हज के दौरान औरतों का मर्दो की भीड़ में घुसना हराम
जागरण संवाददाता,मुरादाबाद हज का सफर करने वाली खुशनसीब औरतों को मर्दो की भीड़ में घुसना और नापाकी क
जागरण संवाददाता,मुरादाबाद
हज का सफर करने वाली खुशनसीब औरतों को मर्दो की भीड़ में घुसना और नापाकी की हालत में खाना-ए-काबा का तवाफ करना नाजायज करार दिया गया है।
उलेमाए-दीन फरमाते हैं कि औरत हज के सफर पर रवानगी के वक्त नापाकी की हालत में हो तो गुस्ल व सफाई के बाद इसी हालत में नीयत करके तलबीया पढ़ ले, उसका एहराम शुरू हो जाएगा। मक्का मुअज्जमा पहुंच कर ठहरने की जगह अल्लाह का जिक्र करती रहे। नापाकी का जमाना गुजरने के बाद गुस्ल करके तवाफ व सई और उमरा के अरकान पूरे करे। अगर सीधे मदीना मुनव्वरा जाना हो तो यहां से एहराम बांधने की जरूरत नहीं। बल्कि जब मदीना से मक्का मुअज्जमा के लिए रवाना हो तो जुलहलीफा से एहराम बांधा जाएगा। मक्का मुअज्जमा पहुंचने के बाद मदीना मुनव्वरा के लिए रवाना हो जाती है व औरत नापाकी की हालत में ही रहती है तो ऐसी सूरत में एहराम में ही रहेगी। मदीने का पूरा जमाना एहराम में ही गुजारेगी। नया एहराम बांध लिया तो एक दम और एक उमरा वाजिब हो जाएगा।
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रंगीन कपड़ा पहनना दुरुस्त-
औरत के एहराम में हुक्म ये है कि चेहरे पर कोई कपड़ा न लगे। एहराम की हालत में हर रंग का कपड़ा पहनना दुरुस्त है। दस्ताने, मौजे और जेबरात भी पहने जा सकते हैं। वुजू में मसाह करते वक्त सिर का एहराम हटाना जरूरी है।
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भीड़ कम होने पर करें तवाफ-
औरतों पर हज्र असवद का बोसा लेने, मुज्तजम् पर खड़े होकर दुआ मांगने या मकाम-ए-इब्राहीम पर नवाफिल पढ़ने का जुनून होता है और वो मर्दो के हुजूम में घुस जाती हैं। धक्के खाती हुई अंदर पहुंच जाती हैं और इसे फख्र समझती हैं। उनका ये अमल सवाब में नहीं, बल्कि सख्त गुनाह है। शरीयत में औरतों का भीड़ में घुसना हराम करार दिया गया है।
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तवाफ जायज नहीं-
नापाकी की हालत में औरतें मस्जिद में दाखिल न हों, न तवाफ करें ना ही कुरआन पढ़ें। अलबत्ता हरम शरीफ के बाहर जाकर जो सफेद पत्थरों का सहन है उसमें आना जाना, बैठना जायज है। क्योंकि ये हिस्सा खारिज-ए-मस्जिद है।
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रमल का हुक्म नहीं-
औरत रमल 'झपट कर चलना' नहीं करेगी। उसे इजतबा 'कंधा खोलकर चादर निकालना' का भी हुक्म नहीं है। बल्कि वो अपने लिबास में ही रहे।
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दम और बुदना दम-
एहराम की हालत में नाखून काटना, बाल मुंडाना या तोड़ना व शिकार करने पर दम वाजिब हो जाता है। यानी उसे बकरी या भेड़ की कुर्बानी हज की कुर्बानी के अलावा करना होगी। एहराम की हालत में मियां बीबी के ताल्लुक कायम करने पर बुदना दम वाजिब हो जाता है। यानी उसे एक ऊंट की कुर्बानी करना होगी। शर्त ये है कि दोनों कुर्बानी खाना-ए-काबा की हुदूद में की जाएंगी।