मां दुर्गा की प्रतिमाओं को संवारने में जुटे कलाकार
संतकबीर नगर :नवरात्रि व दशहरा पर्व के आवागमन को लेकर जहां विभिन्न तैयारियां की जा रहीं हैं, वही मूर्
संतकबीर नगर :नवरात्रि व दशहरा पर्व के आवागमन को लेकर जहां विभिन्न तैयारियां की जा रहीं हैं, वही मूर्ति कलाकारों ने दुर्गा प्रतिमाओं को पूर्ण करने में दिन-रात एक कर दिए है। एक माह पूर्व से आधार आदि बनाने का कार्य
पूरा होने के बाद प्रतिमाएं तैयार की जा रही है। आयोजक अग्रिम बु¨कग कर प्रतिमा बनवा रहे है। महिषासुर मर्दनी, अष्टभुजी, मां वैष्णवी की प्रतिमा के साथ लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती, कार्तिकेय की प्रतिमाओं को संवारने का कार्य चल रहा है। कुछ स्थानों पर गणपति प्रतिमा भी बनाई जा रही है।
खलीलाबाद में आधा दर्जन स्थानों के अलावा सांथा, धनघटा, हैसर, बखिरा, मेंहदावल, बहरुरगंज, दशहरा,
सेमरियावां, नाथनगर आदि स्थानों पर स्थानीय कलाकारों द्वारा दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है। कलाकार व उनके सहयोगी बांस-बल्ली व पटरे को आधार बनाकर कर कपड़े, चट्टे के साथ शारीरिक ढांचा व आवरण तैयार कर विभिन्न प्रकार की प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे है। उनके कार्य में पूरी निष्ठा, लगन के साथ श्रद्धा का भाव झलक रहा है। कई स्थानों पर मिट्टी की कलाकारी करके वस्त्र का रुप दिया जा रहा है।
कहीं शिव तो कहीं गंगा तो कहीं पहाड़ का रूप देकर शक्तिरूपेण मां भगवती की प्रतिमा बनायी जा रही है। शहर में मूर्ति बना रहे जूनियर हाई स्कूल के निकट पश्चिम बंगाल के सूरजकांत पाल ने बताया चार सहयोगी कलाकारों को लेकर आया हूं। दो दर्जन
मूर्तियां तैयार हो गयी है। मूर्ति कला से जुड़े कलाकारों ने बताया कि प्रतिमा बनाने में वेश व शारीरिक ढांचा बनाने के बाद मुख जो सांचे से बनाया जाता वह लगाया जाता है। रंग रोगन कार्य कार्य प्रारंभ है। चार हजार रुपये से लेकर 13,000 रुपये तक की मूर्तियां बनाने में 2900 से लेकर 10,000 रुपये तक की लागत आती है। इस वर्ष ढाई दर्जन मूर्तियां बनाने का आर्डर मिला है। एक मूर्ति बनाने में 10 से 15 दिन का समय लगता है। इन्होंने बताया कि छह माह का कार्य रहता है। इस बार सामग्री पर जीएसटी लगने से दाम बढ़े है। दशहरा
निवासी राम नरेश ने बताया कि अपनी कला है कुछ कलाकारों से काम चल जा रहा है। मुख व नेत्रों के संयोजन से मूर्तियों में जीवंतता आती है।
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साज-सज्जा से आती है रौनक
-मूर्ति कलाकारों का कहना है साज-सज्जा व अच्छे रंगों का चयन कर मूर्तियों को आकर्षक बनाया जा सकता है। शुरू में लकड़ी के फाउंडेशन व बैलेंस सेट करने में विशेष ध्यान देना पड़ता है। साज-सज्जा की कीमतें बढ़ने से मूर्तियां बनाना मंहगा तो हुआ लेकिन मांग में कोई अंतर नहीं आया है।
जनपद में चंद्रशेखर, राजकुमार, श्याम सुंदर, विजय पाल आदि कलाकार पूरी निष्ठा से इस कार्य में लगे हुए है। कलाकारों का कहना है कि दशहरा, दीपावली में ही कार्य रहता बाकी समय अन्य कार्य ढूंढना पड़ता है, जिससे रोजी-रोटी के संकट के साथ परिवार के भरण पोषण की ¨चता बनी रहती है। कुछ ने बताया कि विश्वकर्मा, गणेश, छठ माता व अन्य देवी- देवताओं की प्रतिमा बनाने का भी मौका कभी कभार मिल जाता है लेकिन इतने से ही वर्ष भर का गुजर नहीं हो पाता।