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बुद्ध भूमि पर दूध की किल्लत

जागरण संवाददाता, सिद्धार्थनगर। आखिर कौन समझेगा बुद्धभूमि के श्वेत क्रांति की पीड़ा। अब तो दूध क

By Edited By: Published: Mon, 29 Sep 2014 10:30 PM (IST)Updated: Mon, 29 Sep 2014 10:30 PM (IST)
बुद्ध भूमि पर दूध की किल्लत

जागरण संवाददाता, सिद्धार्थनगर।

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आखिर कौन समझेगा बुद्धभूमि के श्वेत क्रांति की पीड़ा। अब तो दूध को तरस जाना नियति हो गई है। ग्वाले दूध में पानी नहीं, पानी में दूध मिलते हैं। मुश्किल है सही दूध मिलना। एक उम्मीद थी पैकेट के दूध की। वह भी तो छिन गया। अब तो बस्ती से गाड़ी आने के बाद ही मिलती है दूध, वह भी उम्मीद से कम।

जिले में दूध का उत्पादन लगातार घट रहा है। वर्ष 2008 में यहां 3300 लीटर दुग्ध उपार्जन था। 2010 में 2000 लीटर, 2012 में 1400 लीटर और अब एक हजार लीटर हो गया है। 295 में सिर्फ 74 समितियां चल रही हैं। इनमें से भी महज 49 सक्रिय हैं। अमूमन छह सौ लीटर जिला सहकारी समिति नौगढ़ पहुंच रहा है। दुर्जनपुर-प्रमोद जी मिनी कामधेनु समिति से कभी सौ तो कभी सवा सौ लीटर दूध नियमित मिल रहा है। जोगिया समिति से 47 लीटर दूध मिलता है। अन्य समितियां खस्ता हाल हैं। इन समितियों को सक्रिय करने का प्रयास सिर्फ कागजी है। प्रतिदिन आठ सौ लीटर गोरखपुर दूध भेजने का आदेश है। हालांकि उत्पादन कम होने से आठ सौ लीटर नहीं जा पा रहा है। इसी तरह से बिजनेस प्लान के तहत डुमरियागंज से बस्ती के लिए ढाई सौ लीटर दूध जा रहा है। स्टेट मिल्क ग्रिड के तहत विभाग को एक लाख रुपये प्रति माह का नुकसान उठाना पड़ रहा है। दूध की खपत जब यहां होती थी तो इससे प्रतिमाह सवा दो लाख की विभाग को इनकम हो जाती थी, मगर जब से विभाग की कमान बस्ती के अधिकारी के चार्ज में है। इसकी हालत और भी पतली हो जा रही है। चार्ज लेते ही उन्होंने स्थानीय स्तर पर दूध की बिक्री पर रोक लगा दी है। इससे इनकम बंद हो गई। बस्ती से 45 हजार प्रतिमाह रुपये का परिवहन खर्च कर 150 लीटर दूध मंगाया जा रहा है। बस्ती से बांसी नवोदय विद्यालय के लिए पैकेट का दूध पहुंच रहा है।

दूध की पैकिंग न होने से दिक्कत

यह मुसीबत स्थानीय स्तर पर दूध की पैकिंग न होने से बढ़ी है। यहां पूर्व प्रबंधक दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ आर.सी.दूबे ने मार्च 2012 में ही दूध की पैकेजिंग प्रारंभ करा दी थी। बाद में मशीन में गड़बड़ी दिखाकर मैनुअल पैकिंग बंद करा दी गयी। राजकीय दुग्ध परीक्षक निरूपम द्विवेदी के अनुसार नई मशीन लगने के बाद ही यहां पैकिंग संभव है।

समितियां 30 रुपए प्रतिलीटर की दर से उस दूध की खरीद करती हैं, जिसमें 6.5 फीसद फैट व 9 फीसद बसा रहित होता है। कम व अधिक होने पर रेट भी बदल जाता है। एजेंट 36 रुपए की दर से खुले रूप में दूध की बिक्री करते हैं। 35 रुपए में इन्हें मिलता है। यानी सिर्फ एक रुपए की मुनाफा का काम है। सिर्फ एकत्र करने में विभाग को प्रतिलीटर पांच रुपये का फायदा पहुंच रहा है। बाजार में चालीस रुपये लीटर की दर से भी दूध उपलब्ध नहीं है।

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''यह सही है कि यहां से दूध गोरखपुर और बस्ती के लिए भेजा जा रहा है। जिले में पैकिंग की व्यवस्था नहीं है। समितियां भी निष्क्रिय हैं। यहां का वित्तीय चार्ज बस्ती के अधिकारी के पास है, इसलिए कुछ दिक्कतें सामने आ रही हैं। वह सिर्फ महीने में एक या दो दिन का ही समय दे पाते हैं।''

जेबी सिंह

प्रभारी, दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड, सिद्धार्थनगर


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