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सूख रहा खेतों का सीना, प्यासी रही फसल

By Edited By: Published: Thu, 21 Aug 2014 11:19 PM (IST)Updated: Thu, 21 Aug 2014 11:19 PM (IST)
सूख रहा खेतों का सीना, प्यासी रही फसल

शाहजहांपुर : चीनी मिलों की उपेक्षा से बदहाली के कगार पर पहुंचे किसानों को प्रकृति से भी मार मिली। बकाया भुगतान न मिलने पर दस हजार हेक्टेयर गन्ना हेक्टेयर से मुंह मोड़ने वाले किसानों ने धान रोपाई से भी हाथ खींचे लेकिन विकल्प न देख इंद्रदेव के भरोसे जो धान रोप दिया, बारिश न होने पर अब उसे जीवित रखना भारी पड़ रहा है। मौसम की बेरुखी देख करीब दस फीसदी किसान सिंचाई से हिम्मत भी हार चुके है। उन्होंने धान की फसल को चारे के लिए काटना शुरू कर दिया है। कृषि अधिकारी का कहना है कि यदि 30 अगस्त तक बारिश न हुई तो पचास फीसदी तक खड़ी फसल को किसान नष्ट कर सकते हैं।

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एक ओर कुआं, दूसरी तरह खाई अन्न देवता किसान पर इस वर्ष दोहरी मार पड़ी है। चीनी मिलों से गन्ना बकाया भुगतान न मिलने पर कर्ज लेकर धान की रोपाई की। धान की रोपाई, खाद, बीज, पेस्टीसाइड, इंसेक्टीसाइड तथा हर्बीसाइड में जो खर्च आया, बारिश न होने पर लागत निकलना भी मुश्किल साबित होगा। किसानों को कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए पैसे नहीं होंगे। चीनी मिलों से बकाया भुगतान मिलने के कोई आसार नहीं दिख रहे। चीनी मिलों को सबक सिखाने के लिए किसानों ने गन्ना रकबा घटाकर चुनौती पेश की, लेकिन मौसम की बेरुखी ने उन्हें धर्म संकट में डाल दिया। अब तो किसानों के सामने एक तरफ कुंआ और दूसरी ओर खाई जैसी स्थिति हो गई है।

उत्पादन लागत बढ़ेगी

बारिश न होने से किसानों को टयूबवेल से सिंचाई करनी पड़ रही है। बिजली संकट की वजह से सरकारी नलकूप चल नहीं पा रहे। डीजल महंगा होने से पंपसेट नलकूप से सिंचाई किसानों के लिए भारी पड़ रही है। इससे उपज लागत डेढ़ गुना तक बढ़ रही है।

संकट में ताज : राइस इंडस्ट्री पर भी असर

शाहजहांपुर : कई दशक से चावल उत्पादन में सूबे का शहंशाह बना शाहजहांपुर इस बार लाज बचाने के कगार पर है। सूखे की दस्तक देख राइस इंडस्ट्री से जुड़े उद्योगपतियों ने पचास फीसदी चावल उत्पादन गिरने की संभावना जताई है। इससे चावल निर्यात पर भी असर पड़ेगा और विदेशी मुद्रा भी नहीं आ पाएगी।

राइस मिलर्स एसोसिएशन के सचिव अनिल गुप्ता का कहना है कि फ्लावरिंग के समय बारिश न होने से उत्पादन के साथ ही धान की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा। सामान्य दशा में जनपद में प्रतिवर्ष पांच से छह लाख कुंतल चावल का उत्पादन होता है। इसके लिए यहां करीब 180 राइस मिल लगी हुई है। मिलर्स सरकारी खरीद केंद्रों से मिलने वाले धान की कुटाई कर सीएमआर राइस सरकार को मुहैया कराते हैं। यहां का मोटा चावल मुस्लिम देशों की पहली पसंद है। लेकिन इस बार सूखे की दस्तक से राइस उद्योग पर पचास फीसदी तक असर पड़ सकता है। इससे सरकार को राजस्व के साथ ही चावल निर्यात से मिलने वाली विदेशी मुद्रा से भी वंचित होना पड़ सकता है।

इंसेट

कुल राइस मिल : 180

बंद हो चुके राइस मिल : 8

फ्लोर मिल : 10

इंसेट

अब तो तोरिया ही सहारा : डीएओ

30 अगस्त तक पानी न बरसा तो किसानों को चाहिए कि वह नलकूप से जितनी फसल की बेहतरी से सिंचाई कर सके, उतनी ही फसल रखें। शेष फसल को चारे के रूप में प्रयोग करके खेत की जुताई करके तोरिया बो दे। इससे गेहूं बुवाई के समय तक तोरिया तैयार हो जाएगी और किसानों के घाटे की काफी हद तक भरपाई भी हो सकती है।

अखिलानंद पांडेय, जिला कृषि अधिकारी।

इंसेट

खरीफ फसल के क्षेत्रफल पर एक नजर (हेक्टेयर) में

वर्ष :2013-14, 12-13, 14-15

धान : 198105, 215656, 20086

मक्का : 1567, 1695, 1603

ज्वार : 866, 185, 875

बाजरा : 3199, 3581, 3231

मूंगफली: 4688, 4279, 4711

तिल : 7230, 8532, 7266

सोयाबीन : 18, 18, 18

उर्द : 8176, 9263, 8258

मूंग : 74, 63, 75

अरहर : 202, 202, 204

योग : 243344, 224145, 226327


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