बिल्डर खुले आम कर रहे भू जल दोहन
-शिकायतों के बाद भी सुनवाई नहीं, ग्रामीण हुए खफा -एनजीटी ने पिछले माह सात बिल्डरों को मामले में ठह
-शिकायतों के बाद भी सुनवाई नहीं, ग्रामीण हुए खफा
-एनजीटी ने पिछले माह सात बिल्डरों को मामले में ठहराया था दोषी
जागरण संवाददाता, नोएडा।
नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना प्राधिकरण के क्षेत्र में बहुमंजिला इमारत बनाने वाले कई बिल्डरों की ओर से जमकर भू जल दोहन किया जा रहा है। बिल्डर अपनी साइट पर बेसमेंट बनाने के लिए भू जल दोहन कर रहे हैं। इससे एरिया के कई गावों में वॉटर लेवल नीचे पहुंच गया है। लोगों का आरोप है कि कई बार शिकायत के बाद भी संबंधित अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। इससे गुनपुरा, अट्टा गुजरान, नौरंगपुर, सालारपुर, दनकौर कस्बा, जगनपुर सहित गावों का वॉटर लेवल नीचे पहुंच गया है।
इसकी शिकायत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) से भी की जा चुकी है, लेकिन फिर भी इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
शिकायत के बाद 19 नवंबर को एनजीटी के लोगों ने इलाके का जायजा भी लिया था। यहा उन्होंने बिल्डरों को 7 दिन के अंदर जल दोहन बंद करने के आदेश भी दिए थे, लेकिन आज भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।
चार साल में 30 फिट नीचे गिरा जल स्तर :
4 साल पहले यमुना इलाके के गुनपुरा, अट्टा गुजरान, नौरंगपुर और सालारपुर समेत दर्जनों गावों में करीब 20 फिट की गहराई पर ही लोग अपने ट्यूबवेल और नल लगवाते थे, लेकिन अब इतनी गहराई पर पानी नहीं आता। पहले की अपेक्षा जलस्तर 30 फिट नीचे गिर चुका है।
नल सूखने से दुखी हैं ग्रामीण :
ग्रामीणों की मानें तो कई बार अपने स्तर से इस समस्या की शिकायत जिले के वरिष्ठ अधिकारियों से की है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। अब भी जमकर भू जल दोहन किया जा रहा है, जबकि यमुना सिटी इलाके को क्रिटिकल जोन घोषित किया गया है।
ग्रामीणों में बढ़ रहा आक्रोश:
इस समस्या की शिकायत के बाद जब सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसे में ग्रामीणों में अधिकारियों के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है। जल्द इस समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ तो लोग ऐसे बिल्डरों के खिलाफ एक बड़ा जन आदोलन चलाने के लिए सड़क पर उतर सकते हैं।
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एनजीटी में शिकायत पहुंचने के बावजूद भी आज तक यहां अधिकारियों ने भू जल दोहन को लेकर सतर्कता नहीं अपनाई है। शिकायतों की सुनवाई न कर जिला प्रशासन और प्राधिकरण अधिकारियों ने यह साबित कर दिया है कि अब उनके लिए जनभावना कोई मायने नहीं रखती है।
-विक्रांत टोंगड़, याचिकाकर्ता, एनजीटी।