दस साल का नाजिम सिख रहा रामलीला के गुर
खतौली (मुजफ्फरनगर) : फतेहपुर सीकरी के 10 साल का नाजिम दादा इस्लाम के साथ रामलीला के गुर सीख रहा है।
खतौली (मुजफ्फरनगर) : फतेहपुर सीकरी के 10 साल का नाजिम दादा इस्लाम के साथ रामलीला के गुर सीख रहा है। उसके दादा चार दशक से श्रीराम लीला से जुड़े हैं। इस्लाम कभी मजहब को आड़े नहीं आने देते। वह दोनों मजहबों के त्योहारों को बड़ी आस्था से मनाते हैं। वह अपने पोते को भी यही शिक्षा देते हैं। उनके राम-राम व नमस्ते के सत्कार से कटरपंथी सोच भी तार-तार हो जाती है।
श्रीराम लीला में 10 साल का नाजिम व उसके दादा इस्लाम धर्म के नाम पर लड़ने और नफरत फैलाने वालों के लिए नजर साबित हो रहे हैं। इस्लाम को जहां रामायण व उसकी चौपाई कंठस्थ याद हैं, वहीं उनका पोता भी उनके नक्शे कदम पर चलकर रामलीला की महारत हासिल करने में लगा है।
एक मुस्लिम परिवार का श्रीरामलीला में अभिनय करना अटपटा जरूर लगेगा, लेकिन यहां रामलीला में इस्लाम और उसका पोता नाजिम मुस्लिम कलाकार हैं। इस्लाम 40 साल से रामलीला में काम कर रहे हैं तो उसके पोते ने हाल ही में रामलीला के गुर सीखने का मन बनाया। इस्लाम बताते हैं कि उसके मजहब के लोगों ने शुरूआती दौर में रामलीला में काम करने पर थोड़ा एतराज किया था, पर उसने कभी इसकी परवाह नहीं की। इस्लाम को रामलीला में अभिनय की महारत हासिल है। हर अभिनय को वह बड़ी संजीदगी से निभाते हैं। यही नहीं रामायण उसकी चौपाई और उनका भावार्थ उन्हें कंठस्थ हैं।
पांच वर्ष की आयु से रामलीला जुड़े हैं इस्लाम
रामलीला कलाकार इस्लाम व नाजिम उसका पौत्र है। दोनों आगरा के फतेहपुर सीकरी निवासी हैं। इस्लाम कहते हैं कि 5 साल की उम्र में रामलीला में काम शुरू किया था। उसके गुरु श्यामलाल शर्मा बंगाली घाट मथुरा वालों के यहां उसका पालन पोषण हुआ। उन्होंने ही उसे रामलीला में अभिनय सिखाया। वह उन्हें पिता और वे उन्हें बेटे की भांति प्यार करते थे। उसने अपना नाम हरि शर्मा रख लिया था, पर उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने दोबारा इस्लाम नाम रख लिया।
राम का चोला ओढ़ने में नहीं गुरेज
इस्लाम व नाजिम का कहना है कि उन्हें अपने काम में राम नाम का चोला ओढ़ने, उनकी अराधना करने में कोई गुरेज नहीं है। वे हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मो में विश्वास रखते हैं।
खानदानी कव्वाल हैं इस्लाम
इस्लाम का कहना है कि उनका खानदानी काम कव्वाल का है। उनका भाई इकराम व पुत्र इमरान कव्वाल है। उनके पिता मोहम्मद रफी ग्वालियर महाराज के यहां गाते थे, पर उन्होंने रामलीला के स्टेज पर कदम रखा तो पीछे हटकर नहीं देखा। उनके पोते नाजिम की भी तमन्ना रामलीला से जुड़ने की है। उन्होंने नाजिम को रोका नहीं। वे मजहब व धर्म के नाम पर लड़ने वालों को भाईचारे व सौहार्द की सीख देना चाहते हैं।
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चित्र परिचय-एमके-1- श्रीराम लीला का मुस्लिम कलाकार नाजिम। जागरण
एमके-2- श्रीराम लीला में मुस्लिम कलाकार इस्लाम। जागरण