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बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे कृपालु जी महाराज

By Edited By: Published: Fri, 15 Nov 2013 05:10 PM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2013 05:11 AM (IST)
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे कृपालु जी महाराज

कुंडा, प्रतापगढ़ : ननिहाल मनगढ़ गांव में पैदा हुए जगद्गुरु कृपालु जी महाराज बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्हें 35 साल की आयु में काशी विद्वत परिषद ने जगद्गुरुतम की उपाधि दी थी।

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कुंडा तहसील के विकास क्षेत्र बाबागंज के मनगढ़ गांव के लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे जिले के लिए शरद पूर्णिमा का दिन गौरवशाली रहा। इस दिन 18 अक्टूबर को 1922 में ननिहाल मनगढ़ में एक ऐसे चमत्कारी बालक का जन्म हुआ, जो बाद में देश के साथ-साथ विदेश में भी अपनी विद्वता के लिए जाना पहचाना जाने लगा। वह शख्स थे राम कृपाल त्रिपाठी (जगद्गुरु श्रीकृपालु जी महाराज)। बचपन में ही असाधारण प्रतिभा से लोगों का ध्यान आकृष्ट किए थे। करीब 13 वर्ष की अवस्था में वह वर्ष 1935 में साहित्य एवं व्याकरण के अध्ययन के लिए महू पीथमपुर मध्यप्रदेश चले गए। वहां पर भी दो वर्ष तक शिक्षा ग्रहण करने के दौरान अपनी प्रतिभा से वह संस्था के शिक्षकों को आश्चर्य किए हुए थे। दो साल में वह शिक्षा अर्जित करने के बाद भक्ति का रस बांटने लगे।

18 वर्ष की अवस्था में उन्होंने भक्तों को व्रज रस बांटना शुरू कर दिया। भक्तों ने उनमें उस समय राधा रानी के प्रेम का परम भाव देखा। इसके बाद महाराज जी ने देश के विभिन्न हिस्सों में वर्षो तक भारत भ्रमण कर राधा कृष्ण के प्रेम के प्रसंग को सुनाते हुए अलौकिक ज्ञान को पहुंचाया।

14 जनवरी 1957 को काशी में एक ऐतिहासिक घटना घटी, जब श्रीकृपालु महाराज ने काशी विद्वत परिषद में आयोजित भारतीय शास्त्रों के प्रतिभाशाली विद्वानों की सभा में आश्चर्य चकित कर देने वाले प्रवचन की श्रृंखला प्रस्तुत की। सात दिन तक शास्त्री रहस्यों का उद्घाटन करते हुए एवं दर्शन शास्त्रों जगदगुरुओं के ग्रंथों में पाए जाने वाले विरोधाभासों का समन्वय करते हुए संस्कृति में विद्वतापूर्ण प्रवचन दिया। उन्होंने सैकड़ों की संख्या में भारतीय धर्म ग्रंथों से प्रमाण प्रस्तुत किए। जन साधारण के अतिरिक्त 500 से अधिक वाराणसी तथा भारत के अन्य भागों के संस्कृत के विद्वान ने उनकी प्रतिभा की प्रसंशा की। इसमें रामकृपाल त्रिपाठी (श्री कृपालजी महाराज) को काशी विद्वत परिषद के पंडितों ने जगद् गुरुत्तम के साथ ही भक्तियोग रसाअवतार एवं निखिलदर्शन समन्वयचार्य आदि उपाधियों से विभूषित किया था। इस प्रकार जगद्गुरु कृपालु जी महाराज पांचवे मूल जगद्गुरू कहलाने के हकदार बने थे। तब से आज जगद्गुरु कृपालु जी महाराज द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में राधा कृष्ण के प्रेम का भाव प्रकट करते हुए कई मंदिरों की स्थापना की।

जगद्गुरु कृपालु महाराज मूलरूप से जनपद के लालगंज तहसील क्षेत्र के हंडौर के रहने वाले थे। उनके पिता लालता प्रसाद त्रिपाठी पत्नी भगवती देवी के साथ ससुर राम बदन त्रिपाठी के यहां मनगढ़ में रहते थे। श्री कृपालु जी महाराज तीन भाई थे। सबसे बड़े राम नरेश त्रिपाठी, दूसरे स्थान पर अवधेश नारायण त्रिपाठी एवं सबसे छोटे राम कृपाल त्रिपाठी (श्री कृपालु जी महाराज) थे।

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