Move to Jagran APP

किसानों को नहीं मिला मुआवजा

संतकबीर नगर : सात समंदर पार से आने वाले मेहमान प¨रदों को सुरक्षित ठिकाना प्रदान करके जैव विविधता के

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Feb 2017 10:55 PM (IST)Updated: Sun, 26 Feb 2017 10:55 PM (IST)
किसानों को नहीं मिला मुआवजा
किसानों को नहीं मिला मुआवजा

संतकबीर नगर : सात समंदर पार से आने वाले मेहमान प¨रदों को सुरक्षित ठिकाना प्रदान करके जैव विविधता के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा घोषित बखिरा पक्षी अभ्यारण्य 26 साल बाद भी अपने अस्तित्व में नहीं आ सका है। इसके लिए अधिग्रहित जमीन का मुआवजा नहीं मिलने से जहां किसान व्यथित हैं, वहीं यह मामला उलझने के कारण पक्षी विहार बनाने की योजना साकार नहीं हो पा रही है। चुनावी समर में जनप्रतिनिधि आते हैं किसानों से वादे करते है लेकिन इसके बाद सब कुछ हवा-हवाई होकर रह जाता है।

loksabha election banner

बखिरा स्थित मोती झील जिला मुख्यालय से उत्तर 18 किमी पर है। प्रवासी पक्षियों के अद्भूत संगम व पर्यटन की दृष्टि से महत्ता को देखते हुए वर्ष 1990 में इसे पक्षी विहार घोषित किया गया। 2894.21 हेक्टेयर क्षेत्रफल में पक्षी विहार में करीब एक हजार हेक्टेयर भूमि के साथ गो¨वदपुर, हड़हा, नेवास, डुमरी, नवापार, कानापार, खिरिया, महला, तिलाठी, जसवल, भरवलिया, शनिचरा, बरईपार, बखिरा, झुंगिया समेत तीन दर्जन से अधिक गांवों के किसानों की 1891.91 हेक्टेयर भूमि को भी शामिल किया गया है। योजना के अनुसार किसानों की जमीनों का मुआवजा देकर सुरक्षित क्षेत्र की बाड़बंदी किया जाना है। यहां शिकारियों से जैव संपदा को सुरक्षित रखने के साथ प्रदेश स्तर पर पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पक्षी विहार की हुई घोषणा से स्थानीय लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गई। इसी क्रम में सोहगीबरवा वन्य जीव विभाग द्वारा 1997-98 में यहां रेंज आफिस बनाया गया, जहां एक रेंज अधिकारी, एक फारेस्टर, एक फारेस्ट गार्ड व माली आदि की तैनाती की गई। झील क्षेत्र यहां कछुओं की दुर्लभ प्रजातियों के साथ मछलियों की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। पक्षी विहार के लिए आरक्षित झील के निकटवर्ती क्षेत्र की जमीनों पर किसानों द्वारा धान आदि की फसल उगाने के साथ स्वतंत्र रुप से मछली का शिकार किया जाता रहा। परंतु पक्षी विहार के नाम पर उनका शिकार प्रतिबंधित हो गया व खेती करने पर रोक लगाई जाने लगी। जमीन का मुआवजा भी न मिलने से किसानों की खुशी धीरे-धीरे काफूर होने लगी। वर्तमान में किसानों व वन विभाग के बीच मामला साफ न होने से न तो बाड़बंदी हो सकी है, और न ही झील का सुंदरीकरण। वर्तमान में जलकुंभी व गोन से झील पटी पड़ी है। सबसे कठिन समस्या किसानों को झेलनी पड़ रही है, जो न तो मुआवजा पा सके हैं और न ही अपनी जमीनों का पूरा मालिकाना हक। उपेक्षा से यहां आने वाले पर्यटक मार्ग ढूंढ कर झील के निकट पहुंचते है और मायूस लौटते है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.