भारी बस्ते ने छीनी बचपन की मस्ती
तेजप्रकाश सैनी, मुरादाबाद : जिगर कालोनी निवासी साक्षी अग्रवाल कक्षा तीन की छात्रा है। इसके बैग का वज
तेजप्रकाश सैनी, मुरादाबाद : जिगर कालोनी निवासी साक्षी अग्रवाल कक्षा तीन की छात्रा है। इसके बैग का वजन 8 किलोग्राम है, जिस प्वाइंट पर उसे बस लेने आती है। वहां तक उसकी मम्मी बैग लेकर छोड़ने जाती हैं। स्कूल की छुट्टी के बाद बेटी के बस से उतरने से पहले ही वह बेटी को लेने पहुंच जाती हैं। लेकिन स्कूल में न मम्मी होती हैं और न कोई सहारा देने वाला। फिर भी बच्चे किसी तरह कक्षा तक पहुंचते हैं। जिनकी कक्षाएं ऊपरी तल पर हैं तो सीढि़या चढ़ने से उनकी सांस फूल जाती है। कंधे से बैग उतरने के बाद उन्हें आराम मिलता है। जरा सोचिए कि भारी भरकम बस्ते के अटैक से जो कष्ट बच्चों को दिया जा रहा है, उसका परिणाम क्या होगा? बच्चे बस्ते में बेकार का बोझ क्यों उठाएं? कई किताबें ऐसी होती हैं जिनकी साल भर पढ़ाई नहीं होती। टर्न के अनुसार बैग में किताबों का वजन इतना हो जाता है कि देखने वाले भी तरस खाते हैं। अपनी उम्र से अधिक बस्ते का बैग होने के कारण कारण बच्चों में कमर, घुटने व कंधों के जोड़ों में दर्द की शिकायत आम हो गई है। स्कूल में पढ़ने वाले 60 फीसद बच्चे जोड़ों में दर्द, 30 फीसद बच्चे कमर दर्द व 58 फीसद बच्चे हड्डी रोग से पीड़ित हैं।
महाराष्ट्र के दो बच्चों ने भारी बस्ते के अटैक से होने वाली पीड़ा का आइना देश को दिखाया है वह वाकई झकझोरने वाला है। लेकिन पब्लिक स्कूलों व प्रकाशकों की कमीशन खोरी ने बच्चों को बीमार बना दिया है। सरकारी सिस्टम ने पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर एक्ट भी बनाया, लेकिन इसकी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
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एनसीईआरटी की शर्तो का पालन नहीं-
एनसीईआरटी की शर्तो में जिन किताबों को पाठयक्रम में अधिकृत किया गया, उन्हें पब्लिक स्कूल शामिल ही नहीं करते। निजी प्रकाशकों की गैर जरूरी किताबें बच्चे ढोने को मजबूर हैं। केंद्रीय विद्यालय में कक्षा एक से एनसीईआरटी की किताबों से ही पढ़ाई हो रही है। उनके बच्चों का बैग व पब्लिक स्कूल के बच्चों के बैग का तुलनात्मक वजन आधा होता है। यानी केंद्रीय विद्यालय के कक्षा एक में बस्ते का वजन दो किलो ही होता है जबकि निजी स्कूल में कक्षा एक के बच्चे के बस्ते का वजन 4 किलो से कम नहीं है।
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साल में एक ट्रक के बराबर वजन ढोते हैं बच्चे
वर्ष 2014 में हुई एक स्टडी के अनुसार भारत में बच्चों के स्कूल बैग का औसत वजन 8 किलो होता है। भारत में 200 दिन तक स्कूल खुलते हैं। स्कूल जाने और स्कूल से वापस आने में जो वजन बच्चा अपने कंधों पर उठाता है, अगर इसको आधार मानकर गणना की जाए तो साल में 3200 किलो वजन बच्चा उठाता है, जो एक ट्रक के वजन के बराबर है। कक्षा छह के बच्चे को अपने बैग में 18 से 19 कापियां व किताबें ले जानी पड़ती हैं। पानी की बोतल और लंच बॉक्स का वजन अलग से होता है। बच्चों के बस्ते का वजन कम करने के लिए अभिभावक संघ भी कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं।
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क्या कहता है चिल्ड्रन स्कूल बैग एक्ट 2006?
चिल्ड्रन स्कूल बैग एक्ट 2006 की जानकारी निजी स्कूलों को नहीं है। अगर है तो वह इसे अपने निजी स्वार्थ के कारण छुपाकर रखते हैं ताकि अभिभावक विरोध न कर सकें। स्कूल जाने वाले किसी भी छात्र के बैग का वजन उसके शरीर के भार का 10 फीसद होना चाहिए। एक्ट में यह भी है कि स्कूलों में छात्रों को कपबोर्ड और लॉकर की सुविधा दें, जिससे वह जरूरी किताबें ही घर ले जाएं और शेष स्कूल के लॉकर में ही रखी रहें। वर्ष 2012 में एसोचैम ने भारत के 10 शहरों में स्कूल जाने वाले 5 से 12 वर्ष की उम्र के 2 हजार बच्चों पर एक सर्वे किया था। जिसमें पाया गया कि 82 फीसद बच्चे अपने वजन के 35 फीसद के बराबर वजन का बैग लादकर स्कूल आते जाते हैं। सर्वे में शामिल 1500 बच्चों ने ये माना था कि उनकी कमर में दर्द होता है ओर बिना सहारे के नहीं चल पाते।
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कहां कर सकते हैं शिकायत
-'नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स' को कॉल करके शिकायत दर्ज करा सकते हैं। -www.द्गढ्डड्डद्यद्यठ्ठद्बस्त्रड्डठ्ठ.ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ पर लॉग इन करके शिकायत दर्ज करा सकते हैं। सीबीएसई के हेल्प लाइन नंबर 1800118002 पर भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
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स्कूल बैग की गाइड लाइन
कक्षा वजन
-कक्षा एक से दो तक दो किग्रा
-कक्षा 3 से 5 तक 3 किग्रा
-कक्षा 6 से 8वीं तक 4 किग्रा
-कक्षा 9 से 12वीं तक 8 किग्रा
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महानगर में गाइड लाइन के विपरीत बस्ते का वजन
-कक्षा एक से दो तक छह किग्रा
-कक्षा 3 से पांचवी तक 8 किग्रा
-कक्षा 6 से 8वीं तक 10 किग्रा
-कक्षा 9 से 12वीं तक 12 किग्रा
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प्रकाशकों को छमाही व वार्षिक परीक्षा के पाठ्यक्रम की किताबें उसी मूल्य पर दो भागों में प्रकाशित करनी चाहिए। इससे वार्षिक परीक्षा में आने वाले कोर्स को बच्चे अनावश्यक नहीं ढोएंगे। सरकार को इसके लिए निर्देश देने चाहिए।
-अनुपम जग्गा, प्रधानाचार्य, डीपीएस।
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भारी बैग की समस्या पब्लिक स्कूलों में है। इन स्कूलों की एक बैठक बुलाकर सुझाव लिए जाएंगे और उन पर अमल कराने का प्रयास करेंगे,जिससे बच्चे गैर जरूरी किताबें ढोने से बच सकें।
-एसपी मिश्रा, जेडी।
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केंद्रीय विद्यालय की अपनी गाइड लाइन निर्धारित हैं। उसी के तहत बच्चों के पाठ्यक्रम में किताबें शामिल हैं। भारी बैग कंट्रोल करने को जो गाइड लाइन हैं, उसका निजी स्कूलों को पालन करना चाहिए।
-अनुराग भटनागर, प्राचार्य, केंद्रीय विद्यालय।
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महानगर में तमाम स्कूल ऐसे हैं जो बच्चों को भारी बैग लादने के लिए मजबूर कर रहे हैं। इस संबंध में डीआइओएस से मिलेंगे और गैर जरूरी किताबों को पाठ्यक्रम से हटाने पर जोर देंगे।
-अनुभव मेहरोत्रा, महामंत्री, जिला छात्र अभिभावक संघ।