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किसानों की मुश्किल बढ़ाने लगी रोजा मिल

शाहजहांपुर : कभी क्षेत्र के किसानों का नगदी फसल की ओर रुझान बढ़ाने का सबब बनी चीनी मिल इन दिनों किसा

By Edited By: Published: Fri, 29 May 2015 12:15 AM (IST)Updated: Fri, 29 May 2015 12:15 AM (IST)
किसानों की मुश्किल बढ़ाने लगी रोजा मिल

शाहजहांपुर : कभी क्षेत्र के किसानों का नगदी फसल की ओर रुझान बढ़ाने का सबब बनी चीनी मिल इन दिनों किसानों को दर्द दे रही है। मिल पर मौजूदा समय में मिल पर 29.80 लाख रुपये बकाया हैं। प्रबंधन के मुताबिक चीनी मिल प्रति वर्ष करोड़ों के घाटे से गुजर रही है वही किसान भुगतान के लिए मिल से लेकर अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं। बकाया के साथ किसानों के सामने डीजल की बढ़ती कीमतों तथा खाद, बीज के कारण क्षेत्र के किसानों का रुझान गन्ने की खेती से कम हो रहा है।

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जानकारों की मानें तो अंग्रेजी हुकुमत के दौरान शहर से करीब पांच किमी दूर रौसर गांव के पास केरू एंड कंपनी के नाम से शराब और चीनी मिल की स्थापना की गई थी। अधिकारियों का आना जाना शहर के सटे मुहल्ले में होने के कारण मुहल्ला का नाम केरूगंज नाम पड़ गया। देश की आजादी के बाद वर्ष 1973 में चीनी मिल बिरला ग्रुप और शराब फैक्टी विजय माल्या ग्रुप के आधिपत्य में आ गई थी। चीनी मिल बिरला ग्रुप के हाथों आने के बाद किसानों में अपने गन्ने के उचित दाम के साथ गन्ना खेती से एक नया आयाम और क्षेत्र के विकास की एक नई किरण जागी लेकिन किसानों के सारे अरमान कुछ ही सालों में मिट्टी में मिल गए। मिल अधिकारियों के अनुसार गन्ना का अधिक रेट और चीनी का गिरता भाव मिल को घाटे से उबरने ही नहीं दे रहा है।

गत वर्ष चीनी मिल के आंकड़ों के मुताबिक गन्ना के रेट और चीनी के रेट के चलते मिल घाटे में चल रही है। साल 2014-2015 में करीब 32 करोड़ का नुकसान होने की संभावना बताई जा रही है। पिछले साल चीनी मिल क्षेत्र के 396 गांव के किसानों ने 12,547 हेक्टेयर गन्ने का उत्पादन किया था, जिसमें 24,000 किसानों के सापेक्ष करीब 18,000 किसानों करीब 73 लाख कुंटल गन्ना चीनी मिल को मिला था। जिससे करीब तीन लाख 76 हजार कुंटल चीनी का उत्पादन किया गया था चीनी का बजार रेट और उत्पादन में आई लागत की बात करें तो दोनों में भारी अंतर को देखते हुए मिल अधिकारी गत वर्ष मिल को 32 करोड़ नुकसान होना मान रहे हैं।

इस मामले मे चीनी मिल के जीएम वीके मालपाणी ने बताया कि मिल में चीनी बनाने में करीब 3500 सौ रुपये प्रति कुंटल खर्च आ रहा है जबकि बाजार रेट की बात करें तो 2450 ही है जो मिल को होने वाले नुकसान का मुख्य कारण है।

जिला गन्ना अधिकारी बीके पटेल ने बताया कि रोजा चीनी मिल पर वर्तमान में किसानों का करीब 29.80 लाख का बकाया है। जिसको जल्द से जल्द किसानों को दिलाने का प्रयास जारी हैं।

अन्नदाता की बात

शुगर मिल क्षेत्र के कनेंग निवासी किसान शरद कुमार ¨सह ने बताया कि मिल प्रशासन को छोटे और बड़े किसानों में कोई भेद नहीं करना चाहिए। किसानों को गन्ने की पर्ची वितरण का काम गन्ना समिति का होता है लेकिन अधिकारियों और मिल प्रशासन की मिलीभगत के चलते मिल द्वारा पर्ची का वितरण किया जाता है। समिति अपना काम नहीं करती इसलिए किसानों को समस्या होती है।

जमालपुर निवासी रमेश चंद्र ने बताया कि किसान अपनी फसल के लिए साल पसीना बहाता है लेकिन चीनी मिलों की मनमानी के चलते किसानों को भुगतान के लिए इतना दौड़ाया जाता है कि अगली फसल पैदा करने के लिए लाखों का कर्जदार हो जाता है। सर्वे से लेकर भुगतान होने में किसानों को परेशान ना किया जाए तो गन्ना से अच्छी कोई फसल नहीं है।

वाडीगांग निवासी किसान सगीर उर्फ नथ्थू खां का कहना है कि पिछले साल उन्होंने रोजा चीनी मिल को एक लाख से अधिक का गन्ना बेचा था लेकिन मिल के चक्कर लगाते लगाते परेशान होने के बाद भी करीब 40 हजार उनका बकाया है। गन्ना की फसल में खाद और पानी के लिए पैसा नहीं है लेकिन मिल प्रशासन उनकी सुनने को तैयार नहीं, भुगतान के लिए तारीख पर तारीख बताए जा रहे हैं।

कनेंग निवासी नवनीत ¨सह ने बताया कि अगर चीनी मिल प्रशासन सर्वे में लगाए गये कर्मचारियों पर लगाम कसने के साथ सर्वे ठीक करा ले तो किसानों को भुगतान से पहले होने वाली समस्याओं से निजात मिल जाए। मिल क्षेत्र में गन्ना बिक्री मामले में माफिया का ही राज चलता है जिससे भूमिहीन को पर्ची और जिनके खेतों में गन्ना खड़ा रहता है। उनको अपना गन्ना औने पौने दामों पर बिचौलियों को बेचना पड़ता है। इस पूरी व्यवस्था में सर्वे में जुडे कर्मचारी से लेकर अधिकारी की साठगांठ रहती है, अगर सर्वे ठीक होगा तो पर्ची वितरण के समय किसानों को परेशान नहीं होना पड़ेगा।

रौसर गांव निवासी गन्ना किसान व समाजसेवी श्यामबाबू दीक्षित ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से किसानों के भुगतान में हो रही देरी किसानों के हित में नही है। यह अलग बात है कि गांव में चीनी मिल होने से रोजगार के साधनों में बढ़त हुई है, वहीं ट्रकों को लाइन में खड़ा न करने के कारण जाम की स्थित के लिए मिल प्रशासन को ध्यान देना चाहिए, जिससे किसानों के साथ स्थानीय लोगों को परेशानी का सामना ना करना पड़े।

बसुलिया निवासी किसान रामौतार दीक्षित का कहना है कि चीनी मिल प्रशासन को छोटे और बड़े किसानों में भेद नहीं करना चाहिए साथ ही मिल बुआई का प्रचार प्रसार करती है लेकिन भुगतान पर ध्यान नहीं देती है। एक बार भुगतान लेट हो जाने से किसान की कई फसलें लेट हो जाती हैं जिसका खमियाजा किसान को कई सालों तक उठाना पड़ता है।


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