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खून से हो रही करोड़ों की काली कमाई

जागरण संवाददाता, पीलीभीत : खून के काले कारोबार का टर्न ओवर तीन करोड़ है। इस सच्चाई को हम नहीं आंकड़

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Jul 2017 05:23 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jul 2017 05:23 PM (IST)
खून से हो रही करोड़ों की काली कमाई
खून से हो रही करोड़ों की काली कमाई

जागरण संवाददाता, पीलीभीत : खून के काले कारोबार का टर्न ओवर तीन करोड़ है। इस सच्चाई को हम नहीं आंकड़े बयां कर रहे हैं। दरअसल, जिले में प्रत्येक माह करीब दो हजार ब्लड यूनिट की दरकार है। एक नंबर से महज छह से साढ़े छह सौ यूनिट ही जरूरतमंदों तक पहुंचते हैं। मांग एवं आपूर्ति का यही अंतर खून के काले कारोबार को करोड़ों पहुंचा दिया है। शहर में खून का खेल उजागर होने के बाद जागरण ने पड़ताल की तो काले कारोबार की आर्थिक हदें चौकाने वाली सामने आईं। सवाल है, इतने बड़े साम्राज्य को क्या पकड़े गए छह मोहरे चलाते होंगे या फिर इनके पीछे कोई बड़ा सफेदपोश नेटवर्क काम कर रहा है। इस सच्चाई से सही पर्दा तो विशेष जांच एजेंसी की छानबीन में ही सामने आ सकता है।

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यूं तो जिले में करीब डेढ़ दर्जन हॉस्पिटल ऐसे होंगे, जहां से सर्जरी के लिए ब्लड की डिमांड होती है। सिर्फ शहर की बात करें तो हॉस्पिटल की संख्या करीब आठ हैं। इनमें कई डॉक्टर तो अधिकांश समय तो सर्जरी में व्यस्त रहते हैं। विशेषज्ञ चिकित्सकों की माने तो एक गर्भवती का सीजेरियन से प्रसव हुआ तो कम दो यूनिट ब्लड तो चाहिए ही। इसके मुताबिक शहर के हॉस्पिटल में 960 यूनिट ब्लड चाहिए। जबकि जिले के दोनों ब्लड बैंकों से औसतन छह सौ यूनिट ब्लड की दरकार होती है। दोनों ब्लड बैंक जिले के अलावा पास-पड़ोस के जिलों के मरीजों को भी ब्लड देने का दावा करते हैं। इससे स्पष्ट है कि खून का काला कारोबार जिले में बड़े पैमाने पर चल रहा है। जिले की जरूरत पर गौर फरमाएं तो खूने के काले कारोबार का दायरा करीब 1500 यूनिट ब्लड

प्रत्येक माह तक जाकर बैठेगा।

यूं पहुंचा तीन करोड़ तक काला कारोबार

ब्लड बैंकों में निगेटिव ब्लड ग्रुप की कमी होती है। मसलन एक निगेटिव, बी निगेटिव, एबी निगेटिव, ओ निगेटिव। वर्तमान में गौर फरमाएं तो सरकारी ब्लड बैंक में महज ओ निगेटिव का एक यूनिट बचा है। स्वास्थ्य विभाग के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिसके जरिए दूसरे जिलों के बैंक से ब्लड मंगाया जा सके। ऐसे में खून के काले कारोबारी मुंह मांगी रकम वसूलते हैं। कारोबारियों को एक यूनिट ब्लड करीब एक हजार में पड़ता है। सरकार की जागरूकता के बावजूद लोग खून देने से बचने का हर संभव प्रयास करते हैं। हां, विकल्प हो तो रुपये खर्च करने से पीछे नहीं हटते। इस मुताबिक 1500 यूनिट ब्लड का काला कारोबार सालाना तीन करोड़ से उपर पहुंचता है।

बैंक में ब्लड लेने की प्रक्रिया

बैंकों में ब्लड लेने से पूर्व तीमारदार या रोगी के पास चिकित्सक का मांग पत्र होना चाहिए। उसके बाद काउंसलर डोनर की काउंसि¨लग करते हैं। दरअसल,

तीमारदार ब्लड देने वाले को अपना रिश्तेदार बनाते हैं। काउंसि¨लग में स्पष्ट होने के बाद ही डोनर से ब्लड लिया जाता है। काउंसि¨लग में कहीं कोई चूक न रह जाए, इसके लिए तीमारदार, डोनर से अलग-अलग बातचीत की जाती है।

प्रोफेशनल्स की ऐसे होती पहचान

पैसे के लिए खून देने वालों के शरीर में हीमोग्लोबीन की कमी होती है। मसलन एक सामान्य पुरुष में हीमोग्लोबीन करीब 14 से 15 ग्राम, महिला में 11 से 12 ग्राम होता है। जबकि प्रोफेशनल्स में हीमोग्लोबीन की मात्रा आठ से दस तक सिमटकर रह जाती है।

यहां से होती है डिमांड

1-गोखले अस्पताल

2-एसएस हॉस्पिटल

3-सचान नर्सिंग होम

4-रामअवध नर्सिंग होम

5-डॉ. भरत सेठी।

6-डॉ. तरुन सेठी

7-डॉ. बी. दास

फोटो : 16 पीआइएलपी 15

झमहारे यहां से प्रत्येक माह करीब डेढ़ से दो सौ तक औसतन ब्लड यूनिट की आपूर्ति होती है। डोनर की काउंसि¨लग कराने के बाद ही ब्लड दिया जाता है। बैंक से जो ब्लड यूनिट जारी होती है, उसका प्रमाण होता है। प्रत्येक ब्लड बैग की अपनी आइडी होती है। जिससे गड़बड़ी करने की आशंका नहीं बच पाती है।'

डॉ. महावीर ¨सह

ब्लड बैंक प्रभारी स्वास्थ्य विभाग

फोटो : 16 पीआइएलपी 16

ब्लड बैंक में भी प्रत्येक माह दस से 12 फर्जी डोनर पहुंचते हैं। काउंसि¨लग के जरिए ही ऐसे लोगों को छांटकर अलग-अलग किया जाता है। ब्लड देने वालों के हाथों पर भी ध्यान से देखने पर बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। ब्लड निकालने के संभावित स्थानों पर गौर से देखने पर निशान नजर आ जाते हैं।

नायब रसूल

काउंसलर ब्लड बैंक

फोटो : 16 पीआइएलपी 17

\Þहमारे यहां से प्रत्येक माह औसतन 450 यूनिट ब्लड विभिन्न चिकित्सकों के डिमांड पर दी जाती है। ब्लड देने से पहले मांग पत्र, सेंपल, डोनर के बारे में गहराई से छानबीन की जाती है। कर्मचारी भी कहीं से चूक न करने पाएं, इसके लिए सीसी कैमरे लगे हैं। जिन्हें हमारे मोबाइल से भी जोड़ा गया है, ताकि एक-एक गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। एक सवाल के जवाब में बताया कि हम अपने यहां एक-एक ब्लड बैग लीक होने या प्रयोग होने के बाद खुद के सामने नष्ट कराते हैं।'

डॉ. नीलम अग्रवाल,

जीवन रेखा ब्लड बैंक

इनसेट ..

कहां से आया प्रतिबंधित बैग?

फोटो : 16 पीआइएलपी 18

पीलीभीत : ब्लड को इकट्ठा करने वाला बैग आम लोगों के लिए प्रतिबंधित है। इसे ब्लड बैंक के लाइसेंसधारी की मांग पर ही दिया जाता है। जिस पर बाकायदा आइडी नंबर लिखा होता है। बरामद बैग पर किसी तरह का आइडी नंबर अंकित नहीं था। ब्लड बैंक से जुड़े लोगों का कहना है कि ब्लड के उपयोग के बाद बैग को नष्ट करने का नियम है। जबकि अमूमन उसे डस्टविन में डाल दिया जाता है, जिससे दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है।


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