मुआवजे की जंग में हारे जिदंगी
चंद्रमणि तिवारी, दनकौर
किसी को नहीं पता था कि मुआवजे की जंग का ऐसा हश्र होगा कि कई लोग बेघर हो जाएंगे। सात मई, 2011 को पुलिसिया कहर ने उनकी खुशियों को इस कदर रौंदा कि वे अब तक नहीं उबर पाए हैं। कुछ परिवारों ने गाव को छोड़ दिया तो कई आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। कर्ज का बोझ लद चुका है, जिसके तले उनका भविष्य अंधकार में डूब रहा है।
सुहाग के साथ मिट गईं खुशिया भट्टा गाव की ओमवती घटना को नहीं भूल पाती है। जब पुलिस की गोली से उसके पति राजपाल की मौत हो गई थी। इसके बाद उसका पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर आ गया। घटना का जिक्र आते ही उसकी आखों से आसू बहने लगते हैं। वह बताती हैं कि घर में कोई भी कमाने वाला नहीं है। एक मात्र सहारा खेती का ही है, उसके तीन बेटे कपिल, मोंटिल और दीपक हैं, उनकी पढ़ाई अधर में लटक चुकी है। तीनों भाई गाव में ही खेती कर रहे हैं। खेती के अलावा जीवन यापन का कोई जरिया नहीं है। खेती के कारण बेटों की पढ़ाई भी थम गई है। ओमवती का कहना है कि घटना के बाद केंद्र सरकार ने घायलों को तो सहायता के तौर पर धनराशि के चेक दिए थे, लेकिन उसे अब तक कोई सहायता नहीं मिली है। परिवार कर्ज में डूबा है।
इस अपाहिज की सुनने वाला नहीं कोई
गाव के बाहरी सिरे पर बनी एक झोपड़ी में अक्सर एक ग्रामीण चारपाई पर लेटा रहता है। सात मई 2011 को शौकीन नामक ग्रामीण की एक टाग में पुलिस की गोली लगी थी। घटना वाले दिन से ही मानो उसके साथ उसका परिवार ही पुलिस ने अपाहिज बना दिया। उसका कहना है कि उसके पास तनिक भी जमीन नहीं है, उसका तो इस लड़ाई से भी कोई लेना देना भी नहीं था। घर का पालन पोषण वह मजदूरी से किया करता था। अब मजदूरी नहीं हो पाती है। इलाज के लिए उसके सामने आर्थिक परेशानी है। उसने बताया कि घर में पत्नी, तीन बेटे और तीन बेटिया हैं। इलाज की वजह से परिवार कर्ज में डूब गया है।
हरे हैं जख्म
भट्टा-पारसौल काड के आरोप में जेल गए किसान नेता किरनपाल सिंह की पत्नी सुनीता का कहना है कि पुलिसिया कार्रवाई से गाव का कोई भी घर अछूता नहीं रहा था। उस समय गाव से अधिकाश लोगों ने पलायन भी कर दिया था। बेकसूरों को प्रशासन ने जेल भेज कर उन्हें प्रताड़ित किया। वह कहती हैं कि उनके एक बेटा और दो बेटी हैं। पति के करीब दो साल जेल में रहने के दौरान उनके बच्चे नहीं पढ़ सके हैं। इसलिए बच्चों की दो साल की पढाई प्रभावित हो गई। अब गाव के पास स्थित स्कूल में ही बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। पूरा परिवार भुखमरी से गुजर रहा है। परिवार के पास 15 बीघे खेती है, जिस पर पूरा परिवार आश्रित है, उस पर भी मुकदमों की पैरवी में इतना खर्च होता है कि परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है।
चंद घड़ी में उजड़ गया जीवन भट्टा गाव निवासी बुजुर्ग ओमप्रकाश का तो मानो उस दिन जीवन ही उजड़ गया। वह जीवित रहते हुए भी अपना कोई काम करने में सक्षम नहीं हैं। उनकी पुत्रवधू मीनू का कहना है कि उनके ससुर घटना के दौरान सक्का गाव के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक थे। किंतु घटना से ऐसा सदमा पहुंचा कि वे उस दिन से ही बोल नहीं पा रहे हैं। करीब तीन वर्ष से अधिक समय गुजरने के बाद भी आवाज नहीं लौटी है।