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बादलपुर में बैकलीज के विवादित प्रकरण निरस्त

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए बादलपुर गांव में विवादित प्र

By Edited By: Published: Mon, 06 Jul 2015 09:09 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2015 09:09 PM (IST)
बादलपुर में बैकलीज के विवादित प्रकरण निरस्त

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए बादलपुर गांव में विवादित प्रकरणों की बैकलीज रद करने के निर्देश दिए हैं। नोएडा, ग्रेटर नोएडा के अन्य गांवों में बैकलीज के प्रकरणों की जांच के आदेश दिए गए हैं। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई है। जिन अधिकारियों ने बादलपुर गांव में बैकलीज के विवादित प्रकरणों को मंजूरी दी थी, उनके खिलाफ थाने में मामला दर्ज करने के निर्देश भी कोर्ट ने दिए हैं। इसके लिए प्राधिकरण को 21 जुलाई तक का समय दिया गया है। निर्धारित अवधि में प्राधिकरण द्वारा थाने में मामला दर्ज कराकर इसकी सूचना कोर्ट को देनी होगी।

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बादलपुर बसपा सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का पैतृक गांव है। बसपा के सत्ता में आने के बाद प्राधिकरण ने गांव में जमीन अधिग्रहण किया था। किसानों ने जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई के दौरान आबादी को भी अधिगृहीत करने का आरोप प्राधिकरण पर लगाया था। इसके लिए बादलपुर गांव में व्यापक स्तर पर आंदोलन हुआ था। किसानों के आंदोलन के बाद प्राधिकरण ने 2010-11 में किसानों की आबादी को अधिग्रहण से मुक्त करने का निर्णय लिया। चूंकि, राजस्व अभिलेखों में किसानों का नाम हटाकर प्राधिकरण का नाम दर्ज करा दिया गया था, इसलिए जमीन पर वापस किसानों का नाम दर्ज करने के लिए बैकलीज (रजिस्ट्री) की कार्रवाई की गई। पतवाड़ी गांव की रहने वाली कमल देवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि प्राधिकरण ने सभी किसानों को समान लाभ नहीं दिया। सत्ता के दबाव में आकर प्राधिकरण ने बादलपुर गांव में ऐसे किसानों की जमीन आबादी मानकर छोड़ दी, जो कृषि भूमि थी। इतना ही नहीं, अधिग्रहण के बाद किसानों ने जमीन का मुआवजा भी उठा लिया था। बाद में प्राधिकरण ने मुआवजे को वापस जमा कराकर आबादी के नाम पर जमीन को छोड़ दिया। नियमानुसार एक बार मुआवजा उठाए जाने के बाद वह प्राधिकरण में वापस नहीं हो सकता। कमल देवी ने आरोप लगाया कि कृषि भूमि को आबादी मानकर छोड़ा गया और बाद में उसे अच्छी लोकेशन पर दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया गया। यह भी आरोप लगाया गया कि किसानों ने दस दिन के अंदर जमीन को बेच दिया। प्राधिकरण ने इसकी अनुमति दी। बाद में जमीन का भू-उपयोग परिवर्तित कर दिया गया। हाईकोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए प्राधिकरण को जवाब दाखिल करने को कहा था। सोमवार को इस मामले की सुनवाई न्यायामूर्ति अरूण टंडन व एसपी केसरवानी की अदालत में हुई। सुनवाई के दौरान प्राधिकरण के अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट को अवगत कराया कि बादलपुर में विवादित आबादी की बैकलीज को प्राधिकरण रद करने जा रहा है। इसके आदेश हो चुके हैं। कमल देवी के अधिवक्ता पंकज दूबे ने बताया कि कोर्ट ने सवाल करते हुए कहा कि अन्य गांवों में भी इस तरह के प्रकरण हुए हैं। इस पर प्राधिकरण के अधिवक्ता ने कहा कि ऐसे मामलों की जांच के लिए कमेटी बना दी गई है। पंकज दूबे के अनुसार कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि बादलपुर के आबादी के विवादित प्रकरणों की बैकलीज रद कर दोषी अफसरों के खिलाफ थाने में मामला दर्ज कराया जाए। इसके लिए प्राधिकरण को 15 दिन का समय दिया गया। कोर्ट अब 21 जुलाई को इस प्रकरण पर अगली सुनवाई करेगा।

क्या है आबादी बैकलीज

जमीन अधिग्रहण के बाद खसरा-खतौनी व राजस्व अभिलेखों में किसान का नाम हटाकर प्राधिकरण का दर्ज कर दिया जाता है। अभिलेखों में आबादी को वापस किसान के नाम दर्ज करने के लिए प्राधिकरण रजिस्ट्री (बैकलीज) की कार्रवाई करता है। इस दौरान किसानों से स्टांप शुल्क नहीं लिया जाता। यह कार्रवाई मात्र सौ रुपये के स्टांप पत्र पर हुई थी।

करीब एक लाख मीटर जमीन का है मामला

बादलपुर के अलावा तीन अन्य गांवों में भी इस तरह के प्रकरण बताए जा रहे हैं। इन गांवों में करीब एक लाख वर्ग मीटर जमीन ऐसी है, जिसका मुआवजा उठाए जाने के बाद वापस उसे प्राधिकरण में जमाकर जमीन को आबादी के नाम पर छोड़ा गया। जमीन की कीमत अब करोड़ों में हैं।

जांच हुई तो कई की फंस सकती है गर्दन

याचिका कर्ता कमल देवी ने कोर्ट से कहा कि प्राधिकरण ने आबादी छोड़ने के लिए समान नीति नहीं अपनाई। उसकी आबादी को अधिग्रहण से मुक्त नहीं किया गया। जबकि, अन्य गांवों में मुआवजा उठाए जाने के बाद जमीन को आबादी के नाम पर छोड़ा गया। कमल देवी का कहना है कि यदि अन्य गांवों में इस तरह के प्रकरणों की ठीक से जांच हुई तो कई सफेदपोशों की गर्दन फंस सकती है।

एक दर्जन अधिकारी आ सकते हैं कार्रवाई की जद में

हाईकोर्ट के निर्देश पर प्राधिकरण को मुआवजा उठी जमीन को आबादी के नाम पर छोड़ने वाले करीब एक दर्जन अधिकारी कार्रवाई की जद में आ सकते हैं। आबादी छोड़ने के लिए तत्कालीन डीसीईओ के नेतृत्व में कमेटी बनी थी। इसमें डीसीईओ के अलावा परियोजना, नियोजन, भूमि व संपत्ति विभाग के अधिकारी शामिल रहते थे। इन सभी के हस्ताक्षर आबादी छोड़ने के प्रस्ताव पर कराए जाते थे। कोर्ट के निर्देश पर कार्रवाई हुई तो उस समय इन विभागों में तैनात अधिकारी और कमेटी में शामिल अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो सकती है।

प्राधिकरण अधिकारियों ने साधी चुप्पी

हाईकोर्ट के फैसले के बाद प्राधिकरण अधिकारियों ने चुप्पी साध ली है। इस प्रकरण पर कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं हुआ। अधिकारियों का कहना था कि कोर्ट के आदेश की प्रति मिलने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।


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