोंडा कार्य प्रारंभ हो चुका है। शीघ्र ही यह भी पूरा हो जाएगा।''
आलोक सिंह
मुख्य जनसंपर्क अधिकारी
पूर्वोत्तर रेलवे