बॉटेनिकल गार्डन में पेड़-पौधों से तैयार की जाती है खाद
जागरण संवाददाता, नोएडा : आज रासायनिक खाद से लोग हटकर जैविक खाद को तरजीह दे रहे हैं। इससे बॉटेनिकल गार्डन ऑफ इंडियन रिपब्लिक (बीजीआइआर) भी पीछे नहीं है। गार्डन से निकले बेकार उत्पाद को फेंकने की बजाय उसका भी प्रयोग जैव खाद बनाने में किया जाता है। इसी कारण गार्डन में पौधों की देखभाल के लिए केमिकलयुक्त खाद की जरूरत भी नहीं पड़ती है। जैव खाद बनाने से लेकर उसकी उपयोगिता के बारे में शोध कर रहे छात्रों को भी जानकारी दी जाती है।
बायो वेस्ट मैनेजमेंट के तहत बॉटेनिकल गार्डन ऑफ इंडियन रिपब्लिक में जैव खाद तैयार होता है। इस खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम (एनपीके) की मात्रा का भी खास ध्यान रखा जाता है। एनपीके किसी भी पेड़ व पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व माने जाते हैं। इनकी मात्रा भी खास अनुपात में होनी चाहिए। इसलिए गार्डन में बनी लैब में इनकी मात्रा के अनुपात की जांच भी की जाती है। इसके लिए दिल्ली स्थित द विज्ञान विजय फाउंडेशन से तकनीक सहयोग भी लिया जाता है। यही वजह है कि जैव खाद के प्रयोग से ही पेड़ व पौधे काफी हरे-भरे हैं।
कई चरण में बनाई जाती है जैव खाद
पहले चरण में गार्डन से पेड़ व पौधों से गिरी सूखी लकड़ियों,पत्तियों व काटी गई घास को खास गड्ढो में भरा जाता है। दूसरे चरण में इनमें गोबर खाद को मिलाया जाता है। जिस तरह से दही जमाने के लिए थोड़ा सी दही मिलाई जाती है। इसके बाद ही दही जमती है। इसी तरह से पेड़-पौधों के अवशेषों की खाद बनाने के लिए दूसरी जैविक खाद मिलना पड़ती है। गढ्डों में नमी बनी रहे इसका भी खास ध्यान रखा जाता है। इस दौरान सूर्य की रोशनी में सुखाया भी जाता है। आखिरी व तीसरे चरण में इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटेशियम की मात्रा का पता लगाने के लिए लैब में टेस्ट किया जाता है। यदि किसी पोषक तत्व की कमी रह जाती है तब उसे शामिल किया जाता है।
जैव खाद में नहीं किया जाता केमिकल खाद का प्रयोग
किसान केमिकल खाद का प्रयोग जमकर करते हैं। कुछ किसानों ने केमिकल खाद का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया है। बॉटेनिकल गार्डन में जैव खाद का ही प्रयोग किया जाता है। इससे न सिर्फ मिट्टी की उर्वरक क्षमता बनी रहती है बल्कि यह वातावरण को भी दूषित होने से बचाता है। यहां से जुड़े वैज्ञानिक समय-समय पर लोगों को जैव खाद के प्रयोग के लिए प्रेरित भी करते हैं। केमिकल खाद के ज्यादा प्रयोग से खासतौर पर नाइट्रोजन सबसे ज्यादा नुकसान दायक है। पौधे जरूरत के अनुसार ही नाइट्रोजन का प्रयोग करते हैं बाकि बची हुई मात्रा मिट्टी में रह जाती है और रिसकर भूजल तक पहुंच जाती है। विशेषज्ञ बताते ंहैं कि भूजल में नाइट्रोजन के मिश्रित होने से ही खासतौर पर बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रंोम जैसी घातक बीमारी के लक्षण सामने आते हैं।
यहां गार्डन में पेड़ व पौधे में जैव खाद का ही प्रयोग किया जाता है। इसका फायदा यह भी है कि गार्डन से निकलने वाले किसी भी पदार्थ बेकार नहीं जाता है। इसका प्रयोग यहीं के पेड़ पौधों के लिए किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे यहां की मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी कम नहीं होती है। इस बारे में गार्डन में आने वाले लोगों को भी जानकारी दी जाती है, जिस स्थान पर जैव खाद तैयार किया जाता है। वहां खाद बनाने के बारे में पूरी जानकारी बोर्ड पर दी गई है। ताकि लोग आसानी से अपने यहां भी जैव खाद बना सकें और उसका प्रयोग कर सकें।
-डॉ. शिव कुमार, इंचार्ज
बीजीआइआर