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पेट की आग में झुलस छोटू के सपने

रायबरेली : बच्चे के धरती पर कदम रखते ही माता-पिता का सिर्फ एक सपना होता है कि वह बड़ा अफसर बने, लेकि

By Edited By: Published: Thu, 04 Feb 2016 11:08 PM (IST)Updated: Thu, 04 Feb 2016 11:08 PM (IST)
पेट की आग में झुलस छोटू के सपने

रायबरेली : बच्चे के धरती पर कदम रखते ही माता-पिता का सिर्फ एक सपना होता है कि वह बड़ा अफसर बने, लेकिन कुछ 'छोटू' की परिस्थितियां बचपन से ही विपरीत हो जाती हैं।वह पेन-पेंसिल पकड़ने के बजाय अपने नन्हें हाथों से लोगों के झूठे गिलास धोने और दुकानों में काम-काज करके परिवार का पेट पाल रहे है। कुछ ऐसी ही हकीकत श्रम विभाग के आंकड़े बयां कर रहे है। आंकड़ों के मुताबिक जिले में 46,833 बाल श्रमिक हैं। इनमें बड़ी संख्या में बालिकाएं भी है।

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आंकड़ों के मुताबिक जिले में पांच से 14 वर्ष की उम्र में 27,284 बालक और 19,599 बालिकाएं बाल श्रम कर रही हैं। इसका अनुपात 5.5 आंका गया है। रोडवेज बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, सब्जी मंडी, सिनेमा हाल समेत अन्य सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा बीनते हुए बच्चों का झुंड अक्सर दिखाई दे जाता है। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद इनके भविष्य को छांव नहीं मिल पाती है। 14 वर्ष की उम्र पार करने के बाद श्रम विभाग के अफसर अपने हाथ खड़े कर लेते है तो 15वीं में कदम रखते ही परिवार का 'छोटू' घर खर्च चलाने के काबिल हो जाता है। दुकानों पर काम करने वाले बच्चे ये तक नहीं जानते है कि स्कूलों की क्या कार्यशैली होती है।

ये है बाल श्रम कानून

बाल श्रम पर नियंत्रण करने तथा कार्य के लिए घंटों की निश्चित करने के लिए सर्वप्रथम कारखाना अधिनियम 1881 में बनाया गया था। 1929 में कार्यरत बच्चों की आयु का गठन किया गया था। इसके सुक्षाव के आधार पर 1933 में बाल श्रम अधिनियम बनाया गया था। इसके अनुसार 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के काम करने पर रोक लगा दी गई थी। वहीं कारखाना अधिनियम में बाल श्रमिकों को सुरक्षा प्रदान की गई। 1986 में बाल मजदूर अधिनियम में इस उद्देश्य को प्राप्त करने की व्यवस्था है। 1988 में अधिसूचित नियमों की अनसूची में छह व्यवसाय है। इनमें बच्चों को रोजगार पर लगाना प्रतिबंधित है।

क्या कहते है डॉक्टर

जिला अस्पताल के डाक्टर सालीम बताते है कि कूड़े के ढेर से सामग्री बटोरते और झूठे गिलासों को धोते समय बच्चों के जरिए घातक बीमारियां भी उनके घर तक पहुंच जाती है। जिससे उनके साथ-साथ परिवारीजन भी बीमारी का शिकार होते दिखते है। ऐसे में बच्चों से उन्हीं कार्यों को कराया जाए जो उनकी उम्र क लिए शोभनीय है।

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'बाल श्रम को रोकने के लिए विभाग द्वारा दी गई गाइड लाइन के मुताबिक प्रत्येक तीन माह में छापेमारी कर अभियान चलाया जाता है। जिससे बाल श्रमिकों का पंजीकरण सरकारी स्कूलों में करा कर उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। बाल श्रमिकों का प्रतिशत कम करने को सभी प्रयास किए जा रहे है।' -अमित कुमार मिश्रा, सहायक श्रमायुक्त, रायबरेली।


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