रिक्शा चालकों को खुले में रहना मजबूरी
संत कबीर नगर :'पापी पेट का सवाल है की कहावत यहां के रिक्शा चालकों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। हाड़तोड़ म
संत कबीर नगर :'पापी पेट का सवाल है की कहावत यहां के रिक्शा चालकों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। हाड़तोड़ मेहनत करने वालों के लिए क्षण भर न तो विश्राम करने के लिए अपना कोई ठिकाना है न ही सवारी की प्रतीक्षा के लिए स्टैंड तक की व्यवस्था की गई है। रात-दिन खटने के बाद भी वर्तमान मौसम में सिर छुपाने के लिए भटकते रहते हैं। दिन ढलते ही भोजन बनाने के साथ रात्रि विश्राम के लिए स्थान ढूंढने की ¨चता सताने लगती है। मजबूरन रिक्शा चालक इधर उधर विचरण करने के विवश होते हैं।
नगर पालिका परिषद अंतर्गत सैकड़ों की संख्या में गैर जनपदों व प्रांतों से आकर जीविकोपार्जन के लिए प्रतिदिन रिक्शा चालक राहगीरों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने का काम करते हैं। इसके बावजूद उनके लिए अभी तक स्टैंड व शेड की व्यवस्था नहीं की जा सकी। ऐसे में रेलवे स्टेशन, सुगर मिल, फ्लाई ओवर के नीचे गुजर करना पड़ रहा है। विभागीय पंजीकरण के हिसाब शहर में चार सौ से अधिक करीब किराए वाले रिक्शे चिन्हित किए गए हैं। विभाग द्वारा बकायदा लाइसेंस भी जारी किया गया है। नगर पालिका सुविधा मुहैया कराने के लिए रिक्शा चालकों से टैक्स भी लेती है पर सुविधाएं नदारद हैं। चालक व मालिक संघ ज्ञापन भी सौंपा बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।
बिहार प्रांत से यहां आकर रिक्शा चलाने वाले बीरबल, राम हित, बिकाऊ, दीने, किशुन प्रसाद गौड़, दीना जर्नादन का कहना है कि साठ से सौ रुपये बचाने के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं। तीस से चालीस रुपये तक किराया में चला जाता है। रिक्शा चालक सिरमोहन, राधे, विरजू प्रसाद, सुधीर प्रसाद, बाबा ने बताया कि दिन भर परिश्रम के बाद बमुश्किल सत्तर से सौ रुपये मिलते हैं। इसमें किराया देने तथा खाने आदि में खर्च के बाद परिवार का भरण पोषण करना कठिन होता है। रिक्शा न चलाने पर भाड़ा तो देना है ही इसलिए कई ने अपना रिक्शा ले लिया है। सिर छिपाने के लिए रेलवे लाइन, घोरखल, स्टेशन रोड आदि स्थान पर शरण लेना पड़ता है। सुविधाओं के अभाव में अनेक रिक्शा चालक रोग ग्रसित हो रहे हैं। चालक संघ ने स्टैंड आदि सुविधा के लिए मांग भी उठायी, लेकिन सार्थक पहल नही की जा सकी। इस बाबत पूछने पर नगर पालिका परिषद के अधिशाषी अधिकारी उमाकांत मिश्र ने बताया कि जो रिक्शा किराए पर चलते हैं उन्हीं से ही शुल्क लिया जाता है। बजट मिलने पर स्टैंड व शेड का निर्माण कराया जाएगा।