चुनावी चर्चा: 'हाथी' की चाल से थर्राए चुनावी पहलवान
सहारनपुर : बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती का अंदाज भी निराला है। सहारनपुर समेत प्रदेश की 11 विस सीटों पर हो रहे उपचुनाव में बसपा ने पूर्व में अपने प्रत्याशी न उतारने का ऐलान किया था, पर अब रविवार को लखनऊ में हुई बैठक में किसी निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन देने के फैसले से प्रत्याशियों के होश उड़ गए हैं। सहारनपुर में किस प्रत्याशी को बसपा समर्थन देगी यह तो स्पष्ट नहीं है, पर चुनाव रणक्षेत्र में खलबली जरूर मच गयी है। चुनावी पहलवानों की नजर दलित व पिछड़े मतदाताओं पर टिकी है। वह इन मतदाताओं को लुभाने के लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं
सहारनपुर सदर विस सीट पर दलित मत करीब 24 हजार व अन्य पिछड़ा वर्ग मतदाता करीब 85 हजार है। वर्ष 2012 में हुए विस चुनाव में इन मतों से अधिकांश मत बसपा प्रत्याशी को मिले थे। लोस चुनाव में जरूर इन मतों पर भाजपा ने सेंध लगाई। यही कारण रहा कि लोस चुनाव में बसपा प्रत्याशी को 15077 मत मिले। बहरहाल, इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है। ऐसे में भाजपा, सपा व कांग्रेस प्रत्याशी इन मतों पर सेंध लगाने के लिए ऐड़ी- चोटी के जोर लगा रहे हैं। ऐसे में दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग मत जिस भी प्रत्याशी की पक्ष में पड़े तो चुनाव परिणाम उलटने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
डाले जा रहे डोरे
तीनों प्रमुख दल दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग मतों को रिझाने के लिए उन पर डोरे डालने में लगे हैं। सपा नेता जहां रविदास छात्रावास में पूर्व सांसद की समाधि पर जाकर दलितों को अपने पक्ष करने की कोशिश में नजर आते हैं तथा सर्वसमाज के नाम पर दलितों को जोड़ने की कोशिश में हैं। भाजपा नेता लगातार बसपा मतों के संपर्क में हैं। सूत्रों की माने तो भाजपा ने वरिष्ठ पदाधिकारियों को दलित वोट अपने पक्ष में करने के लिए विशेष निर्देश जारी किए हैं। कांग्रेस भी कम नहीं है। कांग्रेस नेता दलित व मलिन बस्तियों में जाकर समर्थन हासिल कर रहे हैं।
सांप्रदायिक हिंसा से बदली तस्वीर
सहारनपुर में हाल में हुई सांप्रदायिक हिंसा से चुनावी तस्वीर काफी बदली है। इसका सबसे अधिक असर दलितों पर पड़ा है। जिस स्थान पर दंगा हुआ उससे मात्र 100 मीटर के फासले पर दलितों की बड़ी बस्ती है, जहां अक्सर अल्पसंख्यकों व दलितों में टकराव की स्थिति बनी रहती है। कई बार झगड़े भी हुए, लेकिन समय रहते स्थिति को संभाल लेने के कारण हालात विस्फोटक नहीं हो पाये। ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उप चुनाव में दलित मत गुल जरूर खिलाऐंगे।