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मजबूरी की बेड़ियों में कैद हुआ 'भविष्य'

शामली: मजबूरी की बेड़ियों ने उनके कदम रोक रखे हैं। किसी को घर खर्च चलाने की खातिर अपने ख्वाबों को कुच

By JagranEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 10:44 PM (IST)Updated: Tue, 23 May 2017 10:44 PM (IST)
मजबूरी की बेड़ियों में कैद हुआ 'भविष्य'
मजबूरी की बेड़ियों में कैद हुआ 'भविष्य'

शामली: मजबूरी की बेड़ियों ने उनके कदम रोक रखे हैं। किसी को घर खर्च चलाने की खातिर अपने ख्वाबों को कुचलना पड़ रहा है तो कोई जिम्मेदारियों के किसी और बोझ तले घुट रहा है। कुछ ऐसे हैं, जो हसरत के पंख लगाकर स्कूल में गये लेकिन हालात की कैंची ने उम्मीदों के पर कतर डाले।

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खेड़ीकरमू के बाहर गरीबों की बस्ती में रहने वाले कुछ बच्चों को स्कूल की कुछ बातें याद हैं तो कोई इन्हें भूल चुका है। स्कूल जाने के बाद उनके नए दोस्त भी बने मगर परिवार की स्थिति के चलते स्कूल छोड़ना पड़ गया।

सर्वशिक्षा अभियान में हर साल बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाने के लिए नामांकन अभियान के साथ ही जागरूकता रैली निकाली जाती हैं। हाउस होल्ड सर्वे भी होते हैं लेकिन इसके बावजूद बच्चे कुछ दिन बाद स्कूल जाना छोड़ देते हैं। मंगलवार को जागरण टीम ने ऐसे बच्चों से बातचीत कर उनका मन टटोलने की कोशिश की।

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परिजनों ने स्कूल जाने से किया मना

सोनम का कहना है कि वह स्कूल गई थी अभी भी पढ़ने का मन करता है मगर स्कूल में घंटों तक ज्यादा देर तक उससे बैठा नहीं जाता था। इसलिए स्कूल छोड़ दिया। परिजन भी स्कूल जाने के बजाय काम करने के लिए कहते हैं।

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लड़की होने के कारण रोक दिये कदम

आंचल का कहना है कि उसके घर से स्कूल काफी दूर है। कई बार परिजनों को स्कूल भेजने के लिए कहा मगर उन्होंने काम करने के लिए कहा। बोले लड़की तो बस काम करती है। पढ़ाई-लिखाई से उन्हें कोई मतलब नहीं होता है।

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नहीं पढ़ने दे रहीं मजबूरी की बेड़ियां

रानी का कहना है कि पिता सुबह ही खाने कमाने के लिए घर से भेज देते हैं। जैसे-तैसे शाम तक घर खर्च के लिए पैसे इकट्ठे करती हूं। परिजनों से कई बार स्कूल भेजने के लिए कहा लेकिन उन्होंने काम करने पर जोर दिया। कहती हैं, अन्य बच्चों को कंधे पर बैग टांगे देखकर उसका मन भी स्कूल जाने का करता है।

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काम बहुत है, कैसे जाऊं स्कूल

संदीप का कहना है कि स्कूल जाए तो घर कैसे चले। घर वाले रोजाना काम करने के लिए भेज देते हैं।। एक बार पहले स्कूल गया था मगर खर्चा न उठा पाने चलते घर वालों ने मना कर दिया।

जिले में छह हजार बच्चे ड्राप आउट

जनपद शामली में छह हजार से अधिक ड्रापआउट बच्चे हैं। वहीं बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने तीन हजार बच्चों का दोबारा से स्कूलों में नामांकन कराया है।

'ड्रापआउट बच्चों को स्कूल लाने के लिए जिले भर में नामांकन अभियान चलाया जा रहा है। शिक्षक घर-घर जाकर परिजनों से अपने बच्चों को स्कूल भेजने की अपील कर रहे हैं। हाउस होल्ड सर्वे भी कराया जा रहा है। जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं, उन्हें दोबारा स्कूल में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं'।

चंद्रशेखर, बीएसए शामली।


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