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वेदपाठी भवन में होते हैं महामना के दर्शन

प्रवीण वशिष्ठ, मुजफ्फरनगर: इस मुल्क में साहित्य और अदब की समझ रखने वाला हर शख्स मुजफ्फरनगर के वेद

By Edited By: Published: Mon, 30 Mar 2015 12:37 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 12:37 AM (IST)
वेदपाठी भवन में होते हैं महामना के दर्शन

प्रवीण वशिष्ठ, मुजफ्फरनगर:

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इस मुल्क में साहित्य और अदब की समझ रखने वाला हर शख्स मुजफ्फरनगर के वेदपाठी भवन से बखूबी वाबस्ता है। इसकी खास वजह यह है कि इस भवन के सर्वेसर्वा आचार्य सीताराम चतुर्वेदी महामना के 25 साल तक निजी सचिव रहे थे। आचार्य का बचपन और वानप्रस्थ काल इसी भवन में गुजरा। आचार्य ने ही महामना की 75 वीं वर्षगांठ पर प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ का लेखन व सम्पादन किया था। यह ग्रन्थ प्रकाशन के करीब आठ दशक बाद भी वेदपाठी भवन की विशाल लाइब्रेरी में सुरक्षित है। इन्ही सब सृजनात्मक गतिविधियों के चलते वेदपाठी भवन में देश-दुनिया के राजनीतिज्ञों और साहित्यकारों का आना जाना लगा रहता है।

भारत मां के श्रेष्ठ सपूत महामना मदन मोहन मालवीय को सोमवार को राष्ट्रपति मरणोपरान्त भारत रत्‍‌न से सम्मानित करेंगे। महामना के इस सम्मान पर मुजफ्फरनगर के वेदपाठी भवन भी आल्हादित है। दरअसल, वेदपाठी भवन के सर्वेसर्वा व देश के प्रख्यात साहित्यकार आचार्य सीताराम चतुर्वेदी महामना के 25 साल तक निजी सचिव रहे थे। मालवीय जी की 75 वीं जयन्ती के अवसर पर वर्ष 1936 में प्रकाशित 'महामना मदन मोहन मालवीय अभिनंदन ग्रंथ' का लेखन और संपादन आचार्य जी ने ही किया। महामना का काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए किया गया संघर्ष इसमें विशेष रूप से प्रकाशित है। ग्रंथ के पेज 107 पर महामना के 1911 में विश्वविद्यालय के लिए दान लेने को रेल द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा का वर्णन है। मेरठ में बड़ी सभा आयोजित हुई। सभा के सभापति महाराजा दरभंगा ने पांच लाख का दान दिया। वर्तमान में वेदपाठी भवन की देखरेख आचार्य के विद्वान पुत्र प्रियशील चतुर्वेदी 'रतन गुरु' कर रहे हैं। प्रियशील बताते हैं कि महामना जी ने विक्रम संवत की द्विसह्रत्राब्दिी (सन् 1943) के अवसर पर अखिल भारतीय विक्रम परिषद की स्थापना की थी। परिषद के तत्वाधान में वर्ष 2008 से आचार्य जी के जन्मदिवस 27 जनवरी को वेदपाठी भवन में 'सृजन मनीषी' अलंकरण समारोह का आयोजन किया जाता है। प्रथम अलंकरण डा. गोपालदास 'नीरज' को दिया गया था। बताया कि परिषद ने आचार्य जी की कई पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है। उनकी सरकार से मांग है कि अगले साल बीएचयू की 100वीं वर्षगांठ पर ग्रंथ का फिर से प्रकाशन हो, जिससे आगे वाली पीढि़यां और बेहतर ढंग से महामना से प्रेरणा ले सकें।

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आचार्य पंडित सीताराम चतुर्वेदी का संक्षिप्त परिचय

आचार्य सीताराम चतुर्वेदी का जन्म 27 जनवरी 1906 को काशी में हुआ। इंटरमीडिएट तक शिक्षा डीएवी इंटर कालेज मुजफ्फरनगर से प्राप्त की। इसके बाद बीएचयू से बीए, एमए (हिन्दी, संस्कृत, पाली, प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति), बीटी, एलएलबी, साहित्याचार्य की उपाधि प्राप्त की। शुरू में टीचर्स ट्रेनिंग कालेज वाराणसी में अध्यापन किया। टाउन डिग्री कालेज बलिया, सतीश चन्द्र डिग्री कालेज बलिया में प्राचार्य रहे। भारतीय विद्या भवन मुम्बई में पाली और संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। समीक्षाशास्त्र, साहित्यशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, धर्म, आध्यात्म, दर्शन व रंगमंच आदि विषयों पर लगभग तीन सौ पुस्तकों का लेखन किया। उनका देहान्त वर्ष 2005 में हो गया।


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