सबका मालिक 'एक'
प्रेमपाल सिंह अद्भुत, अकल्पनीय, अविश्वसनीय, लेकिन आपको यकीन करना ही होगा। ऐसे चमत्कार सिर्फ मुरादा
प्रेमपाल सिंह
अद्भुत, अकल्पनीय, अविश्वसनीय, लेकिन आपको यकीन करना ही होगा। ऐसे चमत्कार सिर्फ मुरादाबाद में ही देखने को मिल सकते हैं। आपको वस्तुएं चिपकाने वाली उस कंपनी का विज्ञापन तो याद होगा, जिसमें तालाब किनारे मछली पकड़ने एक व्यक्ति कांटा डालकर घंटों बैठा रहता है, पर उसक कांटे में कोई मछली नहीं फंसती। तभी दूसरा व्यक्ति कांटे में उस चिपकाने वाले पदार्थ को लगाकर तालाब में डालता है और ढेर सारी मछलियां पकड़कर चलता बनता है। कुछ समझ में आया भाई.., वैसे समझदार को इशारा ही काफी है। किसी को एक नहीं, तो किसी को चार-चार। हालांकि इसका काफी श्रेय नसीब को भी जाता है। पर, कुछ भी कहिए जनाब, साहेब का रुतबा तो बढ़ ही गया है। कुर्सी की मार पहले एक जिले में थी, अब पांच पांच जिलों तक मार कर रही है। ऐसे में जब साहेब की पकड़ मजबूत हो गयी तो 'बीरबल' के भी हाथ पांव फैल गये। लेकिन हां, इसका एक सकारात्मक पहलू भी है। वह यह कि अब लोगों को अपने कई कामों के लिए अलग अलग जगहों पर नहीं भागना होगा। एक ही जगह पर सब समस्याओं का निस्तारण हो जाएगा, साथ ही विकास कार्य भी तीव्र गति से होंगे। भैया, जाहिर है कि जब सबका मालिक 'एक' होगा, तो अलग अलग मालिकों के चक्कर काटने से तो मुक्ति मिल ही जाएगी। यानि अलग अलग दरवाजों पर अर्जी लगाने का झंझट खत्म।
आचार संहिता..सिर्फ हमारे लिए
चुनाव के मौसम में अपनी पार्टी में पकड़ रखने के साथ-साथ अफसरों को भी 'पकड़ने' की महारत हासिल है अपने शहर वाले भाईसाहब को। चुनाव के मौसम में आचार संहिता तो सबके लिए लगी है, लेकिन भाईसाहब इसका कुछ ज्यादा ही पालन करते दिख रहे हैं। पार्टी का पहले एक कार्यक्रम आया तो आचार संहिता बताकर टलवा दिया। एक और फरमान आया तो उसमें भी आचार संहिता का ब्रेक लगवा दिया। अब तो चर्चा होने लगी है कि आखिरकार आचार संहिता का डंडा भाईसाहब पर ही चल रहा है क्या? बाकी पार्टियों को तो खूब अनुमति मिल रही है, खूब धरने प्रदर्शन हो रहे हैं, जुलूस निकल रहे हैं, लेकिन भाईसाहब कुछ करना ही नहीं चाहते हैं। चर्चा जब लालू और लल्लू के कानों तक पहुंची तो लालू बोला, गलत कामों में हाथ रंगे है अधिकारियों के साथ उठना बैठना है, उनकी ख्वाहिश पूरी करनी है तो उनकी बजानी भी तो पड़ेगी। इसलिए जब भी विरोध प्रदर्शन की बात आई, पैर पीछे खींच लिये। लल्लू बोला, पार्टी के विरोध प्रदर्शन गांव देहात में तो चल ही रहे हैं। आखिरकार वो भाई समर्थित नहीं बल्कि पार्टी को समर्पित हैं।
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कैसे भी बस काम हो जाए!
महानगर से 'सूबे के साहब' के शहर को जाने वाले रास्ते पर कुछ लोग जमीनों के खेल में खूब शॉट लगा रहे हैं। दो वर्षो से एक जमीन की बदली को लेकर चल रही फाइल फिर अटक गई है। इस फाइल को पास कराने में तमाम लोगों ने दूसरों की जेबें गर्म की। ऐसे में जमीन की कीमत का बीस फीसद तो लोगों की जेब गर्म करने में ही खर्च हो गया। अब जमीन के मालिक तो अपना काम चाहते हैं। इस बार ले देकर फाइल को धक्का लगवा दिया, लेकिन फिर अटक गयी। अब एक बार फिर दोबारा फाइल को पास करवाने वाले सक्रिय हो गये हैं। देखना ये है कि ऊंट किस करवट बैठता है।