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बस चुनाव तक ही बसफोड़ों की पूछ

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 10:19 PM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 10:19 PM (IST)
बस चुनाव तक ही बसफोड़ों की पूछ

संत कबीर नगर :

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चुनावी समर में आश्वासन की घुट्टी पिलाकर वोट लेने वाले नेता फिर दिखने लगे हैं। पिछले चुनाव में आए थे, फिर दिखायी दे रहे हैं। समस्याएं जस की तस हैं, क्योंकि हमारी पूछ सिर्फ चुनाव तक ही रहती है।

यह पीड़ा है बांस फोड़ के नाम से प्रसिद्ध धरिकार जाति के लोगों की।

ये हुनर मंद होने के बाद भी दो वक्त की रोटी के मोहताज हैं। इनके रहने के लिए न कोई स्थायी निवास है, न ही कोई ठिकाना। जहां काम मिल गया, वही अपना आशियाना बना लेते है। इनके द्वारा बनाए गए सामान का हर घर में सम्मान है, लेकिन ये उपेक्षित हैं। लगन के मौसम में डाल, मउर के साथ ही बेना, चटाई आदि सामान बांस से बनाकर बाजार तलाशते हैं। चाहे अमीर हो या गरीब, सभी के शादी में डाल का प्रयोग होता है। गुणी होने के बावजूद इस जाति के लोगों को रोटी के लिए रोज संघर्ष करना पड़ रहा है। पेट की आग बुझाने के लिए शहर- शहर इन्हें परिवार समेत भटकना पड़ता है। लगन के मौसम में किसी तरह दो वक्त की रोटी नसीब तो हो जा रही है, लेकिन अन्य दिनों में अक्सर खाली पेट ही सो जाना पड़ता है। बसफोड़ यहां से मतदाता तो बने गए, लेकिन इनकी कीमत बस चुनाव में है। वोट देने के बाद इनका कोई पुरसाहाल नहीं होता। शहर में दूरसंचार विभाग कार्यालय के निकट धरिकार समाज के दर्जन भर परिवार बसे हैं। इसी तरह जूनियर हाईस्कूल के समीप कुछ परिवार बसे हैं। पूछने पर महाराज गंज के बारीगांव निवासी उमेश ने बताया कि पिताजी यहां आए और यहीं बचपन बीता। आजकल माता-पिता नही हैं, लेकिन बाइस वर्ष से रोजी-रोटी में लगा हूं। पत्‍‌नी मीरा डाल बनाती है, मैं मजदूरी भी कर लेता हूं। यही हाल कुशीनगर के कटाई भरपुरवा ग्राम दुसौदी पट्टी के लक्ष्मी, जगदीशपुर के राजकुमार, फूलमती, सुशीला देवी का है कहना है कि यहां हम सभी मतदाता बने हैं। सांसद, विधायक, नपा अध्यक्ष को वोट देते हैं, लेकिन चुनाव के बाद कोई पूछने नहीं आता है। गोरखपुर से आकर बसे राजेंद्र, अकलेश, रीना देवी एक परिवार के सदस्य हैं। मुखिया राजेंद्र कहते हैं कि अब हम यहां बस गए, लेकिन इस कारोबार से वर्ष भर का खर्च नहीं चल पाता। पहले नेग के नाम पर राशन आदि मिलता था, आज तो मजदूरी भी नही मिल पाती। उम्मीद लगाकर वोट देते हैं, लेकिन मिलता कुछ नहीं है। यही व्यथा रेनू, राजकुमार, विजय कुमार आदि की है। सबने बताया कि हम लोग एकजुट होकर वोट देते हैं। हम लोग शुभ का काम करते हैं। इसीलिए अक्सर हमारा प्रत्याशी जीतता भी है, लेकिन हम लोग चाहकर भी कुछ लाभ नही ले पाते हैं। कितनों को आवास मिला। राशन कार्ड बनवाने के बीस वर्ष बाद सड़क पर टूटी झोपड़ी ही सहारा है। फैजाबाद निवासी सुभाष ने बताया कि सड़क पर ही जीवन कट रहा है। बच्चों को लेकर ऐसे तैसे रहना पड़ता है। वोट के सौदागर चुनाव बाद सुधि तक नहीं लेते।


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