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मुल्क की सलामती को उठे हजारों हाथ

जागरण संवाददाता, शाहजहांपुर : मुकद्दस रमजान के दूसरे अशरे के पहले जुमे को मुस्लिमों ने बारगाह-ए-इलाह

By Edited By: Published: Fri, 03 Jul 2015 11:31 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2015 11:31 PM (IST)
मुल्क की सलामती को उठे हजारों हाथ

जागरण संवाददाता, शाहजहांपुर : मुकद्दस रमजान के दूसरे अशरे के पहले जुमे को मुस्लिमों ने बारगाह-ए-इलाही में हाजिर होकर, नमाज-ए-जुमा अदा की। जामा मस्जिद सहित सभी मस्जिदों में जुमे की नमाज के लिए खासे इंतजाम किए गए थे। इस दौरान सभी ने मुल्क की तरक्की व सलामती की दुआ की।

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रमजान-उल-मुबारक के तीसरे जुमे को मुस्लिमों ने जामा मस्जिद, अंटा चौराहा वाली मस्जिद, नूरी मस्जिद, लाल इमली चौराहा वाली मस्जिद, महुए वाली मस्जिद, जज साहब वाली मस्जिद, डिप्टी साहब वाली मस्जिद, नगर पालिका वाली मस्जिद, मस्जिद खूरमा, कटहल वाली मस्जिद, मलइया वाली मस्जिद, मलकों वाली मस्जिद आदि मस्जिदों में नमाज अदा की। जामा मस्जिद में जुमा नमाज से पहले खतीब व इमाम मौलाना हुजूर अहमद मंजरी ने खिताब में कहा कि रमजान-उल-मुबारक का पूरा महीना रहमतों, बरकतों और नेमतों का है। इसका पहला अशरा रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत का और तीसरा अशरा निजात का है। यह दूसरा अशरा चल रहा है इसमें गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए और सिदक-ए-दिल से गुनाहों से, बुरे कामों से तौबा करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि अगला अशरा निजात का है या दिन जब बंदा पूरे महीने रोजा रखता है तो अल्लाह तआला असको जहन्नम से बरी फरमा देता है। इसी अशरे में 21 तारीख से लेकर ईद का चांद देखे जाने तक मुहल्ले की मस्जिद में मुसलमानों का एतकाफ करना सुन्नत-ए-किफाया है यानि किसी आदमी ने भी एतकाफ कर लिया तो सबकी तरफ से एतकाफ अदा हो जाएगा। अगर किसी ने एतकाफ नहीं किया तो सब गुनाहगार होंगे। इसी अशरे में निजात की एक रात है। जो हजार महीने से अफजल है और वह रात ताक रातों में से कोई एक रात है। बाअज उलमा ने फरमाया कि वह रात 27वीं रात है इस रात में इबादत करने वालों को एक हजार महीने की इबादत का सवाब मिलता है। अंटा चौराहा वाली मस्जिद में मौलाना अजीमुद्दीन कासमी ने कहा कि माह-ए-रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत और बखशिश का है जिसमें कसरत के साथ परवर दिगारे आलम की तरफ से गुनहगारों की माफी का एलान किया जाता है। लिहाजा इसमें इस्तगफारा की कसरत और ज्यादती करनी चाहिए। हदीस पाक में आता है कि कयामत उस वक्त तक कायम नहीं होगी जब तक एक भी अल्लाह अल्लाह करने वाला इस रूये जमीन पर बाकी है। नमाज के बाद मस्जिदों के इमामों ने मुल्क में अमन व अमान की दुआएं कीं।


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