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सामाजिक दायित्वों से ही मानव का पूर्ण विकास

मुरादाबाद: हमारा जीवन ईश्वर का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ उपहार है। इस जीवन रूपी उद्यान को सुगंध से परिपूर

By Edited By: Published: Fri, 30 Sep 2016 02:17 AM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2016 02:17 AM (IST)
सामाजिक दायित्वों से ही मानव का पूर्ण विकास

मुरादाबाद: हमारा जीवन ईश्वर का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ उपहार है। इस जीवन रूपी उद्यान को सुगंध से परिपूर्ण बनाने के लिए संकल्प, संस्कार, सुविचार व समर्पण भाव से पोषित करना आवश्यक है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अलग-अलग भूमिकाएं निभाता है। हर रूप में उसके कुछ अधिकार और दायित्व भी होते हैं। अधिकारो का उपयोग सब करना चाहते हैं। परन्तु जब दायित्व निभाने की बात आती है तो सबसे पहला प्रश्न जो दिमाग में कौंधता है वह है उससे मुझे क्या मिलेगा, मेरा क्या फायदा? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि व्यक्ति के अधिकार, दायित्व और जबावदेहिता साथ-साथ चलते हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए जिम्मेदारी लेना जरूरी है। एक गुण जो सभी सफल व्यक्तियों में होता है वो है जिम्मेदारी लेने की क्षमता। अत: अपने दायित्वों को स्वीकार करना चाहिए और समझना चाहिए कि जहा हम पहुंचना चाहते हैं वहां अपने देश और समाज को भी ले जा सकते हैं। अक्सर पारिवारिक दायित्वों के निर्वाह के प्रति सजगता देखी जाती है और सामाजिक दायित्वों को अनदेखा कर दिया जाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मानव का पूर्ण रूप से विकास होना सम्भव नहीं है। अपने देश और समाज से ही हमारी पहचान होती है। जिस तरह से हम निस्वार्थ भाव से अपने परिवार की सेवा करते हैं उसी प्रकार अपने देश और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी बनती है। जिस देश में हमने जन्म लिया और जहां हमें प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए अवसर व सुविधाएं प्राप्त हुईं उस देश व समाज के लिए हमें पूरी ईमानदारी-समझदारी व जिम्मेदारी से अपने दायित्वो का निर्वहन करना चाहिए। पूरी निष्ठा व ईमानदारी से दायित्व निर्वाह का सबसे अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं हमारे सैनिक जो देश और देशवासियों की सुरक्षा के लिए 24 घटे बार्डर पर तैनात रहते हैं। अपने प्रियजनों से दूर रहकर विषम परिस्थितियों का सामना करते हैं, लेकिन क‌र्त्तव्य से विमुख नहीं होते। परंतु हम सभी आधारभूत सुविधाएं होने के बाद भी अपनी छोटी-छोटी जिम्मेदारिया जैसे- साफ-सफाई, नियमों का पालन करना इत्यादि को निभाने में भी असमर्थ हैं।

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हमारा देश विविधता में एकता के सिद्धान्त में विश्वास रखता है जहा एक से अधिक धर्म, जाति, पंथ, सम्प्रदाय और भाषाओं के लोग एकसाथ रहते हैं। यह वह देश है जो अपनी संस्कृति, परंपरा और ऐतिहासिक धरोहरों के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। वहीं दूसरी तरफ यहां भ्रष्टाचार,आतंकवाद,गरीबी, प्रदूषण तथा महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसी समस्यायें विकराल रूप धारण करती जा रही हैं। इन सबका समाधान सरकार पर चिल्लाने और दोषी ठहराने से नहीं हो सकता। अगर हम अपने दायित्वों का निर्वाह पूरी ईमानदारी से करें तो बहुत जल्द इन समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि ''हजारों कोसों की यात्रा एक कदम से शुरू होती है।'' हर माता पिता का क‌र्त्तव्य है कि अपने बच्चों के स्वास्थ्य, स्वच्छता तथा नैतिक विकास की देखभाल करें। उन्हें अच्छी आदतें सिखाएं। प्रत्येक नागरिक विभिन्न तरीकों से अपने देश की तरक्की के लिए जिम्मेदार है। हर नागरिक को अपने दायित्व को समझते हुए देश के नेतृत्व के लिए ऐसा नेता चुनना चाहिए जो देश को सही दिशा में ले जा सके। अपने घर और आसपास के वातावरण को साफ और स्वच्छ रखना चाहिए, जिसके कि परिवार स्वस्थ्य और खुशहाल रह सके। हर व्यक्ति को अनुशासित, समय का पाबंद व अपने पेशे के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। व्यर्थ में समय गंवाए बिना अपने दायित्वों को वफादारी के साथ निभाना चाहिए क्योकि ''यदि हम समय बर्बाद करेंगें तो समय हमें बर्बाद कर देगा। हमें स्वार्थी नहीं होना चाहिए। स्वयं शन्ति से रहना और दूसरों को शन्ति से रहने देना जीवन जीने की सर्वोत्तम नीति है। अपने दायित्वों का भली भाति पालन करते हुए एक नयी व अच्छी शुरूआत करने का समय है। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हमारा आचरण व व्यवहार ऐसा हो कि हमारे जाने के बाद भी हम लोगों के दिल में रहें।

-रेखा अग्रवाल, प्राधानाचार्या, सेंट मीराज एकेडेमी, कांशीराम ब्रांच।


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