अरबी फारसी के महारथी थे अख्तर अली
रामपुर: रामपुर रजा लाइब्रेरी के रंगमहल में अल्लामा अख्तर अली तिलहरी के जीवन एवं कृतियां, विषय पर कार
रामपुर: रामपुर रजा लाइब्रेरी के रंगमहल में अल्लामा अख्तर अली तिलहरी के जीवन एवं कृतियां, विषय पर कार्यक्रम हुआ। मेरठ कालेज, मेरठ के उर्दू विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. खालिद हुसैन खान द्वारा विस्तार व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. अनवारूल हसन कादरी ने तिलावत ए कुरान से और इफ्तिखार ताहिर ने नात ए पाक से किया। डॉ. खालिद हुसैन खान ने कहा कि दुनिया का अजीब रंग है इसमें कई व्यक्ति आए और चले गए। अल्लामा अख्तर अली फारसी, अरबी और उर्दू तीनों क्षेत्रों में दक्षता रखते थे। मुगलिया दौर में उनके पूर्वज तिलहर में बस गए थे। मुगल बादशाहों ने उन्हें जागीरें भी प्रदान कीं, लेकिन 1857 के गदर में अंग्रेजो द्वारा उनकी जागीरों को जब्त कर लिया गया। अल्लामा अख्तर अली तिलहरी का जन्म तिलहर में 21 अप्रैल 1902 को हुआ था। साहित्य, शायरी, सियासत, दर्शन और चिकित्सा सभी में दक्षता रखते थे। उनके शिक्षाओं में सादगी, सफाई एवं अच्छा व्यवहार मिलता है। उन्होंने अपनी शायरी में धार्मिक, व्यक्तित्व तथा विभिन्न विचारों को प्रस्तुत किया है और उनकी शायरी में उच्चकोटि के व्यक्तियों, साहित्यक सुविधाओं का असर दिखाई देता है। लाइब्रेरी के निदेशक प्रोफेसर सैयद हसन अब्बास ने कहा कि उनका संबंध दबिस्तान-ए-रामपुर से था। रामपुर के मदरसा आलिया में भी उन्होंने इल्म हासिल किया। यहां उन्होंने मुफ्ती किफायत उल्ला देहलवी, मौलाना फजल हक खैराबादी जैसे लोगों से शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हाई स्कूल, इण्टरमीडिएट की शिक्षा तथा मेरठ से एमए और पीएचडी की डिग्री ग्रहण की। वह बहुत बड़े लेखक और शायर थे और वह अंग्रेजी में भी दक्षता रखते थे। विभिन्न विषयों पर उनकी मजबूत पकड़ थी। डॉ. आफताब अख्तर ने कहा कि एक ताजमहल तो आगरा में है जो मुहब्बत की निशानी है और एक ताजमहल रामपुर में है जो ज्ञान का समुंदर है। इस समुंदर में ज्ञान की सभी नादियों का संगम होता है। लोग यहां ज्ञान की प्यास बुझाते हैं। कार्यक्रम का संचालन लाइब्रेरी एवं सूचना अधिकारी डॉ. अबुसाद इस्लाही द्वारा किया गया। इस मौके पर प्रोफेसर एजाज हुसैन, राजीव, जुबैर महमूद, डॉ. शायरउल्ला खां, सीनशीन आलम, डॉ. शरीफ अहमद कुरैशी, डॉ. मिस्बाह अमरोही, सआदत उल्ला खां, रमेश कुमार जैन, जफर सुखनैन, मौलाना जमा वाकरी, हसन मियां, डॉ. अथर मसूद खां, शिफत अली खां आदि मौजूद रहे।