अपनों ने दुत्कारा, देवी ने दिया सहारा
शाहजहांपुर : उम्र के आखिरी पड़ाव पर कदम रखते ही मोतीलाल को उनके इकलौते पुत्र और पुत्रवधू ने ठुकरा दिय
शाहजहांपुर : उम्र के आखिरी पड़ाव पर कदम रखते ही मोतीलाल को उनके इकलौते पुत्र और पुत्रवधू ने ठुकरा दिया। मोतीलाल की शारीरिक स्थिति भी ऐसी नहीं थी जो वह मजदूरी कर पेट भर पाते, क्योंकि मोतिया¨बद उनकी दोनों आंखों की रोशनी लगभग खा चुका था। परेशानहाल मोती अपनी किस्मत को ही ताना मार रहे थे, तभी उन्हें किसी व्यक्ति ने बलेली गांव में स्थित वृद्धाश्रम के बारे में बताया। करीब दो साल पहले वह वृद्ध आश्रम में पहुंचे, यहां उनकी दोनों आंखों का आपरेशन करवाया गया। अब मोतीलाल सुकून से अपनी ¨जदगी के बाकी दिन गुजार रहे हैं। अकेले मोतीलाल ही नहीं वक्त के मारे ऐसे कई लोगों को ¨जदगी जीने का हौंसला इस वृद्धाश्रम से मिला है। खास बात यह है कि वृद्ध आश्रम का संचालन बगैर किसी सरकारी मदद के हो रहा है।
निगोही रोड पर स्थित है वृद्ध आश्रम
शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से निगोही जाने वाले रास्ते पर दस किलोमीटर दूर दाहिनी तरफ दो मंजिला इमारत में विलासो देवी वृद्ध सेवा आश्रम चल रहा है। विलासो देवी ददरौल विकास खंड के ग्राम पंचायत बलेली की मौजूदा प्रधान हैं। पूर्व में उनकी पुत्रवधू क्षमा वर्मा प्रधान रह चुकी हैं, क्षमा इस वक्त जिला पंचायत सदस्य हैं। दो दशक से बलेली ग्राम पंचायत पर विलासो देवी का परिवार प्रतिनिधित्व कर रहा है। ग्राम पंचायत में उत्कृष्ट कार्यों के लिए विलासो देवी को वर्ष 2012-13 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सम्मान समारोह में ही उन्हें प्रदान की गई नौ लाख रुपये की रकम को किस कार्य में खर्च करने का विकल्प भी पूछा गया था। विलासो देवी ने गांव में वृद्ध आश्रम बनवाने की घोषणा की थी। इसी दिशा में कार्य शुरू कर दिया गया और देखते-देखते विलासो देवी की घोषणा ने मूर्तरूप ले लिया। खास बात यह है कि विलासो देवी ने सड़क किनारे स्थित एक बीघा से ज्यादा अपनी निजी भूमि पर वृद्ध सेवा आश्रम का निर्माण कराया। दो मंजिला भवन में ग्राउंड फ्लोर पर मी¨टग हॉल समेत दो कमरे तथा दो कमरे प्रथम तल पर हैं। तकीबन ढाई साल से आश्रम में वृद्धों और गरीबों की सेवा की जा रही है। समय-समय पर यहां स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया जाता है।
सेवा से मिलता है दिल को सुकून : विलासो(27 एसएचएन 22)
ग्राम प्रधान विलासो देवी कहती हैं फोटो कि मौजूदा दौर में बुजुर्गों के प्रति अपनों का उपेक्षित रवैया रहता है, जबकि उम्र के आखिरी पड़ाव पर बुजुर्गों को सहारे की जरूरत होती है। गांव में ही अक्सर गरीब असहाय लोग मदद की गुहार करने घर पर आते थे, हमारा परिवार भोजन कपड़ा आदि मुहैया करा देता है। बुजुर्गों की सेवा कर दिल को सुकून मिलता है। यही सोचकर हमने वृद्ध आश्रम की स्थापना का संकल्प लिया। भविष्य में जरूरत पड़ी तो आश्रम का विस्तार करेंगे। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की सेवा की जा सके।
यहां न पहुंचते तो मर जाते : मोतीलाल(27 एसएचएन 20)
निकटवर्ती गांव टिकरी निवासी मोतीलाल करीब दो साल से आश्रम में रह रहे हैं। कहने लगे कि साहब, सगे बेटा बहू ने हमें दुत्कार कर निकाल दिया था, अगर हम यहां (आश्रम) में नहीं आते तो भूखे-प्यासे बीमारी में कब के मर जाते।
हमारे परिवार को दिया सहारा : शेरपाल(27एसएचएन 19)
मीरानपुर कटरा निवासी शेरपाल बताते हैं कि मेहनत मजदूरी कर किसी तरह परिवार पाल रहे थे, लेकिन बीमारी ने हमें कंगाल सा बना दिया। तब हम तो पूरे परिवार के साथ यहां मदद की गुहार करने पहुंचे। फिलहाल हम पत्नी व चार बच्चों के साथ आश्रम में रह रहे हैं। यहां सब लोग मेलजोल के साथ रहते हैं।
यहां मिला जीने का हौसला : जदुवीर(27एसएचएन 18)
पुवायां क्षेत्र के गांव गरबा निवासी जदुवीर बताते हैं कि इकलौती बिटिया विमला का विवाह हो गया। बीमारी से पत्नी लौंगश्री की मृत्यु हो गई। बिटिया ने अपने पास रखने का दबाव डाला, लेकिन हमने मना कर दिया। अकेले होने से मन में निराशा बढ़ती जा रही थी. लेकिन आश्रम में आकर फिर से जीने का हौसला मिल गया।
पिता की इच्छा पूरी हुई : रामतीर्थ
(27एसएचएन 21)
आश्रम की देखरेख का जिम्मा विलासो देवी के पुत्र रामतीर्थ पर है। रामतीर्थ के मुताबिक उनके पिता बालक राम का निधन तीन वर्ष पूर्व हो चुका है, लेकिन पिता हमेशा बड़े-बूढ़ों की सेवा करने को प्रेरित करते थे। अब आश्रम के जरिये सेवा कार्य होने से उनकी इच्छा पूरी हो गयी है। उनके मुताबिक विनोवा सेवा आश्रम के संस्थापक रमेश भइया एक बार आश्रम में आए थे, उन्होंने सरकारी स्तर से मदद दिलाने का आश्वासन भी दिया। फिलहाल तो आश्रम की व्यवस्था का खर्चा हम ही उठा रहे हैं।