कागज में बना गन्ना क्षेत्र पर धरातल पर नहीं
मुकेश कुमार, श्रावस्ती जिला बनने के 19 साल बाद गन्ना विभाग ने भी इसे अपने अभिलेखों में 'श्रावस्ती'
मुकेश कुमार, श्रावस्ती
जिला बनने के 19 साल बाद गन्ना विभाग ने भी इसे अपने अभिलेखों में 'श्रावस्ती' को दर्ज कर लिया पर यहां के गन्ना किसानों की तस्वीर न संवरी। अब भी उन्हें अपने गन्ने की बिक्री व भुगतान संबंधी औपचारिकताओं के लिए पड़ोसी जिलों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इससे गन्ना उत्पादन में अपार संभावनाएं होने के बावजूद यहां के किसान अपनी किस्मत को दोष देने के लिए विवश हैं।
कभी बहराइच जिले अंग रहे श्रावस्ती को जिला बने 19 साल बीत चुके हैं। गन्ना उत्पादन क्षेत्र होने के बावजूद इस दौरान प्रदेश में गठित होने वाली सरकारों ने इसे गन्ना एवं चीनी उद्योग के नक्शे पर जिले का दर्जा दिलाने की पहल नहीं की। नतीजतन श्रावस्ती जिले का गन्ना किसान बलरामपुर व बहराइच के बीच हिचकोले खाता रहा। लगभग छह माह पहले श्रावस्ती को गन्ना विभाग ने जिले का दर्जा दे दिया। इस संबंध में गन्ना आयुक्त विपिन कुमार द्विवेदी ने आदेश भी जारी कर दिया, लेकिन यहां गन्ना विभाग की कोई गतिविधि नहीं शुरू हुई। गन्ना विभाग की सारी गतिविधियां बहराइच जिले से संचालित हो रही हैं। यही कारण है कि यहां का किसान अपने गन्ना क्षेत्रफल का सर्वे कराने से लेकर कोटा निर्धारित करने तक के लिए जिला गन्ना अधिकारी बहराइच पर निर्भर है, जबकि गन्ना बेचने के लिए चिलवरिया, बलरामपुर व तुलसीपुर की चीनी मिलों पर निर्भर है। घटतौली हो या फिर उन्हें अन्य तरह के शोषण का शिकार होना पड़े, कोई भी सुनवाई करने वाला यहां नहीं है। यहां तक की गन्ना विकास समिति का वजूद जिला मुख्यालय पर भी नहीं है। यह हाल तब है जब यहां गन्ना किसानों की तादाद लगभग 50 हजार है और वे चुनावी समर को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं। बावजूद इसके, किसानों की यह समस्या राजनीतिक दलों के एजेंडे में नजर नहीं आती है। कभी-कभार भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ता जरूर आवाज बुलंद करते हैं।
बोले किसान
भाकियू ने उमाशंकर मिश्र का कहना है कि किसान जातियों में बंटा है। संगठित न होने के कारण उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती की बनी हुई है। वे कहते हैं कि किसान एकजुट हो तो किसी भी राजनीतिक दल अथवा उसके प्रतिनिधियों की हिम्मत ही नहीं होगी कि उसे नजरंदाज कर दें। अवधराम शुक्ल ने बताया कि किसान पिछले चार-पांच साल से उपेक्षित हैं। गन्ने का दाम इस दौरान न बढ़ने से गन्ने की खेती घाटे का सौंदा बन गई है। महराज प्रकाश तिवारी का कहना है कि किसानों के लिए गन्ने की खेती में लागत तो बढ़ी है। चीनी का दाम भी बढ़ा है। अन्य उत्पाद सीरा, बिजली, खोई व फ्रेसमड खाद से चीनी मिलें अच्छा खासा लाभ उठा रही हैं, लेकिन किसानों को देने के नाम पर केवल घटतौली और क्रय केंद्रों पर अव्यवस्था का 'तोहफा' दे रही हैं। ऐसी ही राय इब्राहिम की भी है।