मम्मा..मैं इतनी भी क्या पराई
प्रतापगढ़ : मेरी प्यारी मां..मेरी किलकारी खामोश थी। मेरी नन्हीं आखें अपने आसपास कई अजनबी चेहरे देख ह
प्रतापगढ़ : मेरी प्यारी मां..मेरी किलकारी खामोश थी। मेरी नन्हीं आखें अपने आसपास कई अजनबी चेहरे देख हैरान थीं। हर कोई मुझे दया भाव से देख रहा था। कोई शब्दों से तो कोई भावों से मुझसे हमदर्दी जता रहा था। कई लोग पुचकार रहे थे, लेकिन मेरी निगाहें तुमको तलाश रहीं थीं। मैं तुम्हारे घर का पता तो नहीं जानती, पर एक खुला पत्र लिख रही हूं।..
मेरी प्यारी मां..तुमने मुझे जन्म दिया। इस दुनिया को देखने का अवसर दिया। इसके लिए मैं तुम्हारी आभारी हूं, लेकिन एक ही पल में मुझे अपने आंचल से जुदा कर दिया, भला क्यों। अभी तो मैंने तुमको ठीक से निहारा भी नहीं। पप्पा ने मुझे पुचकारा भी नहीं और मुझे पराया कर दिया। अरे मां मुझे अभी से ही बोझ समझ लिया। अपनी गोद में झुलाने की बजाय मुझे जिला अस्पताल के बेड पर छोड़ दिया। मम्मा..मैंने तुमसे कुछ मांगा भी तो नहीं था। खुद एक नारी होकर भी तुमने मुझे ठुकरा दिया, मुझे वहां छोड़ दिया जहां कोई मेरा नहीं था। क्या इसलिए कि मैं लड़की थी। मम्मा तुमने मेरी भूख भी न समझी, प्यास भी न जानी। मुझे बुखार था मम्मा। महिला अस्पताल के एसएनसीयू में भर्ती करने वाले डाक्टर इसरार अंकल कह रहे थे कि समय पर दवाई न मिलती तो मैं शायद मुरझा जाती मां, वह भी हमेशा-हमेशा के लिए।
इस दर्द को लेकर अब लगता है मुझे जीना ही पड़ेगा। इसलिए ताकि मैं तुमसे और पप्पा से कुछ सवाल कर संकू। अगर मैं बिट्टी की जगह भइया होती तो भी क्या तुम मुझे ऐसे ही ठुकरा देती। क्या तुम इस निर्दयता पर चुप रहती। क्या तुम मुझसे छुटकारा पाने की जुगत करती..शायद तुम्हारा जवाब न में होगा। मैं यह भी मानती हूं कि तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी..या फिर पप्पा ने तुमको मुझे जुदा करने पर विवश किया होगा, लेकिन तुम खामोश क्यों रही। क्यों तुम अबला बनी रही। क्यों तुमने समूचे नारी जगत के लिए चूड़ियों की खनक को ललकार नहीं बनाया। जरा सोचो मम्मा..अगर तुम्हारी मां ने ऐसा किया होता तो तुम्हारा अस्तित्व कहां होता।
मां ऐसा ही करना था तो मुझे जन्म ही क्यों दिया। क्या मैं भइया के खिलौने तोड़ देती, क्या मैं तुम्हारे साथ रोटी न बेलती। क्या मैं कल्पना चावला, सानिया मिर्जा बनने की कोशिश न करती। मेरे व्यथित और कच्चे मन में इतने सारे सवाल कौंध रहे हैं तो तुम्हारे मन में उथल-पुथल क्यों नहीं है। यह बात मुझे हमेशा अखरेगी। मैं जी तो लूंगी किसी भी तरह से, किसी भी नाम से, लेकिन मां शायद तुम अपने आप को कभी माफ न कर सकोगी। मेरा पत्र पढ़कर मन में करुणा जगे तो आना मेरे पास। तुम अपने आप को माफ कर पाओ, न कर पाओ..लेकिन मैं तुमसे मिलकर सारे गिले शिकवे भूल जाऊंगी। तुम्हारे इंतजार में.. तुम्हारी बेटी। नाम-पता नहीं। उम्र-एक दिन।