हब्शी हलवा का सऊदी तक जलवा
शफी अहमद, रामपुर । हलवे का नाम सुनकर ही मुंह में पानी आ जाता है। लजीज व्यंजनों में शुमार हलवे के शौक
शफी अहमद, रामपुर । हलवे का नाम सुनकर ही मुंह में पानी आ जाता है। लजीज व्यंजनों में शुमार हलवे के शौकीन भी तमाम हैं, लेकिन जब बात रामपुर के हब्शी हलवे की हो तो इसके कद्रदान सऊदी तक मिल जाएंगें। यह हलवा सऊदी तक अपना जलवा बिखेर रहा है। यहां के शेखों की विशेष पसंद बन चुके इस हलवे को वे भारत आने जाने वाले लोगों से मंगाना नहीं भूलते।
नवाबी दौर से शुरू हुआ हब्शी हलवा आज भी यहां खूब खाया जाता है। वैसे इसे साउथ अफ्रीका की मिठाई बताया जाता है, क्योंकि नवाब साउथ अफ्रीका से कारीगर लेकर आए थे, जिनसे इसे तैयार कराया गया था। इसके बाद अब्दुल हकीम उन कारीगरों के संपर्क में आए और उनसे इसे बनाने के गुर सीखे। अब उनकी तीसरी पीढ़ी हलवा बना रही है। कत्थई रंग का यह हलवा मिठाईयों में अपनी अलग पहचान रखता है। यहां तो इसे लोग चाव से खाते ही हैं, यह सऊदी के शेखों की पंसद भी बन गया है। रामपुर के काफी लोग सऊदी में काम करते हैं। कुछ का अपना कारोबार भी है। शुरू में तो वे इस हलवे को यहां की खास मिठाई होने की वजह से सऊदी ले गए, लेकिन धीरे धीरे वहां के लोगों को इसका स्वाद लग गया। अब रामपुर से सऊदी जाने वाले लोग हब्शी हलवा जरूर लेकर जाते हैं।
हलवा बनाने की शुरूआत करने वालों में अब्दुल हकीम का नाम सबसे पहले आता है, जिनके नाम से बाजार नसरुल्ला खां में हलवे की दुकान है। हालांकि अब वह इस दुनिया में नहीं हैं। उनके बाद उनके बेटे कमर खां और फिर उनके पोते परवेज खां हलवा बेच रहे हैं। अब तो शादियों में भी अधिकतर हब्शी हलवा ही बांटा जा रहा है। इसका बड़ा पीस बनवाकर डिब्बे में पैक करा लिया जाता है। शादी में निकाह के बाद जो मिठाई बांटी जाती है, उसमें हब्शी हलवा खूब चल रहा है और लोग पंसद भी कर रहे हैं।
ऐसे बनता है है हब्शी हलवा
परवेज खां बताते हैं कि यह हलवा खासतौर से दूध, देशी घी, सूजी और समनक से बनाया जाता है। समनक गेहूं से बनती है। गेहूं को बोया जाता है। कुछ रोज बाद उसके कल्ले निकलते हैं, जिन्हें पीसा जाता है। इसके अलावा बादाम और पिस्ता भी डाला जाता है। इन सबको मिलाकर हलवा तैयार किया जाता है।