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सद मरहबा ये शान ये अजमत रसूल की

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद हम्द-ओ-नात फाउंडेशन की ओर से आयोजित कार्यक्रम के तहत 108 वीं नातिया का

By Edited By: Published: Thu, 26 Nov 2015 01:59 AM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2015 01:59 AM (IST)
सद मरहबा ये शान ये अजमत रसूल की

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद

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हम्द-ओ-नात फाउंडेशन की ओर से आयोजित कार्यक्रम के तहत 108 वीं नातिया काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।

मुहल्ला किसरौल दीवान खाना में हाजी सालिम हुसैन के निवास पर आयोजित गोष्ठी में साहित्यक विधा व नात के सामाजिक सरोकार पर रोशनी डाली गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आलमी शायर मंसूर उस्मानी ने हजरत मुहम्मद सल. से अकीदत का इस तरह से इजहार किया-

सद मरहबा यह शान, यह अजमत रसूल की।

बंदो को बंदगी का सलीका सिखा दिया।।

डॉ. मुजाहिद फराज ने पढ़ा-

फजाए ¨हद भी महके वहां की खुशबू से।

कभी मदीने से इस सम्त की हवा हो जाए।।

जिया जमीर ने कलाम पेश किया-

मजहब है क्या पड़ौसी का इस बात पे न जाओ।

भूखा वो सो न पाए, ये तलकीन की लिखो।।

सैयद मुहम्मद हाशिम ने पढ़ा-

मेरी ये आरजू है कि शहरे नबी के लोग।

कह दें रसूले पाक का मेहमान ये भी है।।

जाहिद इरफानी ने पढ़ा-

निगाहों को करीना आ गया है।

यकीनन अब मदीना आ गया है।।

अहमद मियां उस्मानी ने पढ़ा-

गवाही दे रहा है वाक्या मेराज का।

जिसकी खातिर वक्त को रुकना पड़ा वो आप हैं।।

मेराज अनवर कदीरी, नजाकत अशरफी, चांद नईमी, असद अशरफी, फरहान राशिद, मुहम्मद जहीन, मिन्हाज कदीरी ने भी कलाम पेश किए। हबीब कादरी, मुहम्मद अहमद अकरमी, सूफी अजीम अर्शी साबरी, असद मौलाई, अंजुम अली, शिबली मियां मौजूद थे। संचालन डॉ. मुहम्मद आसिफ ने किया। बाद में मुल्क-ओ-मिल्लत की दुआ की गई।


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