बढ़ता ही जा रहा बस्तों का बोझ
रामपुर : सीबीएसइ बोर्ड हो या फिर यूपी बोर्ड। पाठ्यक्रम और पुस्तक निर्धारण के लिए कोई निर्धारित मानक
रामपुर : सीबीएसइ बोर्ड हो या फिर यूपी बोर्ड। पाठ्यक्रम और पुस्तक निर्धारण के लिए कोई निर्धारित मानक नहीं है। लिहाजा, स्कूल अपने स्तर से ही पाठ्यक्रम तय करते हैं। यही वजह है जो बच्चों के बस्तों का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। आलम यह है कि बस्तों का यह बोझ सात से आठ किलोग्राम तक रहता है, जिससे बच्चों को शारीरिक रूप से काफी दिक्कतें होती हैं।
शिक्षा की शुरुआत और नन्हें मुन्ने बच्चों के कंधों पर भारी भरकम बस्तों का बोझ। किताबों और कापियों से भरे बैग का वजन निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। पहले जहां दो या तीन काफी किताबों से ही शुरुआती शिक्षा पूर्ण हो जाती थी, वहीं मौजूदा शैक्षिक व्यवस्था काफी भारी हो गई है। जिले के यूपी बोर्ड से लेकर सीबीएसइ बोर्ड तक के स्कूलों के बच्चे भारी भारी बैग लेकर आते जाते हैं। बच्चों को आठ विषयों की 16 काफी किताबें लेकर जाना पड़ता था, जिससे नर्सरी से आठवीं तक के बच्चों बैग का वजन डेढ़ किलोग्राम से लेकर आठ किलोग्राम तक हो जाता है। स्कूलों में पाठ्यक्रम और किताबों के निर्धारण को लेकर भी कोई स्पष्ट नीति नहीं है। शिक्षण संस्थानों के स्तर पर ही मनमाने ढंग से प्रकाशन और पुस्तकें तय की जाती है। हालांकि, सीबीएसइ की ओर से एनसीईआरटी की ओर से निर्धारित पुस्तकों को ही पाठ्यक्रम में शामिल करने के निर्देश हैं, लेकिन ऐसा कम ही स्कूलों में होता है। अभिभावकों की मानें तो स्कूलों के स्तर पर कमीशनखोरी के चलते पाठ्यक्रम और पुस्तकें तय करने में मनमानी की जाती है। नतीजतन, मासूम कंधों पर भारी भरकम बैग बच्चों के लिए काफी तकलीफदेह साबित होता है। तमाम बच्चों को तो बैग लेकर काफी दूरी पैदल ही तय करनी होती है। इसमें भी ग्रामीण परिवेश के बच्चों को ज्यादा दिक्कतें होती हैं। शारीरिक रूप से बच्चों को थकान महसूस होती है और उन्हें शिक्षा भी एक बोझिल दिनचर्या महसूस होती है। ऐसे में शिक्षा का स्तर और शैक्षिक वातावरण इस प्रकार तैयार करने की कोशिश होनी चाहिए, जिससे बच्चों को पढ़ना रोचक लगे और बच्चे स्वस्थ मन के साथ शिक्षा ग्रहण कर सकें। इससे शैक्षिक स्तर भी सुधरेगा और सामाजिक वातावरण में भी बदलाव आएगा।
यहां कमीशन के आधार पर तय होता है पाठ्यक्रम
रामपुर : यूपी बोर्ड से लेकर सीबीएसइ स्कूलों तक पाठ्यक्रम तय करने में कमीशन का खेल चलता है। मसलन, जो प्रकाशन ज्यादा कमीशन दे, उसी की पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की जाती है। यही खेल है जो हर साल पाठ्यक्रम में बदलाव भी होता है और अभिभावक एक ही दुकान से सिलेबस खरीदने को मजबूर रहते हैं। अभिभावकों की मानें तो कमीशन का यह खेल इतना बड़ा है कि अब स्कूलों की ड्रेस भी निर्धारित दुकानों पर ही मिलती है। ऐसे में अभिभावकों को आर्थिक संकट और बच्चों को शारीरिक दिक्कतों से जूझना पड़ता है।
पाठ्यक्रम और पुस्तकों के लिए बोर्ड के स्तर पर नियम हैं, लेकिन समय पर पुस्तकें न आने की वजह से स्कूल अपने हिसाब से पुस्तकें तय कर लेते हैं। किन्तु, भारी बस्तों की बात जहां तक है तो यह समस्या सीबीएसइ स्कूलों में ज्यादा है। यूपी बोर्ड में ऐसा कम होता है। हमारे स्तर पर तो साफ निर्देश हैं कि टाइम टेबल के अनुरूप से ही बच्चों से किताबें मंगवाई जाएं और उसी के हिसाब से पढ़ाया जाए।
राजेन्द्र पाल, जिला विद्यालय निरीक्षक, रामपुर।