उधारी की पटरी पर चल रही किसानों की गाड़ी
कौशांबी : नोटबंदी के बाद से गांवों की ¨जदगी जैसे ठहर गई है। हालात यह है कि लोगों को अपना गुजर बसर कर
कौशांबी : नोटबंदी के बाद से गांवों की ¨जदगी जैसे ठहर गई है। हालात यह है कि लोगों को अपना गुजर बसर करने के लिए उधारी के सहारे रहना पड़ रहा है। किराना व्यापार को छोड़ कर किसानी से संबंधित अन्य व्यापार उधारी पर चल रहे हैं। खेत की जुताई, मवेशियों के चारा की मड़ाई से लेकर गेहूं की पिसाई और अन्य गांव स्तर के काम सभी उधार पर टिके हुए हैं। अब नोटबंदी के 30 दिन बाद के यह हालत अभी तक सुधर नहीं सके हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में भी लोगों की उम्मीद कुछ बदलती हुई दिखाई दे रही है।
बुधवार को नोटबंदी के आदेश का ठीक 29वां दिन है। ऐसे में दोआबा में हालात कुछ हद तक तो सुधरे हैं लेकिन उतना नहीं कि जितना आम लोगों की ¨जदगी आसानी से चल सके। खराब हालात तो गांवों के हैं। छोटे और फुटकर धंधा करने वाले लोगों के लिए पांच सौ और एक हजार रुपये के नोट आफत बने हुए हैं। ग्रामीण अपनी छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्थानीय फुटकर विक्रेता के पास पांच सौ और हजार रुपये के नोट लेकर जा रहे हैं। यहां पर चलन में नोट बंद होने पर छोटे और फुटकर दुकानदारों को मजबूरी में या तो नोट लेना पड़ रहा है या फिर उधार ही लोगों को सामान देना पड़ रहा है। यही हाल किसानों का है। खाद, पानी और बिजली के बिल के अलावा खेतों की जुताई के लिए ट्रैक्टर मालिकों की उधारी करना पड़ रहा है। एक महीना से अधिक समय से उधारी नहीं मिलने से लोग एक दूसरे से परेशान भी हैं। उधारी की रकम रूकने के कारण लोग झल्लाए हुए भी हैं। ऐसे में गांवों में लोगों की ¨जदगी उधारी की पटरी पर चल रही है।
साझे में चल रहा काम : नोटबंदी के असर से बचने के लिए गांवों में कुछ लोगों ने नया तरकीब खोज निकाला है। इसके लिए लोगों ने एक ऐसा संगठन बना लिया है जिससे कि उन्हें पुराने नोटों को लेकर परेशान नहीं होना पड़ता है। खेतों की जुताई हो या फिर फसलों की ¨सचाई, रुपयों की अदायगी के लिए ट्रैक्टर और नलकूप के मालिकों को एकमुश्त में बड़ी रकम साझा कर लोग दे रहे हैं। इसके बदले में फसलों की अदला बदली या फिर रुपये बाद में मिलने के समझौता कर काम चला रहे हैं।
प्रभावित हुआ कपड़ों का कारोबार : नोटबंदी के बाद से दोआबा में कपड़ों का बाजार भी काफी प्रभावित हुआ है। पिछले दिनों सहालग के समय में कपड़े व्यवसायी की दुकानों से बिकने वाले कपड़ों में भारी गिरावट आई है। दुकानदारों की मानें तो नोटबंदी के पहले सहालग के समय में उनके दुकान में भीड़ कम नहीं होती थी और करीब प्रतिदिन दो से ढाई लाख रुपये की बिक्री होती थी, लेकिन नोटबंदी का यह असर है कि अमूमन दिन भर में दस से पंद्रह हजार रुपये की बिक्री हो रही है।