आचार-विचार को रखें शुद्ध
अमरगढ़, प्रतापगढ़ : परिवर्तन की शुरुआत व्यक्ति को स्वयं करनी होगी। मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद ऐसा प्रतीत होना चाहिए कि व्यक्ति धर्मात्मा है। उसके आचार विचार भी उसी तरीके होना चाहिए, जिसका लोग अनुसरण कर आगे बढ़ने की प्रेरणा लें।
उक्त बातें जैन मुनि सौरभ सागर महराज ने क्षेत्र के गौरामाफी में अपने प्रवास के दौरान आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि हमारा व्यवहार, क्रिया कलाप, आचरण भी हमारी धार्मिक भावना को व्यक्त करते हैं। शराब, जुआ, गुटखा, मांसाहारी, धूम्रपान सहित अन्य बुराइयों में फंसकर व्यक्ति धार्मिक पथ से विचलित होकर बुराई के रास्ते पर चल पड़ता है। इससे उसका जीवन कष्टकारी होता है। हम सब को शाकाहारी रहकर सभी जीवों पर दया करनी चाहिए। उन्होंने अंत में बताया कि बुराइयों को छोड़कर व्यक्ति को परोपकार, दया, करुणा एवं सेवा धर्म को ग्रहण करना चाहिए तो निश्रि्वत ही उसका जीवन आनंदित व आह्लादित होगा।
जैन मुनि वाराणसी से पदयात्रा करते हुए रायबरेली तक जा रहे हैं। रास्ते में जहां पर उनका प्रवास होता है। वे वहां प्रवचन कर लोगों को सुख शांति से रहने का संदेश देते हैं।