किसान के ज्ञान को विज्ञान का सलाम
शफी अहमद, रामपुर। न रासायनिक खाद, न कीटनाशक, न बरसात का इंतजार। फिर भी फसल में विज्ञान सरीखा कमाल। टमाटर के पौधे पंद्रह फिट ऊंचे तो उत्पादन प्रति बीघा 100 कुंतल। आश्चर्य की बात है। सो, आश्चर्य फिलीपींस कृषि वैज्ञानिक को भी हुआ, देखने पर उन्होंने दुनिया में ऐसी खेती न होने का दावा किया। फिर पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय की निगाह पड़ी तो मानो किसान के इस ज्ञान को विज्ञान ने भी सलाम ठोका।
इस सलाम के मेहमान हैं वीरेन्द्र सिंह संधु। रामपुर जनपद के गांव बेनजीर में पैदा हुए संधु की शैक्षणिक योग्यता भी कृषि नहीं, अर्थशास्त्र है। अर्थशास्त्र में परास्नातक संधु ने 15 वर्ष पूर्व जैविक खेती का निर्णय लिया। तब से अबतक उन्होंने जमीन में रसायनिक खाद नहीं डाली है। इतना ही नहीं, उन्होंने आज तक कैमीकल युक्त कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल भी नहीं किया है। देसी तरीके से ही कीटों का भी खात्मा करते हैं। इसके लिए उन्होंने लोगों से मश्वरा किया, किताबें पढ़ीं और नेट ज्ञान को सहारा बना जैविक खेती में लग गए।
संधु 12 एकड़ के फार्म में धान, मैंथा, मटर, टमाटर, खीरा, गेहूं और धनिया उगाते हैं। फसलों की सिंचाई के लिए श्री संधु ने रिजर्व वेयर बना रखा है। जब भी बिजली आती है तो मोटर, इंजन आदि से उसमें पानी भरते हैं। वेयर से कुछ ऊंचाई पर पशुशाला है। इसमें गाय, भैंस, बछड़े बंधे रहते हैं। उनका गोबर व मूत्र वेयर में आता है, जो पानी में मिलता है और सिंचाई के जरिए फसलों में पहुंचता है। कीटों को मारने के लिए वह बायो कंट्रोल सिस्टम अपनाते हैं। उन्होंने यहीं पर आठ बीघा जमीन पर पोलीहाउस बना रखा है, जो ऊपर से कवर्ड है। इसमें टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा आदि की खेती करते हैं। इसकी तकनीक सीखने के लिए वह इजराइल गए थे। टमाटर की फसल की ऊंचाई पन्द्रह फिट तक है, जिस पर नीचे से ऊपर तक टमाटर ही टमाटर लदा है। पौधों को रस्सी के सहारे ऊपर तक ले जाया गया है। प्रति बीघा सौ कुंतल टमाटर व 50 कुंतल खीरा उत्पादन का रिकार्ड उनके पास है। वह इनका बीज हॉलैंड से लेकर आए थे। पोलीहाउस में कृत्रिम बारिश करने के साथ दस डिग्री तक तापमान घटाने और बढ़ाने की व्यवस्था है।
श्री संधु को मेरठ और पंतनगर के कृषि विश्वविद्यालय अक्सर लेक्चर के लिए बुलाते हैं। वहां से प्रोफेसर, कृषि विशेषज्ञ भी फार्म पर आते हैं। बताते हैं कि फिलीपींस के इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के हेड डा. खुश फार्म पर आए थे। उन्होंने खेती देखी तो बोले कि, ऐसी जैविक खेती उन्होंने दुनिया में कहीं नहीं देखी है।
वह बताते हैं कि सरकार खेती को बढ़ावा देने की बात करती है, लेकिन अमल नहीं होता। पोलीहाउस के लिए उत्तर प्रदेश सरकार कोई सहयोग नहीं करती, जबकि उत्तराखंड सरकार पचास फीसद अनुदान देती है, इसीलिए आठ बीघा का पोलीहाउस जनपद की सीमा पर उत्तराखंड में बना रखा है।