आखिर मेरा क्या कसूर था मां?
रानीगंज, प्रतापगढ़ : मां के पेट में नौ महीने रहने के दौरान उसने दुनियां में आने का ख्वाब देखा, ढेर स
रानीगंज, प्रतापगढ़ : मां के पेट में नौ महीने रहने के दौरान उसने दुनियां में आने का ख्वाब देखा, ढेर सारी रंग बिरंगी कहानियां सुनीं, इस खूबसूरत सफर में उसने बहुत से ख्वाब संजोए। मां की कोख में नौ महीने बिताने के बाद अब उसके आंचल में समा जाने को बेकरार थी।उसकी भी तमन्ना थी मां के आंचल का प्यार मिले, पापा का दुलार मिले। उसका ख्वाब था कि जब वो अपने नन्हें-नन्हें पांव पहली बार जमीं पर रखे तो मां-पापा खुशी से पागल हो जाएं। पहली बार स्कूल जाएं तो उसकी फोटो खींची जाए। गुड्डे-गुड़ियों के साथ खेलने का मौका मिले। अपने नन्हें हाथों का स्पर्श सुख वो मां को देना चाह रही थी। अपने पापा की उंगली पकड़कर पूरी दुनिया की सैर करना चाहती थी। वो खूबसूरत पल आया भी। नन्हीं परी ने इस दुनियां में कदम भी रखा पर न सोहर गाए गए और न ही कोई खुशी झलकी। पहली बार जमीं पर आई तो मंदिर की दर पर लावारिस हालत में फेंक दी गई। मां ने उसे पता नहीं किस मजबूरी में एक कपड़े में लपेटकर छोड़ दिया। अफसोसजनक! माता कुमाता हो गई।
फतनपुर थाना क्षेत्र के जगतपुर मोड़ के नजदीक चुरावन का पूरा गांव स्थित हनुमान मंदिर के पास शुक्रवार की सुबह ग्रामीणों ने नवजात बच्ची के रोने की आवाज सुनी। वह अनवरत रो रही थी। उसके चेहरे पर पड़ रही सूर्य की रश्मियां झुलसा देना चाह रही थीं। सूर्य देव भी बेचारे क्या करें। तपिश तो उनकी प्रकृति ही है। वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। मासूम लगातार रो-रोकर शायद मां से यही पूछ रही थी कि अगर तुम्हें मुझे यूं ही पैदा करने के बाद लावारिस फेंक देना था तो पैदा ही क्यों किया। मां तुमने ऐसा क्यों किया। आखिर मेरा क्या कसूर है मां?।
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बिल्कुल स्वस्थ है नवजात बच्ची
लोगों ने पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस नवजात को गौरा सीएचसी ले गई। अधीक्षक डा. ओपी ¨सह ने बच्ची परीक्षण का उसे स्वस्थ बताया। अनुमान लगाया गया कि उसका जन्म दो दिन पहले हुआ है। पुलिस ने नवजात बच्ची की सुरक्षा को लेकर अग्रिम कार्रवाई शुरू कर दी। इस बच्ची को मां ने आखिर क्यों छोड़ दिया, क्या ऐसी मजबूरी थी, इस तरह के सवाल लोगों के जेहन में गूंज रहे हैं। लोग कहने लगे कि शायद उसे कन्या होने की सजा मिली। मां के सामने जरूर कोई मजबूरी रही होगी, तभी उसने उसे ठुकराया, लेकिन इसमें भला बच्ची का क्या दोष। वह तो मां की गोद में खेलने की हकदार है। पिता के दुलार को पाने का उसे अधिकार है। इस हक को छीनने वालों पर कानून का चाबुक चलना चाहिए।