कानूनी जंग में खाकी की करारी शिकस्त
मुजफ्फरनगर : अपने इंस्पेक्टर की हत्या में कानूनी जंग लड़ रही खाकी को बुरी तरह शिकस्त मिली। पुलिस ने ह
मुजफ्फरनगर : अपने इंस्पेक्टर की हत्या में कानूनी जंग लड़ रही खाकी को बुरी तरह शिकस्त मिली। पुलिस ने हत्या में जिन दो लोगों को नामजद किया था, कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। इस हत्याकांड में पुलिस की जांच और लचर कार्यशैली की पोल खुली। आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं मिलने पर कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया। मामला करीब 11 साल पुराना है।
छह मार्च 2006 को खतौली इंस्पेक्टर उदय प्रताप ¨सह को तीन बदमाशों की जानकारी मिली थी। पुलिस ने एक आरोपी अमित को पकड़ लिया था तथा शेष दो लोगों को अन्य पुलिसकर्मी पकड़ने के लिए दौड़ रहे थे। इसी दौरान एक व्यक्ति ने इंस्पेक्टर पर गोली चला दी। अस्ताल ले जाते समय इंस्पेक्टर की मौत हो गई। मामले में पुलिस ने अमित निवासी मखियाली, पंकज निवासी मोरना व सचिन निवासी ककराला को गिरफ्तार किया था। घटना के कुछ दिन बाद ही आरोपी सचिन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। अदालत में पंकज व अमित के खिलाफ ट्रायल हुआ। अदालत ने पंकज को जमानत दे दी थी, जबकि अमित घटना के बाद से ही जेल में बंद है। इस मामले की सुनवाई एडीजे कोर्ट नंबर नौ में हुई। आरोपियों की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान कुमार एवं श्यामवीर ¨सह ने की। पुलिस के आरोप कोर्ट में साबित नहीं हुए और कोर्ट ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया।
यहां हुई चूक
पुलिस ने इस मामले में लापरवाही की सभी सीमाएं पार कर दीं। आरोपियों की अधिवक्ता ज्ञान कुमार का कहना है कि पुलिस ने जितने कारतूसों की लिखा पढ़ी की थी, जब उनकी सील खोली गई तो उनकी संख्या कम निकली। पुलिस ने लिखा-पढ़ी में घायल इंस्पेक्टर को अस्पताल में भर्ती कराने वाले जिस सब इंस्पेक्टर का नाम लिखा था, अस्पताल के रिकार्ड में दूसरे सब इंस्पेक्टर का नाम था। पुलिस ने मुल्जिमान की शिनाख्त भी नहीं कराई। जिस मोटरसाइकिल को इस केस में दिखाया था, वह किसी अन्य मुकदमे से संबंधित थी। कई ऐसे महत्वपूर्ण साक्ष्य थे, जिनसे पुलिस की लचर कार्यशैली प्रदर्शित हुई। जिस सब इंस्पेक्टर के बारे में लिखा था कि उसने घायल इंस्पेक्टर को अस्पताल में भर्ती कराया।