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रमजान: इबादत में दिन-रात एक किए रोजेदार

By Edited By: Published: Mon, 21 Jul 2014 11:19 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jul 2014 11:19 PM (IST)
रमजान: इबादत में दिन-रात एक किए  रोजेदार

जागरण संवाददाता, संत कबीर नगर :

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रमजानुल मुबारक के आखिरी अशरा चल रहा है। अलविदा के नमाज के साथ ईद की तैयारियां तेज हो गई है। अब सभी को तीसवे रोजे के बाद चांद के दीदार का इंतजार है। खुशियों का पैगाम देने वाले माह में रोजेदार इबादत में जुटे हैं।

रोजेदारों ने रात भर जगकर अकीदत से एतकाफ मस्जिदों में इबादत करने में जुटे है। मानना है कि रमजान माह में इबादत से अल्लाह ख्याल रखता है। माह में पाक राह पर चलने के साथ मुनासिब कार्यो को करने की हुक्त रहता है। रोजा रहने से ऊर्जा का संचार होता है, जिसमें अपार खुशियां मिलती है। इन्हीं दिनों में खुदा गुनाहगार बंदों को मगफिरत के लिए अपनी झोली खोल देता है। मस्जिदों में एतकाफ से रौनक है। रमजान की अहमियत है। यह माह पाक इरादों से जीवन जीने की सींख देता है। अल्लाह के नेक बंदे इस अशरे में अपनी हिम्मत व ताकत जुटाकर इबादत करते है और दुआएं मांग बरकत करते हैं। ----------------------

जरूरतमंदों को दी जाएगी जकात

-रमजान का महीना आखिरी पड़ाव पर है। ऐसे में जकात की अदायगी के लिए करीबी की तलाश शुरु हो गई है। कोई अपने गरीब रिश्तेदार को तरजीह दे रहा है तो कोई पड़ोसी को। अलविदा के नमाज के बाद हैसियतदार गरीब की खोज शुरू कर दिए हैं।

इसी के चलते नगरीय इलाकों में रहने वाले हैसियतदार गरीबों की तलाश में है। जरूरतमंद स्वयं उन तक पहुंच रहे हैं, कुछ ऐसे भी हैं, जो जकात की रकम निकालने से पहले उलेमा से इस बारे में पूरी जानकारी हासिल कर कर रहे हैं। मुफ्ती मौलाना इसरार के मुताबिक हर रोज जकात से जुड़े मसले की जानकारी के लिए लोग आ रहे हैं।

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जकात अदायगी का खास मौका

-जकात और अदायगी के लिए रमजान खास मौका है। उलेमा के मुताबिक हक वालों तक जकात की रकम पहुंचे तो बेहतर होगा। जाहिरा तौर पर इसकी अदायगी की जानी चाहिए, बावजूद इसके कोई गैरतमंद है तो हदिया तथा तोहफे के बहाने मदद की जा सकती है।

जानकारों के अनुसार हैसियतदार मुसलमा पर साल में एक बार जकात की अदायगी जरुरी है। जकात की रकम जाहिर कर दी जाए ताकि दूसरे की गैरत जागे। मौलाना हबीबुल्लाह के अनुसार अगर कोई गरीब सीधे तौर पर जकात की रकम लेने से हिचक रहा है तो दूसरे तरीके से भी मदद की जा सकती है।

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तीन हिस्से की रकम

-उलेमा के मुताबिक जकात की रकम तीन हिस्सा में बांट लें, पहला हिस्सा रिश्तेदार, दूसरा गरीब पड़ोसी, तीसरा मदरसे आदि में दें ताकि वहां पढ़ने वाले बच्चों को उचित तालीम मिल सके।

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