इमामबारगाहों में गूंजी सोज-ओ-सलाम की सदाएं
मुजफ्फरनगर : करबला के मैदान में अब से लगभग 1400 वर्ष पूर्व हक के लिये अपनी और अपने जां निसारों की कु
मुजफ्फरनगर : करबला के मैदान में अब से लगभग 1400 वर्ष पूर्व हक के लिये अपनी और अपने जां निसारों की कुर्बानियां राहे खुदा में पेश करने वाले नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन (अ.) का गम मनाने के लिए शिया समाज मोहर्रम के महीने में मातमपुर्सी करता है। शनिवार को मोहर्रम का चांद दिख सकता है। उसे देखते हुए शिया समाज तैयारियों में जुट गया है। मीर अनीस के मर्सियों पर रियाज हो रहा है। गली-गली में सोज-ओ-सलाम की सदाए गूंजने लगी हैं।
करबला के मैदान में रसूल-ए-खुदा इमाम हुसैन और उनके जां निसारों द्वारा पेश की गई कुर्बानियों का जिक्र आते ही शिया समाज गमजदा हो जाता है। वैसे तो मुस्लिम शिया लोग साल भर मजलिस और मातमपुरसी में मशगूल रहते हैं। फिर भी मोहर्रम का महीना इसके लिए मख्सूस है। एक से 10 मोहर्रम तक इमामबारगाहों में मातमपुरसी होती है और मिम्बरे रसूल से वाकए करबला और फलसफा-ए-इस्लाम पर रोशनी डाली जाती है। माहर्रम के बाद ढाई माह के दौरान शिया समाज शादी-विवाह जैसा कोई खुशी का आयोजन नहीं करता। महिलाएं भी आभूषण व लाल, पीले आदि रंगों के कपड़ों का त्याग कर अपने आपको सादगी में सीमित कर लेती हैं। इस दौरान कुछ खास तारीखों को मजलिस-ओ-मातम और जुलूस का दौर जारी रहता है। शनिवार को मोहर्रम का चांद दिखने वाला है। जिले सहित शहर की मुस्लिम शिया बाहुल्य बस्तियों में मोहर्रम को लेकर तैयारियां दिखनी शुरू हो गई हैं। इमामबारगाहों में सफाई और रंग रोगन कराने के साथ ही ताजियों को भी सजाया जा रहा है। मातमी अंजुमने भी अपनी प्रेक्टिस में जुट गई हैं। नए नोहों की नई धुने तैयार की जा रही हैं। मर्सियाख्वानी का शोक रखने वाले बराबर रियाज कर रहे हैं। पुरानी बयाज निकल गई हैं। उन्हें साफ कर मीर अनीस और दूसरे मशहूर मर्सियाख्वां के मर्सिया छांटे जा रहे हैं। सोजख्वानी की प्रेक्टिस भी जमकर की जा रही है। चांद रात से ही इमामबारगाहों में मजलिस शुरू हो जाएंगी। मजलिसों की खिताबत के लिए उलेमाओं को आमंत्रित किया जा रहा है। मजलिस के बाद बंटने वाले तबर्रूक की साई दी जा रही है।