ज्ञान का उजियारा फैलाती 'आशा' की किरण
संजीव गुप्ता, सहारनपुर : कुदरत कुछ छीन ले तो देता भी बहुत कुछ है। इसे जिले की आशा जैन से बेहतर कौन स
संजीव गुप्ता, सहारनपुर : कुदरत कुछ छीन ले तो देता भी बहुत कुछ है। इसे जिले की आशा जैन से बेहतर कौन समझ सकता है। अबोध अवस्था में ही पोलियो ने उनके पैरों की ताकत छीन ली, लेकिन साथ ही उन्हें प्रदान कर दिया अथाह हौसला। बैसाखियों के सहारे शिक्षा की ऊंचाइयां चढ़तीं गई और एमए, बीएड की डिग्री हासिल की। इसके बाद परिवार से मिली ताकत ने उन्हें शिक्षा के दान को प्रेरित किया। 77 वर्ष की आयु में भी उनका एक ही संकल्प है कि कोई बच्चा स्कूल जाने वंचित ना रहे।
अपने संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 49 वर्ष पहले जिस आशा माडर्न स्कूल की नींव डाली, वह आज वटवृक्ष बनकर हजारों बच्चों को शिक्षा की रोशनी बांट रहा है।
महानगर में यूं तो अनेक संस्थाएं समाज को शिक्षा की रोशनी बांट रही है। जीवन में चुनौतियों का डटकर मुकाबल करने वाली आशा जैन आज भी पूरे दमखम के शिक्षा दान के संकल्प को पूरा करने में जुटी हैं।
आशा जैन बताती हैं कि ऑनरेरी मजिस्ट्रेट रहे पिता विशाल चंद जैन की प्रेरणा से वह न्यायिक मजिस्ट्रेट बनना चाहती थीं। समय ने करवट ली और 49 वर्ष पूर्व कोर्ट रोड पर आशा माडर्न स्कूल की नींव डाली। संस्था 2015 में अपनी स्वर्ण जयंती मनाएंगी।
नि:शुल्क शिक्षा को बढ़ाए कदम
संस्था की स्थापना के साथ ही यह संकल्प लिया था कि कुछ बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देंगी। आज वह दायरा बढ़कर हजारों में पहुंच गया है। अपने स्कूल में वह 323 निर्धन छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क शिक्षा, पाठ्य सामग्री व ड्रेस दे रही हैं, जबकि शहर के विभिन्न स्कूलों में 212 निर्धन बच्चे ऐसे हैं जिनकी शिक्षा-दीक्षा का खर्च वह स्वयं वहन करती हैं। मलिन बस्तियों में भोजन व कपड़ों के वितरण के साथ-साथ बच्चों को पुस्तक बांटना उनकी आदत में शामिल हो चुका है। एक मिशनरी संस्था में बच्चों को हर प्रकार की मदद करती हैं।
नहीं भूलती पोलियो पीड़ित का दर्द
जीवन में पोलियो ने जो कुठाराघात आशा जैन पर किया, वह उसे कैसे भूल सकती हैं? 77 वर्ष की आयु में वह हर उस पीड़ित की मदद को हाथ बढ़ाती हैं जो निर्धनता व परिस्थिति वश इलाज कराने में सक्षम नहीं है। कई असाध्य रोगियों की मदद ऐसे समय की जब वे हर ओर से निराश हो चुके थे। 50 से अधिक पोलियो ग्रस्त लोगों को ट्राईसाइकिल व व्हील चेयर उपलब्ध कराई। आशा जैन बताती हैं कि उन्होंने संस्था खोलते समय यह कल्पना भी नहीं की थी, वह शिक्षा के महादान रूपी काम को इतनी सहजता से कर सकेंगी।
आशा जैन बताती हैं कि गत 49 वषरें में उनके पढ़ाए ऐसे कई शिष्य हैं, जिन्होंने गरीबी की दलदल से निकल कर शिक्षा की रोशनी पाकर सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं। उनकी सफलता को देखकर ही उन्हें संतोष होता है कि उन्होंने समाज के लिए कुछ किया और आगे भी इस कारवां में जरूरतमंद बच्चों को साथ लेकर चलती रहेंगी।