गांवों मे चढ़ा फागुनी रंग
संत कबीर नगर: होली के त्योहार को लेकर फागुनी रंग ग्रामीण अंचलों की हवा मे घुलने लगा है। परंपरागत
संत कबीर नगर:
होली के त्योहार को लेकर फागुनी रंग ग्रामीण अंचलों की हवा मे घुलने लगा है। परंपरागत रुप से होने वाले कार्यक्रमों के साथ ही भंग और रंग की व्यवस्था करने के लिए आपसी विचार विमर्श और रात को कीचड़ की हंडी फेंक चिढ़ाने का कार्यक्रम भी अब तो शुरु हो गया है। हालांकि होली के फाग गीतो के स्थान पर फिल्मी गानों की दबिश सामने आ रही है, बावजूद इसके महामूर्ख सम्मेलन को लेकर भी अभी से उपाधियां भी तैयार की जा रही हैं।
बताते चलें कि उमंग और उत्साह के त्योहार होली को मनाने के लिए गांवों में लोग महानगरों से वापस आने लगे हैं। सभी को अपने संवत के लिए लकड़ी जुटाने से लेकर पड़ोस की भाभी के नाम कबीरा गाने की मिठास नहीं भूल रही है। सबसे अधिक उत्साह तो युवाओं मे देखा जा रहा है जो शाम होते ही रंग बरसे की धुन पर थिरकते दिखने लगे हैं। दिल्ली से कमाकर लौटे कुछ युवाओं ने कहा कि गांव की होली दिलों को मिलाने के लिए सबसे बडा माध्यम है। अधेड़ हनुमान प्रसाद को तो अपने जमाने के फाग गीतो पर होने वाले हुल्लड़ के न दिखने पर थोड़ी निराशा है। कीचड़ और मिट्टी से भरे हांडी को एक दूसरे को चिढाने के लिए फेंके जाने का क्रम भी चलने लगा है। होली की तैयारियों में सबसे अहम तैयारी इन दिनों महामूर्ख सम्मेलन को लेकर चल रही है। जिसके तहत होली के दिन शाम को कार्यक्रम आयोजित करके विधिवत महामूर्ख की ताजपोशी की जाती है और उनके द्वारा सभी को उपाधियां वितरित की जाती हैं। उपाधियों में चुटकुले भरे व्यंग्य का समावेश होता है। मूर्ख सम्मेलन के बाद लोग एक दूसरे को गले से लगाकर होली की शुभकामनाए देकर घर वापस जाते हैं। भगवान नर¨सह की पूजा के साथ कार्यक्रम की शुरुआत होती है।