मां कालरात्रि की पूजा अर्चना से मिलता है शुभ फल
सम्भल। मां दुर्गा की सातवीं शक्ति के स्वरूप कालरात्रि की पूजा अर्चना के लिए देवी मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ी। मां के ध्यान मंत्र करालरूपा कालाब्जसमाना कृतिविग्रहा, कालरात्रि: शुभं दद्यात् देवी चंडाट्टहासिनी का जाप कर भक्तों ने मनौती मांगी। शाम को आरती में भक्तों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और मां का गुणगान किया।
मान्यता है कि कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह गोल हैं। जिनसे विद्युत की ज्योति चमकती रहती है। उनके श्वास प्रश्वास से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। भले ही उनका स्वरूप भयानक हो लेकिन वे सदैव शुभ फल प्रदान करती हैं। इसलिए उन्हें शुंभकरी भी कहते हैं। रविवार को चैत्र नवरात्र का सातवां दिन था। ऐसे में भक्तों ने श्रद्धाभाव के साथ कालरात्रि की पूजा अर्चना की। सुबह घरों के बाद मंदिर पहुंचे और धूपबत्ती लगाकर मां का गुणगान किया। दोपहर में महिलाओं ने घरों पर मां के भजन गाकर माहौल को भक्तिमय बनाया। इसके बाद शाम को मंदिरों में आरती के समय भारी भीड़ रही। हल्लू सराय, हयातनगर, घुंघावली स्थित चामुंडा देवी के मंदिरों में भक्तों ने मां की आराधना कर पुण्य लाभ कमाया।
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श्रीराम-सीता विवाह का किया वर्णन
सम्भल : श्री शिव मंदिर समिति ठेर के तत्वावधान में आयोजित श्रीराम कथा में साध्वी संत कुमारी ने श्रीराम विवाह का वर्णन किया। कहा कि जनक पुरवासियों को देव दुर्लभ आनंद प्राप्त हुआ। अभी तक ब्रह्मानंद केवल जनक महाराज को प्राप्त था किंतु अब सभी को प्राप्त हो रहा है। चार प्रथाओं के विवाहों को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने एक ही पत्नी सीता के साथ संपन्न किया। साध्वी ने धनुष भंग के बाद स्वयंवर विवाह को रसमयी और भावमयी शैली में सुनाया। जिसे सुनकर श्रोता समाज भी साथ में गाने लगा। अलौकिक प्रेम माधुर्य को श्रीराम और सीता के जीवन चरित्र के इस विवाह लीला को विधिवत दर्शाया और मानव जीवन दर्शन के आवश्यक अंगों के मंत्र सूत्रों को जन जन तक पहुंचाया। अंत में भजन गायन और आरती से कार्यक्रम संपन्न हुआ।