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दुर्दशाग्रस्त सड़कों पर मुंह बाए रहती है मौत

संजीव जैन, सहारनपुर : सड़कों की दुर्दशा से सहारनपुर में औसतन हर रोज 2 लोग सड़क हादसों में जान गंवा दे

By Edited By: Published: Tue, 06 Dec 2016 10:08 PM (IST)Updated: Tue, 06 Dec 2016 10:08 PM (IST)
दुर्दशाग्रस्त सड़कों पर मुंह बाए रहती है मौत

संजीव जैन, सहारनपुर : सड़कों की दुर्दशा से सहारनपुर में औसतन हर रोज 2 लोग सड़क हादसों में जान गंवा देते हैं। एनएचआइ, लोनिवि, पुलिस प्रशासन, नगर निगम व सहारनपुर विकास प्राधिकरण इसको लेकर संजीदा कतई नहीं है। चिन्हित किए गए 11 ब्लैक स्पाट्स पर अब तक सुरक्षित यातायात के मुकम्मल इंतजाम नहीं हो सके हैं।

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42 लाख की आबादी वाले सहारनपुर में मात्र 11 स्थानों पर ही ट्रैफिक सिग्नल हैं। पंचकुला-सहारनपुर-रूड़की व दिल्ली-सहारनपुर-यमुनोत्री हाईवे के साथ-साथ सहारनपुर में कुल 5919 किमी सड़क में से 72 प्रतिशत बदहाल हैं। लोनिवि के अधीन 3934 किमी सड़क में से 83 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग, 194 किमी स्टेट हाइवे, 339 मुख्य जिला सड़क व 3318 किमी अन्य जिला व ग्रामीण सड़कें हैं। स्थानीय निकायों के अंतर्गत 1151 किमी सड़क में से 356 किमी जिला पंचायत व 795 किमी नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायतों के अधीन है। अन्य विभागों के अंतर्गत 834 किमी सड़क है। इसमें से ¨सचाई विभाग अधीन 18 किमी, गन्ना विभाग की 615 किमी, वन विभाग की 32 किमी व अन्य विभाग की 169 किमी सड़क है। कोर्ट रोड, घंटाघर, देहरादून रोड, दिल्ली रोड, अंबाला रोड, गंगोह रोड, बड़गांव रोड, बेहट रोड आदि मुख्य मार्ग ऐसे हैं, जहां 10-18 किमी तक सड़क पर अतिक्रमण है। दिल्ली-सहारनपुर मार्ग, सहारनपुर-बेहट मुख्य मार्ग पूरी तरह बदहाल है। हर सड़क पर तीन से 11 स्थानों पर जाम लगता है। वाहनों की औसत गति 30 किमी प्रति घंटा के बजाय 10 किमी प्रति घंटा रह गई है।

- जाम के मामले में सहारनपुर, शामली व गाजियाबाद वेस्ट यूपी में अव्वल है। सरसावा-सहारनपुर हाईवे- 73 पर ट्रैफिक का लोड सर्वाधिक रहता है। इस पर अक्सर जाम रहता है और दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं। इसके बाद भी यातायात संसाधनों की कमी सुरक्षित यात्रा पर भारी पड़ रही है। सड़क हादसों की एक वजह यातायात नियमों का पालन न होना है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि यहां की सड़कों में खामी नहीं है। हाल यह है कि अधिकतर सड़कें आज भी उसी चौड़ाई की हैं, जो 15 - 20 वर्ष पूर्व थीं।

खुद विभाग की ही मानें तो जिले में सर्वाधिक दुर्घटना वाले 11 ब्लैक स्पाट्स चिन्हित किए गए हैं, जहां सड़क हादसों में जान गंवाने वालों की संख्या अधिक रही। यहां सुरक्षित यातायात के लिए संकेतक व अन्य दूसरे इंतजाम न होने से अमूमन युवा वर्ग तेज रफ्तार वाहन चलाने के साथ नियम-कानूनों को भी ताक पार रख देते हैं। लिहाजा हादसे होते हैं। अगर चिन्हित स्थानों पर रिफलेक्टर, सोलर चालित ¨लकर आदि की सुविधा हो तो निश्चित तौर पर सड़क हादसों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

चिन्हित किए गए ब्लैक स्पाट्स

अंबाला-रुड़की-देहरादून रोड पर पिलखनी, बड़ी नहर, कैलाशपुर व छुटमलपुर, सहारनपुर-देवबंद मार्ग पर टपरी, नांगल व तुल्हेड़ी बुजुर्ग, दिल्ली रोड पर चुन्हैटी फाटक, चिलकाना रोड पर अब्दुल्लापुर, बेहट रोड पर साईं मंदिर के पास व नवाबगंज।

ब्लैक स्पाट्स पर ये हों सुविधाएं

सड़क परिवहन विभाग के अनुसार चिन्हित किए गए ब्लैक स्पाट्स पर रिफलेक्टर, सोलर चालित ¨लकर, रंबल स्ट्रिप, साइन एजेज आदि की सुविधाएं होनी चाहिए, ताकि यहां दुर्घटनाओं को रोका जा सके और लोगों की जान बचाई जा सके।

दुर्घटनाओं के कारक यह भी

- वाहनों के फिटनेस में खामी, नशा और रफ्तार, ओवरलोडेड वाहन, ट्रैक्टर और जुगाड़, खराब यातायात सिग्नल, सड़क पर गलत पार्किंग व यातायात नियमों का उल्लंघन आदि भी दुर्घटनाओं की मुख्य वजहें हैं।

ढाई करोड़ हुए थे खर्च

शहर में 11 स्थानों पर लगे ट्रैफिक सिग्नल व बूथ बनाने में कुल ढाई करोड़ खर्च हुए थे, मगर ट्रैफिक सिपाहियों की कमी के चलते अब अधिकांश सिग्नल पर लाइटें बंद पड़ी हैं और बूथ टूटे हैं।

ट्रैफिक सिपाहियों की कमी

यहां ट्रैफिक सिपाहियों की कमी है, जिससे प्रमुख पांच चौराहों पर ही सिपाही खड़े दिखाई देते हैं। बाकी चौराहों पर एक पुलिसकर्मी भी नहीं रहता। शहर में सात लाख की आबादी पर कुल ट्रैफिक सिपाही मात्र 45 हैं, जबकि दर्जन भर से अधिक चौराहे व तिराहे ऐसे हैं, जहां पर ट्रैफिक सिपाही रहना बहुत जरूरी है। गांवों में तो ट्रैफिक सिपाही दिखाई हीं नहीं देते।

विशेषज्ञ की राय

मुख्य मार्गों पर सर्विस लेन हो। गांवों में व्यस्त मार्गों पर स्पीड ब्रेकर व डिवाइडर हों। नए बन रहे मार्गों की चौड़ाई कम से कम 10 मीटर होनी चाहिए। खास बात सड़क बनने के बाद फुटपाथ पर ध्यान नहीं दिया जाता है, जबकि फुटपाथ कच्चा होने से वाहन नीचे आ जाते हैं। हादसा हो जाता है।

-राजीव उपाध्याय, सड़क विशेषज्ञ

यातायात विभाग डेथ प्वाइंटों को हर साल चिन्हित करता है। हादसे के बारे में भी उसे पता रहता है, मगर उसे ठीक कराने में अक्सर फंड की कमी आड़े आती है। फिर भी लोनिवि, प्राधिकरण, उप्र आवास एवं विकास परिषद, नगर निगम आदि विभागों से कहकर स्पीड ब्रेकर, डिवाइडर व रिफ्लेक्टर लगवाए जाते हैं।

-ओमवीर ¨सह एसपी, यातायात।


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