नंबर के खेल में हुईं नौ मौतें
शाहजहांपुर : पलिया स्टेट हाईवे पर हुई दिल को दहला देने वाली सड़क दुर्घटना की जड़ में नंबर का खेल अहम
शाहजहांपुर : पलिया स्टेट हाईवे पर हुई दिल को दहला देने वाली सड़क दुर्घटना की जड़ में नंबर का खेल अहम रहा। पुवायां में नंबर पहले पाने को मैक्स चालक ने गाड़ी इतनी तेज दौड़ाई की नौ लोग कभी न लौट पाने वाले स्थान पर जा पहुंचे। हादसे की पटकथा शाहजहांपुर में ही लिख गयी जब सवारियों से भरे दो वाहन एक साथ रवाना होकर अड्डे पर पहले पहुंच नंबर पाने को हाईवे पर हवा से बातें करने लगे थे। ओवरलोड मैक्स ने रफ्तार पकड़ी तो अनियंत्रित होकर ट्रक से जा भिड़ी।
यातायात माह में हुए हादसों, लक्ष्य पूर्ति के लिए 'खाकी', परिवहन विभाग के डंडे ने डग्गामार वाहनों की अर्थ-गणित बिगाड़ दी थी। यातायात माह बीतते ही पहरेदारों ने मुंह मोड़ा तो रुपये कमाने की होड़ सी मच गयी। उसी अंधी दौड़ में शुक्रवार को नौ बेगुनाहों की बलि चढ़ गयी। बताते हैं शाहजहांपुर से दो यात्री वाहन एक साथ रवाना हुए। एक अड्डे से सवारियां लोडकर रवाना हुआ था जबकि दूसरा सड़क से दो-तीन सवारी बैठाकर पुवायां के लिए भागा। निजी वाहनों की गणित मुताबिक अड्डे पर पहले पहुंचने वाला ही सवारियां भरेगा। इसी अर्थ-गणित ने सवारियां भर कर निकले मैक्स चालक में जुनून भर दिया। अड्डे पर ही सवारी ओवरलोड होने से उसे पुवायां अड्डे पर पहले पहुंचना ही सूझ रहा था। नतीजतन शाहजहांपुर अड्डे से छूटने के कुछ देर बाद ही मैक्स चालक हाईवे पर हवा से बातें करने लगा। ओवरलोड होने से अनियंत्रित हुई मैक्स सिंधौली में सामने से आ रहे ट्रक में जा भिड़ी। जबरदस्त हादसे में नौ मौतें, दर्जन भर का घायल होना मैक्स के ओवरलोड होने का परिचायक है।
इंस्पेक्टर के निलंबन से ठंडी पड़ी पहरेदारों की बेचैनी
शाहजहांपुर : सिंधौली में जबरदस्त हादसे की भनक ने पहरेदारों की नींद उड़ा दी। मौतों का आंकड़ा पहले दो फिर तीन के बाद पांच तक पहुंचा। पल-पल की बढ़ोत्तरी पहरेदारों की नींद हराम कर रखी थी। थानेदार, परिवहन अधिकारी हादसे में घायलों, मरने वालों की संख्या के बारे में जानकारी जुटा रहे थे। असल में पहरेदार हादसे की गाज खुद पर गिरने को लेकर परेशान थे। यातायात माह नवंबर में रोजा की सड़क खून से सनी थी। सात मौतों के बाद प्रशासन ने तेवर सख्त करते हुए हादसा होने पर परिवहन एवं इलाकाई थानेदार के निलंबन की बात कही थी। जबरदस्त हादसे को लोगबाग भूल भी नहीं सके थे कि 25 नवंबर को आठ मौतों से जिला दहल उठा। प्रशासन की हिदायत मीडिया में सुर्खियां बनी। बहरहाल जैसे-तैसे अधिकारी मीडिया से बचते-बचाते मौके को टाल गए। लेकिन महीना गुजरने से पहले नौ मौतें वाकई लापरवाही की पराकाष्ठा दर्शाने वाली रही। पहरेदार सोचते रहे कि गाज किस पर गिरेगी। कहीं अधिकारी शाहजहांपुर से लेकर सिंधौली-पुवायां तक के थानेदारों, चौकी प्रभारियों को कार्रवाई की जद में न ले ले। पहरेदारों की धड़कनें तेज हुईं थी कि इंस्पेक्टर सिंधौली सोनकर बाबू के निलंबन की खबर ने बहुतों को राहत दे दी। अहम रहा कि हादसे में नौ मौतें हुई थी। वीभत्स सड़क दुर्घटना की जड़ में ओवरलोडिंग एवं रफ्तार अहम वजह भी रही। हालांकि सोनकर बाबू के निलंबन पर पुलिस विभाग में तरह की चर्चाएं सुर्खियों छायीं रही।
.. तो कब तक बलि चढ़ते रहेंगे बेगुनाह
शाहजहांपुर : 11 माह, 409 हादसे, 253 मौतें सड़क पर व्यवस्था की बेपरवाही दर्शाने को पर्याप्त है। आंकड़ों में गत वर्ष 381 हादसे, 207 मौतें, 289 घायलों की तादाद बेपरवाही को मजबूती दे रही है। साल-दर-साल करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद हादसों, मौतों, घायलों का बढ़ता आंकड़ा दवा ज्यों-ज्यों हुई मर्ज बढ़ता गया की कहावत को चरितार्थ कर रही है। सरकारी आंकड़ों का सरकार संज्ञान ले तो हाकिमों के गले में कार्रवाई का फंदा पड़ जाएगा।
सिकुड़ती सड़कें, आबादी में बेतहासा वृद्धि सबसे बड़ी मुसीबत है। विपरीत परिस्थितियों में सड़कों पर सामंजस्य बिठाने को सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है। मसलन ट्रैफिक कायदों के अनुपालन को जागरुकता, आधुनिक ट्रैफिक उपकरणों के उपयोग, सड़कों की ट्रैफिक इंजीनिय¨रग के लिहाज से बनावट इत्यादि। उसके बावजूद जवाबदेही सुनिश्चित न होने से सरकारी मशीनरी बेलगाम है। आंकड़ों के आइने में देखें तो लापरवाह चेहरे नजर आ जाएंगे। गौर फरमाएं तो वर्ष 2009 में 257 हादसों में 147 जानें गई थीं। 186 लोगों गंभीर रूप से घायल हो गए थे। पांच सालों में हादसों का आंकड़ा बढ़ते हुए 403 तक जा पहुंचा। 253 ने अपनी जान से हाथ धोया तथा 329 घायल होकर अस्पतालों में जा पहुंचे। वर्ष 2010 में 265 हादसों में 157 मौत, 224 घायल, वर्ष 2011 में 275 हादसों में 165 मौतें, 187 घायल, 2012 में 356 हादसे, 175 मौत, 276 घायल, वर्ष 2013 में 381 हादसे, 207 मौत, 289 घायल हो गए। हादसों के साल-दर-साल बढ़ते आंकड़े दर्शाते हैं कि सफलता के लिए प्रयास में कमी रही। यातायात माह में जमीनी प्रयास नजर नहीं आए। हादसों के बाद रणनीति भी बनी तो उसके अमल पर गौर नहीं फरमाया जा सका। जबरदस्त हादसे में गरीबों की मौत के लिए हाकिमों से जवाब मांगने के बजाय सरकार ने मुआवजे की घोषणा कर इतिश्री समझ लिया। मीडिया की जवाबदेही से बचने को हाकिम घटना स्थल से जिला अस्पताल तक बचते-बचाते फिरते रहे।
य ं साल-दर-साल बढ़ते गए हादसे वर्ष हादसे मृतक घायल
2009 257 147 186
2010 265 157 224
2011 275 165 187
2012 356 175 276
2013 381 207 289
2014 403 253 329