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14 साल की उम्र में ही जज्बा था देश भक्ति का

संजीव ¨सह, परशदेपुर (रायबरेली) अंग्रेजों को भूमि का लगान देने से गांव वालों को रोकने के जुर्म में

By Edited By: Published: Mon, 27 Jul 2015 09:05 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2015 09:05 PM (IST)
14 साल की उम्र में ही जज्बा था देश भक्ति का

संजीव ¨सह, परशदेपुर (रायबरेली)

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अंग्रेजों को भूमि का लगान देने से गांव वालों को रोकने के जुर्म में बद्रीप्रसाद को जेल में ठूंस दिया गया था। बात है सन 1944 की। जिले के डीह थाना क्षेत्र की पुलिस चौकी परशदेपुर के गांव टंटापुर मजरे फागूपुर में अंग्रेज सिपाही जगमोहन ¨सह व सुक्खू ¨सह गांव में लगान वसूलने आए थे ।निर्धारित लगान से अधिक वसूलने पर गांव के परशुराम मौर्य के विरोध करने पर दोनो सिपाहियों ने उसे हंटर, कोड़ा से बुरी तरह पीटा था। इस पर बद्री प्रसाद की अगुवाई में आक्रोशित होकर गांव के संकठा यादव, जियावन मौर्य, भगौती मौर्य, भगवान मौर्य, जग्गू मौर्य, गंगा लोध, बाबू कुरैशी, व रामहरख दुबे के साथ मिलकर दोनों सिपाहियों की जमकर पिटाई की जिसमें अंग्रेज सिपाही जगमोहन ¨सह मरणासन्न हो गया था। परशदेपुर निवासी बंशीलाल मिश्र दोनों सिपाहियों को बैलगाड़ी में लादकर सलोन दवा कराने ले गए थे ।यह पता चलने पर भारी फोर्स के साथ टंटापुर गांव पहुंचे अंग्रेजी हुकूमत के अफसरों ने बद्री प्रसाद समेत आठ लोगों को एक रस्सी में बांधकर गांव से आठ किलोमीटर दूर पैदल सलोन थाने ले गए। सलोन थाने में 8 मई सन 1944 को धारा 143,333,149, 38 डीआईआर के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। न्यायधीश ने रायबरेली में तीन वर्ष की सजा सुनाई। उस समय बद्रीप्रसाद की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। इन्हे सश्रम तीन साल की सजा दी गई। 5 अप्रैल सन 1946 को केंद्रीय कारागार बनारस भेज दिया गया। नई दिल्ली में 13 नवंबर को संसद भवन पर सत्याग्रह के लिए जंतर मंतर में भी शामिल हुए थे। उसके बाद स्वतंत्रता की पचीसवीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त सन 1972 को लखनऊ में सम्मानित किया था।इनके सभी साथी लगभग बीस साल पहले ही इस दुनिया से विदा हो गये थे।

एक हसुली में बिक गया था अंग्रेज अफसर

अंग्रेज सिपाहियों को पीटने पर भले ही बद्रीप्रसाद व उनके साथी तीन साल जेल में गुजारना पडा हो ¨कतु उसमे शामिल उनके एक मित्र को उसकी मां ने अंग्रेज सिपाही को अपने गले की एक हसुली घूस में देकर छुड़ा लिया था ।बद्रीप्रसाद बताते थे कि दुखी कोरी की मां पुलिस अधिकारी के सामने गले की हसुली देकर अपने बेटे को छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाने लगी जिस पर पुलिस अधिकारी ने हसुली लेकर दुखी को छोड़ दिया था।


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