रिश्तों की 'डोर' पर कर्फ्यू की 'कटार'
मुजफ्फरनगर : इस नामुराद दंगे ने बहुत कुछ छीना। रोटी, रोजगार.। और. बदले में दे दी नफरत, तबाही और रिश्तों का वह दर्द, जो सांस की आखिरी डोर टूटने तक तक भी साथ नहीं छोड़ेगा। एक पिता, गोद में उसके चार दिन के बेटे की लाश और साथ में मजबूरी के सिवाय और कुछ नहीं। पिता दफन-कफन के लिए उसे गांव ले जाना चाहता था लेकिन सुनने वाला कोई नहीं। हर आम-ओ-खास यह नजारा नहीं देख सका, लेकिन जिसने भी देखा दंगे पर रो पड़ा।
रविवार को मुजफ्फरनगर शहर की सड़कों पर सुबह से ही सन्नाटा पसरा था। इसी सन्नाटे में फौजी बूटों की ठक-ठक के बीच एक पिता की पीड़ा गुम हो रही थी। चार दिन पहले चरथावल थाना क्षेत्र के र्छिमाऊं गांव निवासी जगमाल का चार दिन पहले जन्मा बच्चा आज इलाज के दौरान दम तोड़ चुका था। पत्नी अस्पताल में भर्ती है, घर अस्पताल से 15 किलोमीटर दूर। पूरे शहर में वह बेटे के शव को उठाए अकेला बेसुध घूम रहा था।
हूटर बजाती गाड़ियों को भी गश्त की पड़ी थी और फौज भी मोर्चेबंदी में जुटी थी। पिता समझ नहीं पा रहा था कि वह अपने जिगर के टुकड़े का क्या करे।
एक ओर बेटे का शॉल में लिपटा शव तो दूसरी ओर बीमार पत्नी की चिंता। सर्कुलर रोड पर हमें खड़ा देख वह फूट-फूटकर रोने लगा। बोला.. बताओ साहब, मेरी क्या गलती है। जिगर के टुकड़े का क्या करूं? घर जाऊं तो पत्नी को यहां कौन देखेगा। कर्फ्यू की वजह से कोई आ नहीं पा रहा। जिस बेटे की उम्मीद बरसों से लगाए बैठा था, वह भी खो चुका है। कौन सी राह थामूं, कहां जाऊं? इसके बाद वह अकेला ही आगे बढ़ता चला गया। हमारी आंखें भी तब तक उसे निहारती रहीं जब तक वह ओझल नहीं हो गया।
किसी ने नहीं सुनी महिला की कराह
रविवार की दोपहर ही रुड़की चुंगी के पास एक महिला को ठेले पर लादकर कुछ लोग जिला अस्पताल की ओर से लेकर चले आ रहे थे। पथराव में चोटिल महिला दर्द से कराह रही थी। देखते ही देखते उस ठेले पर कराहती महिला को तीन-चार गाड़ियां पार कर गई, लेकिन एक ने भी उसे अस्पताल तक पहुंचाने की जहमत नहीं उठाई। जो हालात आज शहर में देखने को मिले, उन पर अजीम शायर डा. नवाज देवबंदी का यह शेर बरवस ही मुंह से निकल गया-
जलते घर को देखने वाले,फूस का छप्पर आपका है।
आपके आगे तेज हवा है, आगे मुकद्दर आपका है।
उसके कत्ल पर मैं भी चुप था, मेरा नंबर अब आया है।
मेरे कत्ल पर आप भी चुप हैं, अगला नंबर आपका है।
स्टेशन से ही लौट गए वतन को
मूलत: अमेठी निवासी रामसुख मुजफ्फरनगर में रामलीला का टीला पर रहते हैं। रामसुख आज ही सपरिवार नौचंदी एक्सप्रेस से मुजफ्फरनगर उतरे तो उन्हें कर्फ्यू का पता चला। बाहर आने-जाने का न तो कोई माहौल था और न ही कोई सवारी। साथ में सामान, महिलाएं और बच्चे होने की वजह से वे स्टेशन पर ही डट गए। कहा, स्थिति सुधरी तो शहर में जाएंगे, नहीं तो शाम को नौचंदी से ही वापस लौट जाएंगे। कर्फ्यू में न ढील मिली और न ही हालात सुधरे, ऐसे में वे फिर उसी ट्रेन से अमेठी को चल पड़े।
माहौल बढ़ा रहा दूरी
मनोज पत्नी और बच्चों को लेकर दिल्ली से लौटे। कर्फ्यू का नाम सुनते ही कान खड़े हो गए। काफी देर तक इंतजार के बाद जब सड़कों पर केंद्रीय सुरक्षा बल और फौज की गश्त होने लगी और साहस बंधा तो मनोज कंधे पर बस्ता उठाकर लंबे-लंबे कदम बढ़ाने लगे। पीछे-पीछे पत्नी बच्चों का हाथ खींचती दौड़े जा रही थी। सहारनपुर बस अड्डे के निकट रहने वाले इस परिवार का दम फूल रहा था। दंगे की आग में कहीं ये भी न झुलसें, इसलिए बेसुध सरपट चले जा रहे थे। वे बोले, कमबख्त ऐसे हालात में डरावना माहौल दूरियां और बढ़ा ही रहा है।
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