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आधुनिकता में लुप्त हुई लोक सांस्कृतिक विधाएं

मुजफ्फरनगर : आज आधुनिकता की चकाचौंध में लोक सांस्कृतिक विधाएं लुप्त होती जा रहीं है। ग्रामीणों की मन

By Edited By: Published: Fri, 27 Mar 2015 01:09 AM (IST)Updated: Fri, 27 Mar 2015 01:09 AM (IST)
आधुनिकता में लुप्त हुई लोक सांस्कृतिक विधाएं

मुजफ्फरनगर : आज आधुनिकता की चकाचौंध में लोक सांस्कृतिक विधाएं लुप्त होती जा रहीं है। ग्रामीणों की मनोरंजन करने वाली रागिनी, स्वांग तमासा आज दिखाई नहीं देते हैं, जबकि दो-ढाई दशक पहले तक ग्रामीणांचल में यही मनोरंजन का अहम जरिया रहा है। कंप्यूटर क्रांति के युग में जहां लोक कलाकारों की आवाज दबी, वहीं रंगमंच ने कई चेहरों को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया।

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एक समय था जब गांव के लोग रागिनी, स्वांग व तमासा को देखने के लिए भैंसा-बुग्गी व ट्रैक्टर-ट्रालियों में सवार होकर दूर गांव में देखने जाया करते थे। लेकिन आज मल्टीमीडिया युग आने से हमारी लोक सांस्कृतिक विधाएं लुप्त होती जा रहीं हैं। शासन-प्रशासन ने भी इस ओर कोई ध्यान नही दिया है।

जिले के प्रसिद्ध रागिनी कलाकार जोगेंद्र सिंह अंतवाड़ा का कहना कि उन्होंने अपनी टीम के साथ देश के विभिन्न प्रांतों में रागिनी के बड़े बड़े कार्यक्रम किए हैं, लेकिन आज के युवा वर्ग में इसके प्रति रुचि घटती जा रही है। राजा हरिश्चंद्र, नल-नील, सेठ ताराचंद, महाभारत के किस्सों की रागिनी सुनकर युवा वर्ग बोर होने लगते है। भोपा निवासी रंग कर्मी कलाकार प्रेम सागर का कहना कि घर घर में टीवी संस्कृति आ गई है और धीरे धीरे स्वांग तमासों के बजाए फिल्मों पर ध्यान देने लगे है। गांव गांव में होने वाली रामलीला भी अब कम होने लगी है। उसमें भी अब रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण बड़े पर्दे पर दिखाई जाने लगी है।

भारतीय नाट्य संघ (इप्टा) के डायरेक्टर संजीव मलिक मासूम बताते हैं कि लोक सांस्कृतिक विधाएं आल्हा, ढोला, स्वांग, तमासे, रागिनी, बिरहा, कजरी व नौटंकी आदि आज लुप्त होती जा रहीं है। सरकार ने इनके सरंक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।

गांव मेदपुर निवासी रंगकर्मी अवधेश कौशिक का कहना कि आर्थिक संकट के चलते नाटक के कलाकार भी अपने पेशे से मुंह मोड़ने लगे है। इस पेशे में अब उनके परिवार का गुजारा भी नही होता है। गांव बिहारगढ़ निवासी कलाकार ओमप्रकाश सिंह का कहना कि कभी वे गांव में गांव अनेक कार्यक्रम आयोजित कराते थे, लेकिन आज लोगों का रुझान घट रहा है।

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नवाज ने भीगे परों से की परवाज

फिल्म अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दिकी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। बुढ़ाना में जन्मे और पले बढ़े नवाजुद्दीन की आज फिल्म इंडस्ट्री में पुख्ता पहचान है। बचपन से ही अभिनय के शौकीन नवाज ने इसे पेशा बनाया तो नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बाद थियेटर उनका पहला प्लेटफार्म था। फिल्म सरफरोश में मिनट-दो मिनट के अभिनय से शुरूआत करने वाले नवाजुद्दीन आज जहां लाखों दिलों की धड़कन हैं, वहीं उनकी अदाकारी की तुलना ओमपुरी, नसरुद्दीन शाह और इरफान खान से की जाती है।

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एमके-2 व 3,

स्कूल के मंच से रंगमंच तक का सफर

खतौली : छोटे से कस्बे की पतली सी गली के एक साधारण घर में जन्मे सरदार इन्द्रजीत सिंह उर्फ जीनस के माता पिता ने कभी सोचा न था कि उनका पुत्र स्कूलों में नाटक, नृत्य व गीत प्रस्तुति कर टीवी के लाखों दर्शकों के दिलों पर छा जाएगा। आखिरकार जीनस कड़ी मेहनत के बल पर टीवी स्क्रीन पर पहुंच गया। वह लोगों को लाइफ ओके चैनल के कॉमेडी क्लासेस में दर्शकों को गुदगुदा रहा है। इन्द्रजीत का कहना है कि बड़े शहरों के अलावा कस्बों व गांवों भी प्रतिभाएं छिपी हैं, पर सही मार्गदर्शन व सहारा न मिलने के कारण वे दब कर रह जाती हैं।


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